1857 की क्रांति के ऐसे शार्ट नोट्स कहीं नहीं मिलेंगे

जब भी आप Indian History Notes पढ़ेंगे तो उसमें आपको 1857 की क्रांति के बारे में जरूर पढ़ने के लिए मिलेगा क्योंकि 1857 Ki Kranti in Hindi से काफी बार SSC परीक्षा में भी प्रश्न पूछे जा चुके हैं इसलिए अगर आप इस टॉपिक को नोट्स के माध्यम से याद करना चाहते हैं तो हम आपको बहुत ही शानदार नोट्स इस टॉपिक के लिए उपलब्ध करवा रहे हैं 

भारतीय इतिहास के ऐसे नोट्स हम आपको टॉपिक अनुसार उपलब्ध करवाते हैं ताकि आपको अच्छे से याद हो सके और आप घर बैठे शानदार तरीके से अपनी परीक्षा की तैयारी कर सकें

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

1857 की क्रांति और उसके बाद

नीतियाँ और लोग

● ईस्ट इंडिया कम्पनी की नीतियों से राजा, रानी, किसान, जमींदार, आदिवासी, सिपाही और आम जनता बहुत परेशान थी।

नवाबों की छिनती सत्ता

 18वीं सदी के मध्य से ही राजाओं और नवाबों की ताकत छिनने लगी थी। उनकी सत्ता और सम्मान दोनों ही खत्म होते जा रहे थे। बहुत सारे दरबारों में रेजिडेन्ट तैनात कर दिये गये थे।

● इस कारण शासक अंग्रेजों से नाराज थे जैसे रानी लक्ष्मी बाई चाहती थी कि कम्पनी उनके पति की मृत्यु के बाद उनके गोद लिए हुए बेटे को राजा माने।

● पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब ने भी कम्पनी से आग्रह किया कि उनके पिता को जो पेन्शन मिलती थी उनके बाद वह उसे मिले।

अवध

● अवध की रियासत अंग्रेजों के कब्जे में आने वाली आखिरी रियासतों में से थी।

● 1801 में अवध पर एक सहायक संधि थोपी गई।

● 1856 में अंग्रेजों ने अवध पर कब्जा कर लिया।

बहादुर शाह जफर

●  कम्पनी द्वारा जारी किए गए सिक्कों से मुगल बादशाह का नाम हटा दिया गया।

● 1849 में गर्वनर जनरल डलहौजी ने ऐलान किया कि बहादुर शाह जफर की मृत्यु के बाद बादशाह के परिवार को लाल किले से निकाल

 दिया जाएगा।

● 1856 में गर्वनर जनरल लॉर्ड कैनिंग ने फैसला किया कि बहादुर शाह जफर आखिरी मुगल सम्राट होंगे।

किसान और सिपाही

● गाँवों के किसान और जमींदार अंग्रेजों के भारी भरकम लगान और कर वसूली के सख्त तौर तरीके से परेशान थे।

● कम्पनी के अधीन काम करने वाले भारतीय सिपाहियों में भी असंतोष था, क्योंकि उन्हें वेतन भत्ते पूरे नहीं मिलते थे तथा उन्हें समुद्र पार भेजने के लिए विवश किया जाता था।

सुधारों पर प्रतिक्रिया

● अंग्रेजों ने सती प्रथा को रोकने और विधवा विवाह को बढ़ावा देने के लिए कानून बनाया।

● अंग्रेजी भाषा की शिक्षा को प्रोत्साहित किया।

● 1830 के बाद कम्पनी ने ईसाई मिशनरियों को खुलकर काम करने और जमीन व सम्पति जुटाने की छूट दी।

● 1850 में एक नया कानून बनाया गया, जिससे ईसाई धर्म को अपनाना और आसान हो गया।

सैनिक विद्रोह जनविद्रोह बन गया

● मई 1857 में शुरू हुई इस बगावत ने भारत में कम्पनी का अस्तित्व

 ही खतरे में डाल दिया था।

● मेरठ से शुरू करके सिपाहियों ने कई जगह बगावत की।

सैनिक विद्रोह

● जब सिपाही इकट्‌ठें होकर अपने सैनिक अफसरों का हुक्म मानने से इनकार कर देते हैं।

मेरठ से दिल्ली तक

● 29 मार्च 1857 को युवा सिपाही मंगल पांडे को बैरकपुर में अपने अफसरों पर हमला करने के आरोप में फाँसी पर लटका दिया गया।

● चंद दिन बाद मेरठ में तैनात कुछ सिपाहियों ने नए कारतूसों के साथ फौजी अभ्यास करने से इनकार कर दिया।

