आज की इस पोस्ट में हम राजस्थान की प्रमुख कृषि फसलें के बारे में बात करने वाले हैं अगर फसलों से संबंधित आप क्लासरूम नोट्स पढ़ना चाहते हैं तो हमारी इस पोस्ट को पूरा पढ़ सकते हैं जिसमें हमने राजस्थान की लगभग सभी महत्वपूर्ण फसलों के बारे में विस्तार से बताया है
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राजस्थान की प्रमुख कृषि फसलें
Table of contents
प्रमुख रूप से इसे हम तीन भागों में बाँट सकते हैं–
खरीफ फसलें
खरीफ के मौसम को राजस्थान में चौमासा एवं स्यालु कहा जाता है।
राज्य में ये फसलें जून-जुलाई में बोई जाती हैं तथा सितम्बर, अक्टूबर में काटी जाती हैं।
मुख्य खरीफ फसलें – ज्वार, बाजरा, चावल, मक्का, मूँग, उड़द, अरहर, मोठ, मूँगफली, अरण्डी, तिल, सोयाबीन, कपास, गन्ना, ग्वार आदि।
राज्य में खरीफ की 90 फसलें बारानी क्षेत्र पर बोई जाती हैं, जो पूर्णत: वर्षा पर निर्भर होती हैं।
खाद्यान्नों में बाजरे का कृषित: क्षेत्रफल सर्वाधिक है।
रबी फसलें
इन्हें उनालु कहा जाता है।
ये फसलें अक्टूबर-नवम्बर में बो कर मार्च-अप्रैल में काट ली जाती हैं।
मुख्य रबी फसलें – गेहूँ, जौ, चना, मटर, सरसों, अलसी, तारामीरा, सूरजमुखी, धनिया, जीरा, मैथी आदि हैं।
जायद फसलें
इन फसलों को मार्च–अप्रैल से मध्य जून तक उगाया जाता है।
राज्य में जायद फसलों की कृषि जल की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में की जाती है।
मुख्य जायद फसलें – तरबूज, खरबूजा, ककड़ी, सब्जियाँ इत्यादि।
कृषि के अन्य प्रकार
जीवन निर्वाह कृषि
यह कृषि परंपरागत तरीके से की जाती है।
इसका उद्देश्य मात्र उदर–पूर्ति करना होता है।
यांत्रिक कृषि
यह कृषि विस्तृत क्षेत्र में होती है तथा इसमें यंत्रों का उपयोग सर्वाधिक होता है।
राजस्थान का सबसे बड़ा यांत्रिक कृषि फार्म सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर) में 15 अगस्त, 1956 को रूस की सहायता से स्थापित किया गया था।
राज्य का दूसरा यांत्रिक कृषि फार्म जैतसर (श्रीगंगानगर) में स्थापित किया गया।
व्यापारिक कृषि
इसका प्रमुख उद्देश्य नकदी कमाना होता है।
इसकी प्रमुख फसलें गन्ना, कपास एवं तंबाकू हैं।
4. मिश्रित कृषि
कृषि एवं पशुपालन कार्य को एक साथ करना मिश्रित कृषि कहलाती है।
5. समोच्च कृषि
पहाड़ी क्षेत्रों में समस्त कृषि कार्य और फसलों की बुवाई ढाल के विपरीत करना ताकि वर्षा से होने वाली मृदा क्षरण को न्यूनतम किया जा सके।
6. स्थानांतरण कृषि
इसे झूमिंग कृषि भी कहते हैं।
यह कृषि सर्वाधिक आदिवासी या जनजातीय लोग करते हैं।
राजस्थान के आदिवासी क्षेत्रों (डूँगरपुर, बाँसवाड़ा, उदयपुर, बाराँ आदि) में यह कृषि की जाती है।
राजस्थान में भूमि के कटाव की अधिकता के कारण कई क्षेत्रों में स्थानांतरित कृषि की जाती है, उसे ‘वालरा’ कहते हैं।
दक्षिण–पूर्वी राजस्थान में इस कृषि को दीपा या बात्रा नाम से जाना जाता है।
यह कृषि राज्य के दक्षिण–पूर्वी पठारी क्षेत्र में सर्वाधिक होती है।
यह कृषि जंगलों को साफ करके की जाती है। यहाँ पर 3-4 फसलों के बाद नए स्थान की तलाश शुरू कर दी जाती है।
6. बारानी कृषि
यह ऐसी कृषि पद्धति है जो पूर्णत: वर्षा जल द्वारा की गई सिंचाई पर निर्भर होती है।
इसमें सिंचाई हेतु किसी भी कृत्रिम साधन का प्रयोग नहीं किया जाता है।
इसमें बोई जाने वाली फसलें ज्वार, बाजरा, मक्का, तिलहन, कपास आदि पूर्णत: वर्षा जल पर ही निर्भर रहती हैं।
7. रोपण कृषि
एक विशेष प्रकार की खेती जिसमें रबड़, चाय, कहवा आदि बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं।
बागवानी फसलों के प्रमुख उत्पादन जिले
क्र.सं. | फसल | प्रमुख उत्पादन जिले |
1. | आम | बाँसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, दौसा |
2. | संतरा | झालावाड़, भीलवाड़ा, कोटा |
3. | अमरूद | सवाई माधोपुर, बूँदी, बाराँ |
4. | आँवला | जयपुर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा |
5. | केला | चित्तौड़गढ़, उदयपुर, बाँसवाड़ा |
6. | करोंदा | अजमेर, जैसलमेर, जोधपुर |
7. | किन्नू | श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, धौलपुर |
8. | नींबू | पाली, दौसा, बूँदी |
9. | पपीता | सिरोही, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा |
10. | अंगूर | सिरोही |
11. | अनार | बाड़मेर, जालोर, जोधपुर |
12. | खजूर | जैसलमेर, हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर |
13. | बेर | जयपुर, बाड़मेर, हनुमानगढ़ |
14. | मौसमी | श्रीगंगानगर, बीकानेर, हनुमानगढ़ |
15. | सीताफल | राजसमंद, उदयपुर, चित्तौड़गढ़ |
16. | शहतूत | जयपुर, दौसा |
17. | चीकू | सिरोही, चित्तौड़गढ़, बाड़मेर |
18. | फालसा | धौलपुर, अजमेर |
फसलें | प्रमख उत्पादन जिलों के नाम |
1. अजवायन | चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा |
2. मिर्च | सवाई माधोपुर, भीलवाड़ा, जालोर |
3. धनिया | झालावाड़, नागौर, बाराँ |
4. जीरा | जोधपुर, बाड़मेर, जालोर |
5. सौंफ | नागौर, सिरोही, जोधपुर |
6. मैथी | बीकानेर, जोधपुर, सीकर |
7. लहसुन | बाराँ, कोटा, झालावाड़ |
8. अदरक | डूँगरपुर, उदयपुर, प्रतापगढ़ |
9. हल्दी | बूँदी, उदयपुर, भीलवाड़ा |
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