उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक परिचय एवं अध्ययन Part 3 : मुगल काल

आज की इस पोस्ट में हम उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक परिचय एवं अध्ययन Part 3 से संबंधित बात करने वाले हैं जिसमें आपको उत्तर प्रदेश से संबंधित इतिहास के बारे में संपूर्ण जानकारी पढ़ने के लिए मिलेगी UPPSC , UP POLICE , LDC या अन्य किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो हमारे यह नोट्स आपको सभी परीक्षाओं में जरूर काम आएंगे

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उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक परिचय एवं अध्ययन Part 3 : मुगल काल

– बाबर ने 1526 ई. में मुगल वंश की आधार शिला रखी तथा आगरा को अपनी राजधानी बनाया। बाबर को अपने शुरुआती समय में संभल, काल्पी, जौनपुर, गाजीपुर, इटावा तथा कन्नौज के अफगानों से कड़ी टक्कर मिली। अतः अफगानों को बेदखल करने के उद्देश्य से 1529 ई. में बाबर ने महमूद लोदी व नुसरत शाह को घाघरा के तट पर तथा राणा सांगा को खानवा के युद्ध में परास्त किया। 1530 ई. में बाबर की मृत्यु के बाद हुमायूँ दिल्ली का सुल्तान बना। हुमायूँ को शेरशाह सूरी द्वारा युद्ध के मैदान में कड़ी टक्कर मिली। शेरशाह के पिता जौनपुर के शासक द्वारा प्राप्त जागीर की देखरेख करने का कार्य करते थे। कालिंजर पर आक्रमण के दौरान घायल होने के बाद शेरशाह की मृत्यु (1545) हुई, जबकि 1556 ई. में हुमायूँ की मृत्यु फिसल कर गिरने के कारण हुई। हुमायूँ की मृत्यु के बाद उसके पुत्र अकबर की ताजपोशी दिल्ली के शासक के रूप में हुई। 


– मुगल बादशाह अकबर का शासनकाल मुगलवंश के सफलतम कालखण्ड के रूप में देखा जाता है। उत्तर प्रदेश में ‘गंगा-जमुनी-तहजीब’ की प्रारम्भिक झलक अकबर के युग से दृष्टिगत होने लगती है। शासन, प्रशासन संगीत-कला एवं धर्म के क्षेत्र में अकबर की उदारता ने उत्तर प्रदेश को फलने-फूलने का अवसर दिया। अकबर द्वारा लगभग 1572 ई. में फतेहपुर सीकरी की स्थापना की गई। इसके दरबार के नौ रत्नों में शामिल बीरबल तथा टोडरमल क्रमश:  काल्पी व सीतापुर के रहने वाले थे। काल्पी में हुई खुदाई में बीरबल का रंगमहल तथा मुगल टकसाल के अवशेष प्राप्त हुए हैं। मुगल शासक शाहजहाँ ने विश्व के महान आश्चर्यों में शामिल तथा उत्कृष्ट वास्तुशिल्प का नमूना ताजमहल का निर्माण आगरा में करवाया था। शाहजहाँ के उपरान्त मुगल सत्ता औरंगजेब के हाथों में आई, किंतु औरंगजेब की धर्मान्धता एवं कट्टरता के कारण मुगल साम्राज्य के पतन की शुरुआत लगभग प्रारम्भ हो गयी। 
उत्तर प्रदेश में मुगल काल का स्थापत्य एवं भवन निर्माण :-

बाबरसम्भल में जामा मस्जिद
अकबरपंचमहल, खास महल, जोधाबाई महल, बीरबल महल, जामा मस्जिद, प्रयागराज व आगरा का किला, जहाँगीर महल, बुलन्द दरवाजा
नूरजहाँएत्मादुदौला का मकबरा (आगरा)
जहाँगीरअकबर एवं मारियम उज्जमानी का मकबरा (आगरा)
शाहजहाँताजमहल, आगरा के किले में दीवानेआम, दीवाने खास तथा मोती मस्जिद का निर्माण

क्षेत्रीय शासन :- 
– औरंगजेब के बाद सभी मुगल शासक अयोग्य सिद्ध हुए तथा शासन सत्ता पर उनका नियंत्रण क्रमशः समाप्त होता गया। मुगल साम्राज्य का पतन होने के बाद उत्तर प्रदेश में 5 राज्य क्षेत्रीय शासक समूह के रूप में स्थापति हुए- 
1. मेरठ तथा बरेली में पठान नाजिन खाँ का राज्य 
2. दोआब क्षेत्र में रूहेलखंड
3. फर्रुखाबाद में बंगश पठान 
4. पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं अवध के नवाब 
5. बुन्देलखण्ड में मराठे


