मगध साम्राज्य का इतिहास एवं राजवंश

क्या आप मगध साम्राज्य का इतिहास एवं राजवंश के बारे में जानना चाहते है ? अगर हाँ ! तो आपको हमारी यह पूरी पोस्ट जरूर पढ़ना चाहिए जिसमे हम मगध साम्राज्य से संबंधित लगभग सभी महवपूर्ण बातें शेयर की है | अगर आप किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे है तो यह टॉपिक आपको भारत का इतिहास विषय में पढ़ने के लिए मिलता है 

अगर आप इस टॉपिक को अच्छे से क्लियर करना चाहते है तो नीचे हमने सम्पूर्ण नोट्स उपलब्ध करवा दिया है आप उन्हें एक बार जरूर पढ़े 

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मगध साम्राज्य का इतिहास

  • प्रारंभ में, राजगृह मगध की राजधानी थी। यह रोचक बात है कि इस शब्द का अर्थ है ‘राजाओं का घर’। पहाड़ियों के बीच बसा राजगृह एक किलेबंद शहर था। बाद में चौथी शताब्दी ई.पू. में पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया गया, जिसे अब पटना कहा जाता है जिसकी गंगा के रास्ते आवागमन के मार्ग पर महत्त्वपूर्ण अवस्थिति थी पाटलीपुत्र का संस्थापक उदयन (उदायिन) था।
  • मगध देश में आर्य और अनार्य संस्कृतियों का सुन्दर समन्वय हुआ, जिसके कारण वर्णव्यवस्था इतनी जटिल न बन सकी जैसे कि मध्य प्रदेश (उत्तर प्रदेश) में । मगध के राजाओं ने योग्य व्यक्तियों को अपना मन्त्री चुना और अच्छा प्रशासन स्थापित किया। इन सब कारणों का सामूहिक प्रभाव यह हुआ कि मगध सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया।
  • मगध – राजनैतिक एवं धार्मिक एकता के कारण प्रसिद्ध था।

1. गिरिव्रज, 2. राजगृह/राजगीर, 3.पाटलिपुत्र

–  गिरिव्रज को वसुमति या कुशाग्रपुर भी कहा जाता था।

–  मगध के अन्य नाम – बृहद्रथपुरी, मगधपुरी, वसुनगरी।

–  मगध की वर्तमान स्थिति – दक्षिणी बिहार में पटना व गया के आसपास का क्षेत्र।

वंश का क्रमबृहद्रथहर्यकनागनंदमौर्य
संस्थापकबृहद्रथभट्टीयशिशुनागमहापदमनंदचन्द्रगुप्त मौर्य
(प्रथम)
बिम्बिसार
(वास्तविक)

1. बृहद्रथ राजवंश :-

–  संस्थापक – बृहद्रथ

गिरिव्रज को अपनी राजधानी बनाया।

–  ‘जरा’ नामक राक्षसी की पूजा की, इसी कारण उसी के वरदान से उसे जरासंध नामक पुत्र प्राप्त हुआ।

जरासंध :-  

–  बृहद्रथ की मृत्यु के बाद शासक बना।

2. हर्यक वंश (544 पू. 412 पू.):-  

–  शासकों का क्रम

–  बिंबिसार (544 – 492 ई. पू.)        

–  अजातशत्रु (492 – 460 ई. पू.)

–  उदायिन (460 ई. पू. – 444 ई. पू.)        

–  अनिरुद्ध

–  भारतीय इतिहास का प्रथम पितृहंता – अजातशत्रु (अपने पिता बिम्बिसार की हत्या) था।

–  भारतीय इतिहास का दूसरा पितृहंता – उदायिन था।

–  पहला ऐसा राजवंश जिसमें सर्वाधिक पितृहंता हुए।

–  हर्यक वंश का प्रथम शासक – भट्टीय था।

–  हर्यक वंश का वास्तविक संस्थापक – बिम्बिसार को माना जाता है।

बिम्बिसार :-

–  मगध का सबसे पहला शक्तिशाली राजा बिम्बिसार था। पालिग्रन्थों के अनुसार वह हर्यक कुल का था। वह एक साधारण सामन्त का पुत्र था। महावंश के अनुसार जब वह गद्दी पर बैठा, उसकी अवस्था केवल 15 वर्ष की थी।

–  हर्यक वंश का वास्तविक संस्थापक (आयु में बुद्ध से 5 वर्ष छोटा)

–  भगवान महावीर व गौतम बुद्ध दोनों का समकालीन था।

–  जैन ग्रंथों में इसका नाम श्रोणिक/श्रेणिक बताया गया है।

–  भगवान महावीर का अनुयायी व बुद्ध का उपासक था।

–  बिम्बिसार ने बौद्धसंघ को एक करन्द वेनु वन दान में दिया।

–  अंग राज्य को जीता तथा अपने पुत्र अजातशत्रु को वहाँ का शासक

 नियुक्त किया।

–  अजातशत्रु ने 492 ई. पू. में बिम्बिसार की हत्या की व राजा बना।

अजातशत्रु :-  

– अजातशत्रु  अपने पिता → बिम्बिसार की हत्या करने के बाद 491 ई.पू. में शासक बना।

– भारतीय इतिहास का प्रथम पितृहंता था।

– अजातशत्रु का उपनाम –  “कुणिक” था।

– अजातशत्रु ने प्रसेनजीत पर आक्रमण किया।

– प्रसेनजीत ने पराजित अजातशत्रु को कारावास में कैद कर दिया। कारावास में कैद अजातशत्रु से प्रसेनजीत की पुत्री वाज़ीरा को प्रेम हो गया, पिता से विवाह कराने का आग्रह किया। विवाह के पश्चात् काशी पुन: अजातशत्रु को प्राप्त हो गया। 

