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राजस्थान विधानसभा एवं परिसीमन आयोग
विधानसभा
● अनुच्छेद-170 के अनुसार प्रत्येक राज्य की एक विधानसभा होगी।
● विधानसभा को निम्न सदन/पहला सदन भी कहा जाता है।
विधानसभा सदस्यों की संख्या (अनुच्छेद-170)
● विधानसभा के प्रतिनिधियों को प्रत्यक्ष मतदान से वयस्क मताधिकार के द्वारा निर्वाचित किया जाता है। (फर्स्ट पास्ट द पोस्ट/अग्रता ही विजेता)
● इसकी अधिकतम संख्या 500 और न्यूनतम 60 तय की गई है तथा इनके बीच की संख्या राज्य की जनसंख्या एवं इसके आकार पर निर्भर है।
● अपवाद : सिक्किम (32), गोवा (40), मिजोरम (40) पुडुचेरी (30)
नोट– संसद कानून बनाकर विधानसभा की सीटों में वृद्धि कर सकती है। इसके लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता नहीं होती है।
वर्तमान में सर्वाधिक विधानसभा सीटों वाले राज्य
1. उत्तरप्रदेश (403)
2. पश्चिम बंगाल (294)
3. महाराष्ट्र (288)
4. बिहार (243)
नोट– दो केन्द्रशासित प्रदेश दिल्ली एवं पुडुचेरी में विधानसभा है जहाँ क्रमश: 70 एवं 30 सदस्यों की संख्या है। हालाँकि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 व 35(A) समाप्त करने के बाद जम्मू-कश्मीर को दो केन्द्रशासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर व लद्दाख) में विभाजित कर दिया गया है। जम्मू-कश्मीर केन्द्रशासित प्रदेश में भी विधानसभा के गठन का प्रावधान किया गया है।
प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र
● अनुच्छेद-170 के अनुसार राज्य के भीतर प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या के अनुसार आनुपातिक रूप से समान प्रतिनिधित्व होगा। जनसंख्या का अभिप्राय वह पिछली जनगणना है जिसकी सूची प्रकाशित की गई है।
प्रत्येक जनगणना के बाद पुन:निर्धारण
(i) प्रत्येक राज्य के विधानसभा के हिसाब से सीटों का निर्धारण होगा।
(ii) हर राज्य का निर्वाचन क्षेत्रों के हिसाब से विभाजन होगा।
● संसद को इस बात का अधिकार है कि वह संबंधित मामले का निर्धारण करे।
● इसी उद्देश्य के तहत 1952, 1962, 1972 और 2002 में संसद ने परिसीमन आयोग अधिनियम पारित किया।
● 42वें संविधान संशोधन, 1976 के तहत विधानसभा के निर्वाचन क्षेत्रों को 1971 की जनसंख्या के आधार पर वर्ष 2000 तक के लिए निश्चित कर दिया गया। जिसे 84वें संविधान संशोधन, 2001 के तहत 2026 तक के लिए बढ़ा दिया गया।
परिसीमन आयोग
● अब तक चार बार परिसीमन आयोग गठित किया गया।
● प्रथम- 1952, द्वितीय- 1962, तृतीय- 1972, चतुर्थ-2002
● चतुर्थ परिसीमन आयोग के अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश कुलदीप सिंह को बनाया गया।
● परिसीमन आयोग का गठन संसद द्वारा किया जाता है।
अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए स्थानों का आरक्षण (अनुच्छेद-332) –
● संविधान में राज्य की जनसंख्या के अनुपात के आधार पर प्रत्येक राज्य की विधानसभा के लिए अनुसूचित जाति/जनजाति की सीटों की व्यवस्था की गई है।
आंग्ल-भारतीय समुदाय के लिए स्थानों का आरक्षण (अनुच्छेद-333) –
● राज्यपाल अनुच्छेद-333 के तहत आंग्ल-भारतीय समुदाय से एक सदस्य को नामित कर सकता है। यदि इस समुदाय का पर्याप्त प्रतिनिधित्व विधानसभा में नहीं हो तो।
नोट– 104वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2020 के तहत यह प्रावधान निष्प्रभावी हो गया है।
विधानसभा का कार्यकाल [अनुच्छेद-172 (1)]
● चुनाव के बाद पहली बैठक से लेकर इसका सामान्य कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। इसके पश्चात् विधानसभा स्वत: ही विघटित हो जाती है।
नोट– राष्ट्रीय आपातकाल के समय में संसद द्वारा विधानसभा का कार्यकाल एक समय में एक वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है, हालाँकि यह विस्तार आपातकाल खत्म होने के बाद छह महीनों से अधिक का नहीं हो सकता है।
विधानसभा सदस्यों के लिए अर्हताएँ/योग्यताएँ (अनुच्छेद-173)
● भारत का नागरिक हो।
● उसे चुनाव आयोग द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष शपथ लेनी पड़ती है।
