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उत्तर प्रदेश के कृषि – जलवायु प्रदेश
Table of contents
व्यवस्थित एवं अनुकूल भौगोलिक संरचना तथा उपयुक्त जलवायु दशाओं के कारण कृषि एवं पशुपालन की दृष्टि से उत्तर प्रदेश भारतवर्ष का एक सम्पन्न राज्य है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश की कुल कार्यशील जनसंख्या के लगभग 60 से 70% लोग कृषि एवं कृषिगत कार्यों में संलग्न हैं।
उत्तर प्रदेश के कृषि – जलवायु प्रदेश
कृषि को प्रभावित करने वाले कारकों जैसे – मृदा, जलवायु, तापमान, वर्षा एवं मानवीय संसाधन के आधार पर प्रदेश को 9 कृषि जलवायु प्रदेशों में बाँटा गया है।
1. भाँभर एवं तराई क्षेत्र – यह क्षेत्र हिमालय के तलहटी में फैला हुआ है। इस क्षेत्र में आने वाले जिलों में सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, पीलीभीत, लखीमपुर, बहराइच, श्रावस्ती मुख्य हैं।
2. पश्चिमी मैदान – सम्पूर्ण मेरठ मण्डल तथा इससे सम्बद्ध क्षेत्र।
3. मध्य पश्चिमी मैदान – बरेली एवं मुरादाबाद मण्डल।
4. दक्षिणी-पश्चिमी समशुष्क मैदान – आगरा मण्डल।
5. मध्य मैदान – कानपुर, लखनऊ मण्डल एवं फतेहपुर का क्षेत्र।
6. बुन्देलखण्ड प्रदेश – झाँसी एवं चित्रकूट मण्डल।
7. उत्तरी-पूर्वी मैदान – गोरखपुर मण्डल एवं गोण्डा परिक्षेत्र।
8. पूर्वी मैदान – वाराणसी, फैजाबाद, आजमगढ़ मण्डल एवं प्रयागराज मण्डल के कुछ भू–भाग।
9. विन्ध्य प्रदेश – मिर्जापुर, सोनभद्र तथा दक्षिणी इलाहाबाद के क्षेत्र।
उत्तर प्रदेश में फसलों का उत्पादन
उत्तर प्रदेश में ऋतुओं के अनुसार तीन प्रकार की फसलें रबी, खरीफ एवं जायद उगाई जाती हैं।
1. रबी की फसल– इसको शीत ऋतु के प्रारम्भ में अर्थात् अक्टूबर से दिसम्बर तक बोया जाता है। इन फसलों को कम जल एवं औसत तापमान की जरूरत होती है। गेहूँ, जौ, चना, मटर, मसूर, सरसों, अलसी, आलू, तम्बाकू इत्यादि फसलें रबी की फसल के अन्तर्गत आती हैं।
2. खरीफ की फसल– खरीफ की फसलों की बुवाई मई से जुलाई तक होती है। इन फसलों को अधिक जल एवं तापमान की जरूरत होती है। चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, साँवा, कोदो, टाँगुन, सनई (जूट), अरहर, मूँगफली, कपास, गन्ना, रामदाना, तिल्ली आदि फसलें खरीफ के अन्तर्गत आती हैं।
3. जायद की फसल– इन फसलों को मार्च-अप्रैल में बोया जाता है। इनको अधिक ताप की जरूरत होती है। जायद फसलों के अन्तर्गत ककड़ी, खीरा, खरबूज, तरबूज, परवल, लौकी, मूँग, लोबिया आदि आते हैं।
– गेहूँ– वर्षा – 50 – 75 सेमी., ताप 10 – 15०C, अक्टूबर-नवम्बर में बुवाई तथा मार्च-अप्रैल में कटाई। उत्तर प्रदेश के कुल कृषि योग्य भूमि के लगभग 24% भाग पर गेहूँ की कृषि होती है। गोरखपुर जनपद प्रदेश का सर्वाधिक गेहूँ उत्पादक जिला है। गेहूँ की सर्वाधिक उत्पादकता गंगा-घाघरा दोआब क्षेत्र में होती है।
