इस पोस्ट में हम प्राचीन भारत का इतिहास के एक टॉपिक गुप्त साम्राज्य से संबंधित क्लासरूम नोट्स उपलब्ध करवा रहे हैं जिसमें आपको गुप्त साम्राज्य क्या है एवं गुप्त साम्राज्य की उत्पत्ति कैसे हुई इत्यादि के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए मिलेगा इस टॉपिक के नोट्स को पढ़ने के पश्चात आपको इसके लिए अन्य कहीं से पढ़ने की आवश्यकता नहीं होगी 

यह नोट्स ऑफलाइन क्लासरूम से तैयार किए गए हैं ताकि आप अगर सेल्फ स्टडी कर रहे हैं तो इन नोट्स के माध्यम से आप बिल्कुल फ्री घर बैठे तैयारी कर सकें

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गुप्त साम्राज्य

गुप्त वंश की उत्पत्ति

♦ गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्णिम युग कहा जाता है।

♦ मौर्यों के पतन के बाद राजनीतिक एकता समाप्त हो गई थी।

♦ तीसरी शताब्दी में एक शक्तिशाली राजवंश का उदय हुआ जिन्होंने भारत में एक बार पुन: राजनीतिक एकता की स्थापना की।

♦ गुप्त कुषाणों के सामन्त थे।

मतविद्वान
क्षत्रियगौरी शंकर हीराचन्द ओझा व रमेशचन्द्र मजूमदार
ब्राह्मणदशरथ शर्मा
वैश्यरोमिला थापर, रामशरण शर्मा, ऐलेन एवं अल्टेकर

♦ चंद्रगोमिन के व्याकरण में गुप्तों को जर्ट या जाट कहा गया है।

श्री गुप्त (लगभग 240 – 280 ई.)

♦ गुप्त वंश के संस्थापक – श्री गुप्त

♦ गुप्तकालीन अभिलेखों के आधार पर ‘श्री गुप्त’ गुप्तों के आदिराजा थे।

♦ श्रीगुप्त गुप्त वंश का प्रथम शासक है, जिसने ‘महाराज’ की उपाधि धारण की थी।

♦ श्रीगुप्त के पश्चात् उसका पुत्र घटोत्कच ने शासन किया।

♦ घटोत्कच (280 – 319 ई.) ने भी ‘महाराज’ की उपाधि धारण की।

चन्द्रगुप्त – प्रथम (319 – 350 ई.)

♦ चन्द्रगुप्त प्रथम को गुप्त वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।

♦ गुप्त वंश का प्रथम शासक जिसने ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण की।

♦ चन्द्रगुप्त प्रथम ने पाटलिपुत्र को गुप्त वंश की राजधानी बनाया।

♦ चन्द्रगुप्त ने वैशाली के लिच्छवी वंश की राजकुमारी कुमारदेवी के साथ विवाह किया तथा कुमारदेवी प्रकार के सिक्के चलाए।

♦ इन्होंने अपने राज्यारोहण की स्मृति में 319 ई. में गुप्त संवत् आरम्भ किया।

समुद्रगुप्त ‘पराक्रमांक’ (350 – 375 ई.)

♦ चन्द्रगुप्त के पश्चात् उसका पुत्र समुद्रगुप्त शासक बना।

♦ विंसेंट स्मिथ ने समुद्रगुप्त को ‘भारत का नेपोलियन’ कहा है।

♦ समुद्रगुप्त द्वारा जारी किए गए सिक्कों में कुछ पर ‘अश्वमेध पराक्रम’ अंकन तो कुछ पर सम्राट को वीणावादन करते हुए दिखाया गया है।

♦ समुद्रगुप्त को उसके सिक्कों पर लिच्छवी दोहित्र भी कहा जाता है।

♦ चीनी स्रोत के अनुसार श्रीलंका के शासक मेघवर्मन ने समुद्रगुप्त से बोधगया में बौद्धमठ बनाने की अनुमति माँगी।

♦ समुद्रगुप्त द्वारा अपनाई गई नीतियाँ –

(1) आर्यावर्त – प्रसभोद्धरण नीति (जड़मूल से उखाड़ फेंकना)

