आज की इस पोस्ट में हम उत्तर प्रदेश का इतिहास परिचय एवं अध्ययन से संबंधित बात करने वाले हैं जिसमें आपको उत्तर प्रदेश से संबंधित इतिहास के बारे में संपूर्ण जानकारी पढ़ने के लिए मिलेगी UPPSC , UP POLICE , LDC या अन्य किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो हमारे यह नोट्स आपको सभी परीक्षाओं में जरूर काम आएंगे
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उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक परिचय
उत्तर प्रदेश का इतिहास स्वयं में गौरवशाली, समृद्ध एवं पुरातन है, यहाँ शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के साथ विभिन्न धर्मों एवं पंथों के लोग सदियों से रहते आए हैं। यह प्रदेश अनेक महान ऋषि मुनियों की तपोभूमि के साथ हिन्दू सनातन धर्म के ध्वजवाहकों की भी स्थली है। राम तथा कृष्ण जैसे महान व्यक्तित्वों का जन्म भी इसी प्रदेश में हुआ है। उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक प्राचीनता एवं इसकी गरिमा का अध्ययन निम्नलिखित बिन्दुओं के रूप में किया जा सकता है–
पुरापाषाण काल
– उत्तर प्रदेश में पुरा पाषण काल के प्रमुख साक्ष्यों की प्राप्ति प्रयागराज के बेलनघाटी, सोनभद्र के सिंगरौली घाटी तथा चकिया तहसील के चंदौली से हुई है। बेलन घाटी के लोहदानाला से हड्डी की बनी हुई मातृदेवी की प्रतिमा प्राप्त हुई है। प्रोफेसर जी. आर. शर्मा द्वारा बेलन नदी घाटी के पुरास्थलों की खोज की गई। इस समय के उपकरण क्वार्टजाइट पत्थरों से बने हुए हैं। इन सभी स्थानों से जो भी साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, उनको देखकर अनुमान लगाया जा सकता है, कि इस युग के मानवों को कृषि का ज्ञान नहीं था और ये लोग अग्नि से भी परिचित नहीं थे।
मध्यपाषाण काल
– उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर, सोनभद्र एवं प्रतापगढ़ जिले मध्य पाषाण काल का प्रतिनिधित्व करते हैं। यहाँ के मोरहना पहाड़, बघहीखोर, लेखहिया, महदहा, सरायनाहर एवं दमदमा जैसे क्षेत्रों से शवाधान, हड्डी एवं सींगों के बने आभूषण एवं अन्य उपकरण खोजे गए हैं। सरायनाहर से 11 मानव समाधियाँ प्राप्त हुई हैं। प्रयागराज के चोपानीमाण्डो में मिट्टी के बर्तन एवं झोंपड़ी के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। पुरापाषाण काल की तुलना में इस काल का मानव आंशिक तौर पर कृषि तथा पशुपालन करने, शवदाह करने व अग्नि के प्रयोग करने से परिचित था।
नवपाषाण काल
– सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में कृषि के प्राचीनतम साक्ष्य प्रदेश के संत कबीर नगर जिले के लहुरादेव क्षेत्र से प्राप्त हुए हैं, जबकि चावल की खेती के साक्ष्य प्रयागराज जिले के कोल्डिहवा से प्राप्त हुए हैं। उत्तर प्रदेश में नवपाषाण युग के दृश्य प्रयागराज के कोल्डिहवा, महगड़ा, पंचोह के अतिरिक्त मिर्जापुर-सोनभद्र एवं प्रतापगढ़ जिलों में देख सकते हैं। इस युग का मानव कृषि-पशुपालन करने, मिट्टी के चित्रकारी युक्त बर्तन बनाने, गृह निर्माण इत्यादि क्रियाओं से परिचित था।
ताम्रपाषाणिक काल
– पाषाण युग की समाप्ति के बाद मनुष्य ने धातुओं के रूप में सबसे पहले ताँबे का प्रयोग किया। अतः पाषाण युग के बाद की संस्कृति को ताम्र पाषाणिक संस्कृति कहते हैं। उत्तर प्रदेश में ताम्र पाषाणिक संस्कृति के साथ ताम्र-काँस्य संस्कृति के भूदृश्य, मेरठ के आलमगीरपुर, सहारनपुर के हुलास, बड़ागाँव, मुजफ्फरनगर के माँडी गाँव व कैराना क्षेत्र, बुलन्दशहर के भटपुरवा तथा मानपुरा इत्यादि स्थानों पर खोजे गए हैं। मेरठ तथा सहारनपुर जिले ताम्र-पाषाणिक युग की गाथा प्रस्तुत करते हैं।
वैदिक संस्कृति
– उत्तर प्रदेश राज्य ने सभ्यता एवं संस्कृति को युगों-युगों से सहेज कर रखा है। यह प्रदेश हिन्दुओं की पुरातन सभ्यता का केन्द्र बिन्दु है। इसे उत्तर वैदिक संस्कृति तथा ‘बौद्ध धर्म का पालना’ कहा गया है, क्योंकि इनका पोषण तथा पल्लवन इसी प्रदेश के सुरम्य प्राकृतिक वातावरण में हुआ है। सिंधु सभ्यता के बाद भारत में जिस नयी सभ्यता का विकास हुआ उसे ‘वैदिक संस्कृति’ का नाम दिया जाता है। इस संस्कृति का कालखण्ड लगभग 1500 ई.पू. से प्रारम्भ होकर 750 ई.पू. तक माना जाता है। इस कालखण्ड के इतिहास एवं व्यवस्था को जानने का प्रमुख स्रोत ऋग्वेद है। ऋग्वेद की ही पृष्ठभूमि पर उत्तर वैदिक युग की आधारशिला टिकी है।
– उत्तर वैदिक युग में उत्तर प्रदेश को ‘मध्य देश’ अथवा ‘ब्रह्मर्षि देश’ के नाम से जाना जाता था। इस समय पांचाल तथा कुरु नामक दो बड़े राज्य मौजूद थे। कुरु राज्य का विस्तार मेरठ, दिल्ली तथा थानेश्वर तक था। इसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी, जबकि पांचाल का विस्तार बरेली, बदायूँ, फर्रुखाबाद के क्षेत्रों में था और काम्पिल्य इसकी राजधानी थी। इस युग के मृद्भाण्डों में से लाल मृदभांड सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश से प्राप्त हुए हैं। महान दार्शनिक राजा अजातशत्रु काशी के नरेश थे। शतपथ ब्राह्मण में अवध या अयोध्या का उल्लेख कोशल के रूप में किया गया है। अयोध्या, मथुरा, वृन्दावन एवं हस्तिनापुर जैसे स्थलों का वर्णन रामायण एवं महाभारत जैसे महाकाव्यों में है। इन महाकाव्यों का प्रणयन भी उत्तर प्रदेश में ही हुआ है। प्रदेश के एटा जिले के कटिंगरा गाँव से राम–सीता की मूर्ति, राम-रावण युद्ध की मूर्ति एवं बालि-सुग्रीव युद्ध की मूर्ति प्राप्त हुई हैं।
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