– चावल– वर्षा – 75-125 सेमी., ताप – बोते समय 20०C, पकते समय 27०C । उत्तर प्रदेश के कुल कृषि योग्य भूमि के लगभग 18% भाग पर चावल की खेती होती है। प्रदेश का सर्वाधिक चावल तराई क्षेत्र में उगाया जाता है। उत्तर प्रदेश का सिद्धार्थनगर जनपद सुगंधित चावल ‘काला नमक’ के लिए प्रसिद्ध है।
– गन्ना– वर्षा – 100-200 सेमी., ताप – 20०C-27०C । उत्तर प्रदेश के कुल कृषि योग्य भूमि के लगभग 13% भाग पर चावल की खेती की जाती है। गन्ना उत्तर प्रदेश की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नकदी फसल है। राज्य में गन्ना उत्पादन के दो महत्त्वपूर्ण क्षेत्र तराई एवं गंगा-यमुना का दोआब है।
– चना– वर्षा – 30-50 सेमी. ताप – 15०C से 25०C । इसकी खेती राज्य के उन भागों में की जाती है, जहाँ शुष्क एवं हल्की मिट्टी पाई जाती है। उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक चना बुन्देलखण्ड क्षेत्र में उगाया जाता है।
– बाजरा– उत्तर प्रदेश में बाजरा की कृषि शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में होती है, जहाँ वर्षा 50 सेमी. से कम होती है। बाजरे को मई से जुलाई तक बोया जाता है तथा कटाई सितम्बर से दिसम्बर तक कर ली जाती है।
– मक्का– उत्तर प्रदेश मक्का उत्पादन में तीसरे स्थान पर है। इसकी बुवाई मई-जून-जुलाई में होती है तथा अगस्त-सितम्बर-अक्टूबर में फसल काट ली जाती है। यद्यपि मक्का एक खाद्यान्न फसल है किन्तु उद्योगों में भी यह कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है।
– कपास– गंगा–यमुना दोआब, रुहेलखण्ड तथा बुन्देलखण्ड क्षेत्रों में छोटे रेशों वाली कपास का सर्वाधिक उत्पादन होता है। प्रदेश में कपास की यूपी देशी, बंगाल की कपास, घौलेरा और पंजाब अमेरिकन किस्मों को बोया जाता है। कपास को जून-जुलाई में बोकर पौधों से अक्टूबर-नवम्बर तक कपास की चुनाई कर ली जाती है।
– सरसों– प्रदेश में सरसो की खेती स्वतंत्र रूप से अथवा अन्य फसलों यथा गेहूँ, मटर एवं जौ के साथ मिश्रित रूप में की जाती है। वैसे तो सरसों समस्त प्रदेश में उगाई जाती है किंतु मध्य एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इसकी खेती विशेष रूप से की जाती है।
– तम्बाकू– वाराणसी, मेरठ, गाजियाबाद, सहारनपुर, मैनपुरी और फर्रुखाबाद आदि जिलों में इसकी खेती होती है।
– जौ– इसकी कृषि शुष्क एवं कॉप मिट्टी वाले क्षेत्रों में की जाती है। इसके लिए भी वही जलवायविक दशाएँ आवश्यक होती हैं जो गेहूँ के लिए अनिवार्य है।
– अरहर– यह खरीफ की फसल है। इसकी खेती के लिए बलुई-दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। फसल को बोते और काटते समय ऊँचे तापमान की तथा फली लगने के समय कम तापमान की आवश्यकता होती है।
– मूँगफली– इसे जून-जुलाई में बो कर नवम्बर-दिसम्बर में खोद लिया जाता है। बलुई मृदा मूँगफली की खेती के लिए उत्तम होती है।