 सिपाहियों को लगता था कि उन कारतूसों पर गाय और सूअर की चर्बी

 का लेप चढ़ाया था। यह 9 मई 1857 की बात है।

● 10 मई को सिपाहियों ने मेरठ की जेल पर धावा बोलकर वहाँ बंद

 सिपाहियों को आजाद करा लिया।

● मेरठ के कुछ सिपाहियों की टोली 10 मई की रात को घोड़ों पर सवार

 होकर मुँह अँधेरे ही दिल्ली पहुँच गई।

● बहादुर शाह जफर को अपना नेता घोषित कर दिया।

● केवलरी लाइनों में युद्ध 3 जुलाई, 1857 को 3000 से ज्यादा विद्रोही बरेली से दिल्ली आ पहुँचे।

बगावत फैलने लगी

● स्वर्गीय पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र नाना साहेब कानपुर के पास रहते थे। उन्होंने सेना इकट्ठी की और ब्रिटिश सैनिकों को शहर से खदेड़ दिया।

● उन्होंने खुद को पेशवा घोषित कर दिया और ऐलान किया कि वह बादशाह बहादुर शाह जफर के तहत गर्वनर है।

● लखनऊ की गद्दी से हटा दिए गए नवाब वाजिद अली शाह के बेटे बिरजिस कद्र को नया नवाब घोषित कर दिया गया।

● बिरजिस कद्र ने भी बहादुर शाह जफर को अपना बादशाह मान लिया। उनकी माँ बेगम हजरत महल ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोहों को बढ़ावा

 दिया।

● झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई भी विद्रोही सिपाहियों के साथ जा मिली।

● उन्होंने नाना साहेब के सेनापति ताँत्या टोपे के साथ मिलकर अंग्रेजों को भारी चुनौती दी।

● मध्यप्रदेश के मांडला क्षेत्र में, राजगढ़ की रानी अवन्ति बाई लोधी ने 4000 सैनिकों की फौज तैयार की और अंग्रेजों के खिलाफ उसका नेतृत्व किया।

● 6 अगस्त, 1857 को लेफ्टिनेंट कर्नल टाइटलर ने अपने कमांडर-इन- चीफ को टेलीग्राम भेजा जिसमें उसने अंग्रेजों के भय को व्यक्त किया था।

● “हमारे लोग विरोधियों की संख्या और लगातार लड़ाई से थक गए हैं।

 एक-एक गाँव हमारे खिलाफ है। जमींदार भी हमारे खिलाफ खड़े हो रहे है।”

● बिहार के एक पुराने जमींदार कुँवर सिंह ने भी विद्रोही सिपाहियों का साथ दिया और महीनों तक अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी।

कम्पनी का पलटवार

● इस उथल-पुथल के बावजूद अंग्रेजों ने हिम्मत नहीं छोड़ी। कम्पनी ने अपनी पूरी ताकत लगाकर विद्रोह को कुचलने का फैसला लिया।

 उन्होंने इंग्लैण्ड से और फौजी मँगवाए, विद्रोहियों को जल्दी सजा देने

 के लिए कानून बनाए और विद्रोह के मुख्य केन्द्रों पर धावा बोल दिया।

● सितम्बर 1857 में दिल्ली दोबारा अंग्रेजों के कब्जे में आ गई।

● अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई।

● उनके बेटों को उनकी आँखों के सामने गोली मार दी गई।

● बहादुर शाह और उनकी पत्नी बेगम जीनत महल को अक्टूबर 1857 में रंगून जेल में भेज दिया गया।

● इसी जेल में नवम्बर 1862 में उन्होंने अंतिम साँस ली।

● मार्च 1858 में लखनऊ अंग्रेजों के कब्जे में चला गया। जून 1858 में रानी लक्ष्मीबाई की शिकस्त हुई और उन्हें मार दिया गया।

● ताँत्या टोपे मध्य भारत के जंगलों में रहते हुए आदिवासी और किसानों की सहायता से छापामार युद्ध चलाते रहे।

Join Whatsapp GroupClick Here
Join TelegramClick Here

उम्मीद करते हैं इस पोस्ट में हमने 1857 की क्रांति और उसके बाद का भारत से संबंधित नोट्स जो आपको उपलब्ध करवाई है वह आपको जरूर अच्छे लगे होंगे अगर आप इसी प्रकार टॉपिक के अनुसार सभी विषयों के नोट्स बिल्कुल फ्री में पढ़ना चाहते हैं तो हमारी इस वेबसाइट पर रोजाना विजिट करते रहे जिस पर हम आपको कुछ ना कुछ नया उपलब्ध करवाते हैं