नोट– विधानमंडल के प्रत्येक सदन का प्रत्येक सदस्य सदन में सीट ग्रहण करने से पहले राज्यपाल या उसके द्वारा इस कार्य के लिए नियुक्त व्यक्ति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान लेगा। (अनुसूची 3)
● 25 वर्ष की आयु होनी चाहिए।
● इसके अतिरिक्त जन–प्रतिनिधत्व अधिनियम, 1951 के तहत संसद द्वारा निश्चित अर्हताएँ – विधानसभा सदस्य बनने वाला व्यक्ति संबंधित राज्य के निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता होना चाहिए। SC/ST का सदस्य होना चाहिए यदि वह SC/ST की सीट के लिए चुनाव लड़ता है। हालाँकि SC/ST का सदस्य उस सीट के लिए भी चुनाव लड़ सकता है, जो उसके लिए आरक्षित न हो।
विधानसभा सदस्यों के लिए निरर्हताएँ (अनुच्छेद-191)
● यदि वह लाभ का पद धारण करता हो।
● वह दिवालिया घोषित किया गया हो।
● न्यायालय द्वारा विकृतचित घोषित करने पर।
● वह भारत का नागरिक न हो या उसने विदेश में कहीं नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है।
● संसद द्वारा निर्मित किसी विधि द्वारा या उसके अधीन अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।
● अनुच्छेद-192 में यह स्पष्ट उल्लिखित है कि पहली 4 स्थितियों में (लाभ का पद ले लेने पर, विकृत्तचित, दिवालिया तथा नागरिक नहीं रहने पर) विधानमंडल की सदस्यता भारत के निर्वाचन आयोग के परामर्श पर राज्यपाल समाप्त करते हैं। राज्यपाल को इस संदर्भ में चुनाव आयोग के परामर्श के आधार पर ही निर्णय लेना होता है।
इसके अतिरिक्त जन–प्रतिनिधित्व एक्ट, 1951 के तहत संसद द्वारा निश्चित निरर्हताएँ–
● चुनाव में किसी प्रकार के भ्रष्ट आचरण या चुनावी अपराध का दोषी पाया गया हो।
● निर्धारित समय सीमा के अन्दर चुनावी खर्च संबंधित विवरण प्रस्तुत करने में असफल रहा हो।
● उसका किसी सरकारी ठेके कार्य अथवा सेवाओं में कोई रुचि हो।
● दल-बदल के आधार पर व्यक्ति अयोग्य हो (दसवीं अनुसूची के उपबंधों के तहत)
● दल-बदल के आधार पर संबंधित सदन का अध्यक्ष सदस्यता को समाप्त करता है।
नोट– संविधान में लाभ के पद का उल्लेख नहीं है।
शपथ
● अनुच्छेद-188 के अनुसार विधानमंडल के सभी सदस्यों को राज्यपाल अथवा उनके द्वारा अधिकृत किए गए व्यक्ति द्वारा शपथ दिलाई जाती है।
● विधानमंडल के सभी सदस्य अनुसूची 3 में दिए गए प्रारूप के अनुरूप संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हैं।
विधानसभा सचिवालय
● अनुच्छेद-187 में यह उल्लिखित है कि प्रत्येक राज्य विधानमंडल के लिए एक सचिवालय होगा।
● सचिवालय के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की भर्ती तथा सेवा-शर्तों का निर्धारण विधानसभा अध्यक्ष के परामर्श से राज्यपाल द्वारा किया जाता है।
● यह सचिवालय विधानसभा के प्रशासनिक कार्यों की देखभाल करता है।
● राजस्थान के सन्दर्भ में विधानसभा सचिव इस सचिवालय का प्रशासनिक प्रमुख होता है। भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अधिकारी को इस पद पर विधानसभा अध्यक्ष द्वारा नियुक्त किया जाता है।
स्थानों का रिक्त होना
● विधानमंडल का सदस्य निम्न मामलों में अपना पद छोड़ता है–
A. दोहरी सदस्यता – संविधान के अनुच्छेद-190(1) के अनुसार कोई व्यक्ति राज्य के विधानमंडल के दोनों सदनों का सदस्य नहीं होगा। यदि कोई व्यक्ति दोनों सदनों के लिए निर्वाचित होता है तो राज्य विधानमंडल द्वारा निर्मित विधि के उपबंधों के तहत एक सदन से उसकी सीट रिक्त हो जाएगी।
B. निरर्हता – राज्य विधान मण्डल का कोई सदस्य यदि अयोग्य पाया जाता है तो उसका पद रिक्त हो जाएगा।
C. त्यागपत्र – कोई सदस्य अपना लिखित इस्तीफा विधान परिषद् के मामले में सभापति और विधानसभा के मामले में अध्यक्ष को दे सकता है। स्वीकृति की स्थिति में पद रिक्त माना जाएगा।
D. अनुपस्थिति – यदि कोई सदस्य बिना पूर्व अनुमति के 60 दिन तक बैठकों से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसके पद को रिक्त घोषित कर सकता है।
E. अन्य मामले –
i. न्यायालय द्वारा उसके निर्वाचन को अमान्य ठहरा दिया जाए।
ii. सदन से निष्कासित कर दिया जाए।
iii. राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित हो जाए।
iv. राज्यपाल पद पर नियुक्त हो जाए।
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