– पटसन– प्रदेश में जूट की फसल जून-जुलाई माह में बोई जाती है तथा सितम्बर-अक्टूबर में काट ली जाती है। इसका सर्वाधिक प्रयोग रस्सी बनाने में किया जाता है।
– अफीम–उत्तर प्रदेश में अफीम का सबसे बड़ा उत्पादक जिला बाराबंकी है। इसके अलावा गाजीपुर में भी अफीम की खेती होती है। राज्य की एकमात्र अफीम की फैक्ट्री गाजीपुर जनपद में स्थित है।
सब्जी, फल एवं मसालों की कृषि
आलू
– आलू के उत्पादन में उत्तर प्रदेश अग्रणी राज्य है।
– आलू की कृषि समस्त प्रदेश में की जाती है।
– आलू एवं अन्य सब्जियों के अनुसंधान के लिए गाजियाबाद में एक आलू अनुसंधान केंद्र बाबूगढ़ स्थापित हुआ है।
– उत्तर प्रदेश के आगरा, सहारनपुर तथा लखनऊ जैसे कृषि निर्यातक क्षेत्रों में से आगरा आलू निर्यात के लिए जाना जाता है।
– यहाँ से आलू को ताज ब्रांड के नाम से बेचा जाता है।
– प्याज व लहसुन– घरेलू उपभोग के लिए इसकी कृषि सामान्यतः राज्य के सभी भागों में होती है। फर्रुखाबाद, बदायूँ, मैनपुरी, इटावा, कन्नौज, एटा तथा फिरोजाबाद आदि जिले इनकी खेती के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
– अदरक– अदरक की खेती के लिए बुन्देलखण्ड क्षेत्र विशेष रूप से जाना जाता है।
– हल्दी– इसके उत्पादन में प्रदेश का स्थान अग्रणी है। प्रदेश के बुन्देलखण्ड में इसकी कृषि सर्वाधिक होती है।
– आम– प्रदेश के मध्यवर्ती तथा पश्चिमी जिलों में आम की खेती व्यापक पैमाने पर की जाती है। दशहरी, लँगड़ा, रटौल, चौसा, लखनऊ सफेदा, मलीहाबादी सफेदा, हुस्नआरा, गुलाब खास, सुरखा, मटियारी आदि आम की मुख्य प्रजातियाँ है। लखनऊ का मलीहाबादी दशहरी, सहारनपुर का सफेदा व चौसा, मेरठ तथा बागपत का रटौल तथा वाराणसी का लँगड़ा विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उत्तर प्रदेश से आम का निर्यात नवाब ब्राण्ड से किया जाता है।
– अमरूद– सफेदा, हाफजी लखनऊ, करेला, इलाहाबादी सफेदा, धौलका लखनऊ इसकी मुख्य किस्में हैं। इलाहाबादी सफेदा, लखनऊ-49 (सरदार) तथा ललित सुर्खा निर्यातक प्रजाति हैं। प्रयागराज, कौशाम्बी, बदायूँ, बरेली, कानपुर, अयोध्या इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।
– केला– वाराणसी, कौशाम्बी, प्रयागराज और गोरखपुर में केले की खेती व्यापक रूप से होती है। माल भोग, चीनी-चम्पा, अलफान, अधेश्वर, दूध सागर केले की प्रमुख प्रजातियाँ हैं। प्रयागराज में प्रदेश का पहला राइपनिंग चैम्बर (केला पकाने का संयंत्र) स्थापित किया गया है।
– आँवला– उत्तर प्रदेश का प्रतापगढ़ जनपद इसकी खेती में सर्वोच्च स्थान रखता है।
– लीची– सहारनपुर तथा मेरठ क्षेत्र उत्पादन में अग्रणी।
– नीबू– सामान्यतः प्रदेश के सभी क्षेत्रों में उगाया जाता है किंतु बुन्देलखण्ड नीबू उत्पादन में अग्रणी है।
– सन्तरा– बुन्देलखण्ड एवं सहारनपुर क्षेत्र में उगाया जाता है।
– पपीता– सहारनपुर, उन्नाव, लखनऊ एवं फैजाबाद में उत्पादित।