– वज्जि संघ की राजधानी वैशाली में लिच्छवी वंश के राजा चेटक का शासन था।

– अजातशत्रु ने चेटक को पराजित करने के लिए एक योजना बनाई। उसने अपने मंत्री वत्सकार (विश्वास पात्र मंत्री) का दिखावे हेतु अपमान किया। वत्सकार ने चेटक की शरण ली तथा विश्वास जीतकर लिच्छवियों में फूट डाली।

– लिच्छवियों में फूट का फायदा उठाकर अजातशत्रु लगातार 16 वर्षों तक लिच्छवियों से संघर्ष करता रहा।

– अंतत: अपने मंत्री वत्सकार की सहायता से यह लिच्छवियों को पराजित करने में सफल रहा।

– अजातशत्रु ने काशी व वैशाली को मगध सम्राज्य में मिलाया।

– अजातशत्रु ने वज्जि संघ को पराजित करने हेतु 2 हथियार प्रयोग किए-

1) रथ मूसल – वर्तमान टैंक के समान

2) महाशिलाकंटक – वर्तमान आधुनिक तोप के समान

– महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध, मखलीपुत्र गौसाल को निर्वाण की प्राप्ति अजातशत्रु के समय हुई।

– 483 ई. पू. – राजगृह की सप्तवर्णी गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया।

– अजातशत्रु ने राजगृह की एक पहाड़ी पर बुद्ध की अस्थियों पर एक स्तूप का निर्माण करवाया।

– अजातशत्रु ने अपने शासन के अंतिम समय में – गंगा व सोन नदियों के संगम पर दुर्ग निर्माण का कार्य प्रारंभ किया।

– अजातशत्रु के पुत्र उदायिन (उदयभद्र) ने उसकी हत्या कर दी थी।

उदायिन/ उदयभद्र (460 – 444 .पू.):-  

– अपने पिता की हत्या कर सोन तथा गंगा के किनारे पाटलिपुत्र (कुसुमपुर) नगर बसाया व इसे अपनी राजधानी बनाया।

– उदायिन के समय ही काशी, अंग व वज्जि का पूर्णत: विलय  मगध में हुआ।

– इस वंश के अंतिम शासक –  नागदशक की हत्या बनारस के राज्यपाल शिशुनाग ने की तथा उसने नागवंश की स्थापना की।

3. शिशुनाग वंश / नाग वंश (412 .पू. – 344 .पू.):-

शासकों का क्रम-

शिशुनाग →  कालाशोक → नंदिवर्धन (10 राजा) + 9 भाई सामूहिक रूप से शासन

संस्थापक

1. शिशुनाग :-

– राजा बनने से पूर्व यह बनारस का राज्यपाल था।

– वैशाली की एक नगरवधू की संतान था

– हर्यक वंश के अंतिम शासक नागदशक की हत्या कर शासक बना।

– यूनानी इतिहासकार कार्टियस-  के अनुसार अग्रसेन नाई ही महापद्मनंद था जिसने मगध पर नंद वंश की नींव डाली।

– बाद में अग्रसेन कालाशोक के 10 पुत्रों का संरक्षक बना व रानी की सहायता से उन्हें भी मार डाला।

4. नंद वंश (344 – 322/323 .पू.) :-

– नन्द वंश का संस्थापक महापद्मनंद था।

– महापद्मनंद को बौद्ध व जैन ग्रन्थों में अग्रसेन, महाबोधिवंश में इसे उग्रसेन कहा गया है।

– महापद्मनंद ने पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन करने की शपथ ली थी।

– महापद्मनंद को “सर्वक्षत्रान्तक” व “सर्वक्षायन्तक” कहा जाता है।

– यूनानी लेखकों व जैनअनुश्रुति के अनुसार महापदमनन्द एक नाई था।

– महापद्मनंद ने इक्ष्वाकु, काशी, कौशल, पांचाल महाजनपदों पर अधिकार करके इनका मगध में विलय कर लिया था।  

– मैसूर के कुछ प्राचीन अभिलेखों से पता चलता है कि नन्दों ने मैसूर के उत्तर- पश्चिमी भाग अर्थात् कुन्तल पर भी राज्य किया था।                              

– सम्पूर्ण मगध में “एकराट” पद प्राप्त करने वाला प्रथम शासक था। इसने एकछत्र साम्राज्य की स्थापना की थी।

– “नवानंद दोहरा” नामक नगर की स्थापना की थी।

– इस वंश में 9 राजा थे इसलिए इस वंश के शासकों को नवानंद /नवभातरौ कहा जाता है।

शासक – कुल 9 किन्तु मध्य में शासकों का विवरण अज्ञात।

– महापद्मनंद प्रथम शासक तथा घनानंद अंतिम शासक था बाकी इनके मध्य के शासकों का इतिहास अज्ञात है।

घनानंद :-

– अतुल धन संपदा का मालिक था।

– यूनानी इतिहासकारों ने इसे नाम दिया – अग्रमीज

– नंदों के समय मगध का विस्तार गंगा, यमुना से व्यास नदी तक हो गया।

– नंदों के अत्याचारों का वर्णन – विशाखदत्त कृत मुद्राराक्षस में मिलता है।

– एकमात्र ऐसा ग्रंथ जिसमें नंदों को “क्षत्रिय” कहा गया है।

– 322 ई. पूर्व में ही चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य व घनानंद के मंत्रियों से मिलकर नंद वंश के अंतिम शासक घनानंद को मार डाला और मगध पर मौर्य साम्राज्य की नींव रखी।

– नंद वंश के शासक जैन धर्म के अनुयायी थे। (मुद्राराक्षस)

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