आप यह है तो जानते ही होंगे कि राजस्थान में 1857 की क्रांति के प्रमुख कारण क्या रहे हैं लेकिन अगर आप यह नहीं जानते कि राजस्थान में 1857 की क्रांति के प्रमुख व्यक्तित्व कौन है तो हमारी इस पोस्ट को पूरा पढ़े क्योंकि हमने इसमें उन सभी व्यक्तियों के बारे में बताया है जिनकी इस क्रांति में अहम भूमिका रही है
1857 की क्रांति से संबंधित बहुत बार पेपर में प्रश्न पूछे जा चुके हैं और आगामी परीक्षाओं के लिए भी यह टॉपिक बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए इसे पूरा जरूर पढ़ें
राजस्थान में 1857 की क्रांति के प्रमुख व्यक्तित्व
Table of contents
अमरचंद बांठिया
- जन्म – 1797, बीकानेर
- मूलत: बीकानेर निवासी।
- ये ग्वालियर में व्यापार करते थे।
- इन्हें ‘ग्वालियर का नगर सेठ’ और ‘कोषाध्यक्ष’ का सम्मान प्राप्त हुआ।
- क्रांति के समय बांठिया ने रानी लक्ष्मी बाई व तात्या टोपे की आर्थिक सहायता की थी।
- अत: इनको ग्वालियर में 22 जून, 1858 को फाँसी दे दी गई।
- 1857 की क्रांति का राजस्थान का प्रथम शहीद।
- उपनाम – 1. 1857 की क्रांति का भामाशाह
2. राजस्थान का मंगल पांडे
ठाकुर कुशालसिंह
- मारवाड़ राज्य के आऊवा ठिकाने के ठिकानेदार।
- ये मारवाड़ शासक तख्तसिंह से नाराज थे।
- अप्रैल, 1857 को तख्तसिंह द्वारा भेजी गई सेना को पराजित किया।
- एरिनपुरा छावनी के विद्रोही सैनिकों का नेतृत्व स्वीकार किया।
- 8 सितम्बर, 1857 को बिथौड़ा के युद्ध में जोधपुर राज्य की सेना को पराजित किया।
- 18 सितम्बर, 1857 को चेलावास के युद्ध में ए. जी. जी. लॉरेन्स के नेतृत्व वाली सेना को पराजित किया।
- 20 जनवरी, 1858 को अंग्रेजी सेना ने किले को घेर लिया।
- ये 23 जनवरी को किले का भार पृथ्वीसिंह को सौंप कर सलूम्बर चले गए।
- 8 अगस्त, 1860 को नीमच में अंग्रेजों के सामने आत्म समर्पण कर दिया।
डूँगजी – जवाहरजी (काका-भतीजा)
- डूँगजी व जवाहरजी बठोठ पाटोदा (सीकर) के ठाकुर थे।
- रामगढ़ के सेठों को लूटकर धन गरीबों में बाँट दिया।
- डूँगजी के साले भैरोंसिंह ने लालच में आकर इन्हें अंग्रेजों से गिरफ्तार करवा दिया।
- डूँगजी को कैद कर आगरा के किले में डाल दिया।
- 31 दिसम्बर, 1846 को जवाहर जी ने लोठिया जाट, करणिया मीणा व साँवता नाई आदि की सहायता से किले से डूँगजी को आजाद करवा लिया।
- 1847 में इन्होंने छापामार लड़ाई से अंग्रेजों को परेशान कर दिया।
- 18 जून, 1847 को इन्होंने नसीराबाद छावनी को लूटा था।
- जवाहरजी बीकानेर नरेश रतनसिंह के पास चले गए। रतनसिंह ने जवाहरजी को अंग्रेजों को सौंपने से मना कर दिया।
- डूँगजी ने जोधपुर राज्य के आश्वासन पर आत्मसमर्पण कर दिया लेकिन महाराजा तख्तसिंह ने डूँगजी को अंग्रेजों को सौंप दिया।
मेहराब खान (कोटा)
- जन्म – 11 मई, 1815 को करौली में।
- कोटा स्टेट आर्मी में रिसालदार था।
- कोटा में एजेंसी हाउस पर अक्टूबर, 1857 में आक्रमण किया।
- इस आक्रमण में मेजर बर्टन, उनके दो पुत्र और कई सारे लोग मारे गए।
- इन्होंने लाला जयदयाल भटनागर के साथ कोटा राज्य का शासन अपने हाथ में ले लिया।
- 1859 में अंग्रेजों के हाथों पकड़े गए और इन्हें मृत्युदंड दे दिया गया।
रावत जोधसिंह (कोठारिया)
- मेवाड़ के कोठारिया ठिकाने के ठिकानेदार।
- 1857 की क्रांति के समय क्रांतिकारियों का साथ दिया।
- आऊवा के ठाकुर कुशालसिंह को अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता व शरण दी।
- अगस्त, 1858 में तात्या टोपे की रसद आदि से सहायता की।
- नाना साहब जब बिठुर से भाग कर कोठारिया आए तब जोधसिंह ने उन्हें शरण दी तथा सहायता की।
रावत केसरीसिंह (सलूम्बर)
- मेवाड़ राज्य के सलूम्बर ठिकाने के ठिकानेदार।
- विद्रोह में क्रांतिकारियों को शस्त्र, रसद व सैनिक सहायता दी।
- कई विद्रोहियों को अपने यहाँ शरण दी।
- नीमच में विद्रोह को दबाने के कारण मेवाड़ महाराणा को धमकी दी।
- केसरीसिंह ने आऊवा ठाकुर कुशालसिंह व तात्या टोपे की सहायता की तथा उन्हें शरण दी।
लाला जयदयाल भटनागर (कोटा)
- जन्म – 4 अप्रैल, 1812 को कामां, भरतपुर
- ये कोटा महाराव के दरबार में वकील थे।
- कोटा में 1857 की क्रांति के मुख्य संगठनकर्ता।
- इन्होंने 1857 के विद्रोह में कोटा के विद्रोह का नेतृत्व किया।
- मार्च, 1858 में जनरल रॉबर्ट्स ने कोटा में विद्रोहियों से युद्ध किया। फलत: जयदयाल ने कोटा छोड़ दिया।
- कोटा व बूँदी के महाराव ने इनकी गिरफ्तारी के लिए 12 हजार रुपये के इनाम की घोषणा की।
- लीलिया नामक व्यक्ति ने इनाम के लालच में इन्हें गिरफ्तार करवा दिया।
- 17 सितम्बर, 1860 में कोटा के एजेंसी हाउस में फाँसी दी गई।
हरदयाल भटनागर
- जन्म – 1817, कामां (भरतपुर)
- जयदयाल भटनागर का छोटा भाई।
- ये 1857 की क्रांति में जनरल रॉबर्ट्स से युद्ध में मारे गए।
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