– माल्टा– मौसमी एवं ब्लड रेड इसकी मुख्य प्रजातियाँ है। मेरठ, सहारनपुर एवं वाराणसी इसके मुख्य उत्पादक जिले हैं।
– तरबूज– गंगा-सरयू एवं गोमती नदी घाटियों में उत्पादित।
स्मरणीय तथ्य
– जैविक खेती अनुसंधान संस्थान – गाजियाबाद।
– प्रदेश में कुल पारिस्थितिकीय क्षेत्र – 20
– प्रदेश में कुल मृदा-समूह क्षेत्र – 8
– देश में कुल क्रियाशील जोतों में सर्वाधिक संख्या में क्रियाशील जोते उत्तर प्रदेश में है।
– लखनऊ में अवस्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमान खेड़ा में देश का प्रथम बागवानी कॉल सेंटर खोला गया है।
– भारत में कुल 9 आदर्श पुष्पोत्पादन केंद्र अवस्थित हैं जिसमें से 1 लखनऊ में स्थित है। वाराणसी, कन्नौज, मिर्जापुर, जौनपुर, इलाहाबाद एवं लखनऊ जनपदों में फूलों की खेती होती है।
– कन्नौज इत्र नगरी के नाम से जाना जाता है जहाँ फूलों से इत्र बनाया जाता है।
– विलुप्त हो रही महत्त्वपूर्ण औषधीय फसलों एवं वनस्पतियों को संरक्षित करने के उद्देश्य से प्रदेश के 18 जनपदों में ‘हर्बल गार्डन’ की स्थापना की जा रही है।
– एलोवेरा (घृतकुमारी), ब्रह्मी, पिपरमिंट, मेंथा, तुलसी, सफेद मूसली, सर्पगन्धा, सतावरी, शंखपुष्पी, अश्वगंधा, अर्जुन, बेल, नीम, लेमनग्रास आदि औषधीय पौधे हैं।
– मेंथा तेल उद्योग बाराबँकी, बदायूँ एवं रामपुर जनपदों में अग्रणी है। मैंथा तेल की शुद्धता की जाँच करने के लिए कन्नौज में फ्रेगनेंस एंड फ्लेवर डेवलपमेंट सेंटर की स्थापना की गई है।
– विश्व के कुल मैंथा निर्यात में भारत की हिस्सेदारी लगभग 85% है।
– भारत में उत्पादित कुल मैंथा का 90% उत्तर प्रदेश में उत्पादित होता है।
– उत्तर प्रदेश में महोबा, बाँदा, उन्नाव, रायबरेली, प्रतापगढ़, आजमगढ़, जौनपुर, मिर्जापुर, सोनभद्र, गाजीपुर, ललितपुर सहित कुल 24 जनपदों में पान की खेती होती है।
– उत्तर प्रदेश का महोबा पान उत्पादन के लिए प्रदेश भर में अग्रणी स्थान रखता है। यहाँ 1981 में पान अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई थी। महोबा देशावरी, कलकतिया, कपूरी, बँगला, सागर, बँग्ला ककेर, पाली देशी, जैसवारी, मगही, साँची, सोफिया, बनारसी, रामटेक, कपूरी मीठा आदि पान की प्रमुख प्रजातियाँ है।
– रतनजोत (जेट्रोफा) की कृषि पर प्रदेश सरकार द्वारा विशेष बल दिया जा रहा है क्योंकि इसके बीज से प्राप्त तेल का प्रयोग पेट्रोलियम के विकल्प के रूप में हो सकता है। बायोटेक पार्क की देखरेख में बक्शी तालाब स्थित परिसर में जेट्रोफा क्लोनिंग गार्डेन परियोजना चलाई जा रही है।
उत्तर प्रदेश में फसलों की खेती के अन्तर्गत क्षेत्रफल | ||
फसल | प्रदेश की कुल कृषि भूमि में % | |
गेहूँ | 24% | |
चावल | 18% | |
गन्ना | 13% | |
प्रदेश के सर्वाधिक प्रतिशत कृषि भू-भाग पर गेहूँ की खेती की जाती है। |
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