– अवध राज्य स्वतंत्र होने से पूर्व मुगल साम्राज्य का सूबा था। 1722 ई. में सआदत खाँ ने अवध के स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। सआदत खाँ ने भू–राजस्व एवं लगान व्यवस्था में नवीन प्रयोग किए  तथा किसानों के हितों की रक्षा पर बल दिया। सआदत खाँ के उपरान्त सफदरगंज, शुजाउद्दौला, आसफुद्दौला तथा वाजिद अली शाह जैसे नवाबों ने अवध की गद्दी को सम्भाला। शुजाउद्दौला के शासन में 1764 ई. में बक्सर का युद्ध लड़ा गया। जिसमें अंग्रेजों ने नवाब की संयुक्त सेना को पराजित किया। नवाब आसफुद्दौला ने 1775 ई. में अंग्रेजों से फैजाबाद की संधि किया तथा अवध की राजधानी को फैजाबाद से लखनऊ स्थानान्तरित किया। नवाब वाजिद अली संगीत कला के तत्त्वज्ञ एवं कुशल संगीतज्ञ थे। इनके दरबार में कोदऊ सिंह तथा बिन्दादीन जैसे कलाकार प्रश्रय पाते थे। लखनऊ में स्थित इमामबाड़ा, भूलभुलैया, रूमी दरवाजा, छतर मंजिल एवं सिकन्दरबाग जैसे वास्तु अवध के नवाबों की उत्कृष्ट स्थापत्य-कला के प्रति प्रेम को दर्शाते हैं। आधुनिक भारत के इतिहास में पानीपत तथा बक्सर के युद्धों ने निर्णायक भूमिका निभाई तथा शेष रही-सही कसर क्षेत्रीय शक्तियों के परास्त होने से पूर्ण हो गयी। 1856 ई. में लॉर्ड डलहौजी ने अवध पर ‘कुशासन का आरोप’ लगाकर उसे अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया गया। 
– अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचार तथा लोगों के मन में जन्म लेते असंतोष ने 10 मई, 1857 को उत्तर प्रदेश के मेरठ छावनी से क्रांति का बिगुल फूँका। स्वाधीनता के मतवाले सैनिकों ने 11 मई, 1857 को दिल्ली पर कब्जा किया। विद्रोहियों द्वारा बहादुर शाह जफर को पुन: सम्राट घोषित करने के उपरान्त ‘जलसा’ नामक समिति ने दिल्ली का प्रशासन संभाला। यही वह समय था, जब अंग्रेजों के विरुद्ध विरोध एवं संषर्ष की पुख्ता नींव पड़ी। जून, 1857 को नाना साहब को कानपुर का पेशवा घोषित किया गया जबकि अवध में बेगम हजरत महल ने अपने बेटे विरजिस कादिर को अवध का नवाब बनाया। 

केन्द्रनेतृत्वकर्ता
कानपुरनाना साहब, तात्याँ टोपे, अजीमुल्लाह खाँ
लखनऊबेगम हजरत महल
झाँसी रानी लक्ष्मीबाई
बरेलीखानबहादुर खान
फैजाबादमौलवी अहमदुल्ला
इलाहाबादमौलवी  लियाकत अली
मेरठकदम सिंह
मथुरादेवी सिंह

– इस स्वतंत्रता विद्रोह से अंग्रेजों की परेशानी पर बल पड़ गए और विद्रोह को कुचलने के लिए इन्होंने अपनी सम्पूर्ण ताकत झोंक दी। जून, 1857 में दिल्ली में बख्त खाँ के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों तथा अंग्रेज अधिकारी जान निकोलस की सेना के मध्य संघर्ष हुआ और अन्ततः दिल्ली पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया। अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर को बंदी बनाकर रंगून निर्वासित कर दिया। तात्या टोपे के नेतृत्व में नवम्बर, 1857 में कानपुर पर कब्जा हुआ, किंतु दिसम्बर, 1857 में कोलिन कैम्पबेल ने कानपुर पर पुनः अधिकार कर लिया। कैम्पबेल द्वारा ही मार्च, 1858 में लखनऊ पर अधिकार किया गया जबकि बेगम हजरत महल पकड़े जाने के डर से नेपाल पलायन कर गई। झाँसी पर 4 अप्रैल, 1858 को ह्यूरोज द्वारा अधिकार कर लिया गया तथा 17 जून, 1858 को झाँसी की रानी ह्यूरोज के साथ हुए संघर्ष में वीरगति को प्राप्त हुई। झाँसी की रानी की मृत्यु के उपरान्त ह्यूरोज ने उनके लिए कहा था-“यह औरत समस्त विद्रोहियों में इकलौती मर्द थी।“ 
कोलिन कैम्पबेल ने 5 मई, 1858 को बरेली पर कब्जा किया जबकि इलाहाबाद तथा बनारस जून, 1858 में कैप्टन नील द्वारा अधिकार में ले लिए गए। 


– 1857 की क्रांति से उपजी आशंका के कारण अंग्रेजी हुकूमत ने अपनी नीतियों में परिवर्तन किया। 1 नवम्बर, 1858 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (प्रयागराज) में दरबार का आयोजन किया गया। जिसमें लॉर्ड कैनिंग ने महारानी के घोषणा-पत्र को पढ़ा। 1858 ई. को उत्तर प्रदेश की राजधानी आगरा से इलाहाबाद स्थानान्तरित कर दी गयी। 
– यद्यपि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के साथ ही राष्ट्रवाद का अंकुरण प्रारम्भ हो गया था तथापि कुछ अन्य घटनाओं यथा- राधा स्वामी आंदोलन आगरा (1861), देवबन्द आंदोलन (1867), साइंटिफिक सोसायटी की स्थापना (1864) एवं बनारस में सेंट्रल हिन्दू कॉलेज की स्थापना (1898) ने आम जन मानस के भीतर सोए राष्ट्रवाद को जगाया। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने वाराणसी से कविवचन सुधा एवं हरिश्चन्द्र मैगजीन का तथा हिंदी प्रदीप नाम से बालकृष्ण भट्ट ने पत्रिका का प्रकाशन किया, जिसने राष्ट्रवाद के विकास में अहम भूमिका निभाई। 1885 ई. में ए.ओ. ह्यूम के प्रयासों से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। कांग्रेस की स्थापना से लेकर भारत की स्वतंत्रता प्राप्त होने तक कुल 9 अधिवेशनों का आयोजन उत्तर प्रदेश में हुआ। 

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