(2) दक्षिणापथ – ग्रहणमोक्षानुग्रह नीति

(3) आटविक राज्य – परिचारकीकृत नीति

(4) सीमावर्ती राज्य – सर्वकरदाना आज्ञाकरण प्रणामागम

(5) विदेशी राज्य नीति – आत्म निवेदन कन्योपायन दान गरुड़मंदक स्वविषय भुक्ति शासन, याचनानुपाय सेवा

समुद्रगुप्त के 6 प्रकार के सोने के सिक्के

1.    गरुड़ प्रकार :

2.    धनुर्धारी प्रकार :

3.    परशु प्रकार :

4.    अश्वमेध प्रकार :

5.    व्याघ्रहनन प्रकार :

6.    वीणावादन प्रकार :

चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ (375 – 415 ई.)

♦ समुद्रगुप्त की मृत्यु के बाद रामगुप्त शासक बना, यह कमजोर व निर्बल शासक था।

♦ रामगुप्त का उल्लेख बाणभट्ट द्वारा रचित हर्षचरितम् व राजशेखर की काव्यमीमांसा में भी मिलता है।

♦ चन्द्रगुप्त द्वितीय ने शकों को पराजित कर ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की। उसने शक शासक “रुद्रसिंह तृतीय” को पराजित किया। श क के विरुद्ध विजय के उपलक्ष्य में उसने चाँदी के सिक्के जारी किए।

♦ दिल्ली के महरौली लौह स्तम्भ अभिलेख में (संस्कृत भाषा) राजा चन्द्र का समय चन्द्रगुप्त द्वितीय के साथ मिलाया जाता है।

♦ फाह्यान (399 – 414 ई.) इसी के शासनकाल में भारत आया था।

♦ चन्द्रगुप्त द्वितीय की उपाधियाँ – देवश्री, देवगुप्त, देवराज, तत्परिगृहीत, विक्रमादित्य, परमभागवत, राजाधिराजर्षि, सहसाक।

♦ चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में नवरत्न-

1.कालिदास – नवरत्नों में सबसे प्रमुख थे।

2.वराहमिहिर – खगोल विज्ञानी एवं ज्योतिष

3.शंकु – वास्तुकार

4.धन्वन्तरी – चिकित्सक

5.क्षपणक – ज्योतिष

6.अमरसिंह – कोशकार

7.वेताल भट्ट – जादूगर

8.घटकर्पर – कूटनीतिज्ञ

9.वररुचि – वैयाकरण तथा प्रकृति प्रकाश के लेखक

चन्द्रगुप्त द्वितीय के 8 प्रकार के स्वर्ण सिक्के

(1)   धनुर्धारी प्रकार

(2)   सिंह-निहन्ता

(3)   अश्वारोही प्रकार

(4)   छत्रधारी प्रकार

(5)   पर्यङ्क प्रकार

(6)   पर्यङ्क स्थिति राजा-रानी प्रकार

(7)   ध्वजधारी प्रकार

(8)   चक्र-विक्रम प्रकार

कुमारगुप्त प्रथम (415 – 455 ई.)

♦उपाधियाँ : महेन्द्रादित्य, श्री महेंद्र, अश्वमहेंद्र, व्याघ्रबल, पराक्रम।

♦ प्रथम शासक जिसके अभिलेख – बांग्लादेश से भी प्राप्त होते हैं।

♦ गुप्त शासकों में सर्वाधिक अभिलेख लगाने का श्रेय कुमार गुप्त को जाता है।

♦ गुप्त शासकों में सर्वाधिक प्रकार के सिक्के (14 प्रकार) चलाने का श्रेय प्राप्त है। 

♦बयाना-मुद्राभाण्ड से कुमारगुप्त की करीब 623 मुद्राएँ मिली है।

♦ चीनी यात्री ह्वेनसांग ने कुमारगुप्त का नाम ‘शक्रादित्य’ बताया है।

♦ मध्यभारत (पाटलिपुत्र) में चाँदी के सिक्के चलाने का श्रेय जाता है।

♦ कुमार गुप्त ने अपने सिक्कों पर गरुड़ के स्थान पर मयूर का अंकन करवाया, जिससे इसके शैव अनुयायी होने का प्रमाण मिलता है।

नालन्दा बौद्ध विहार

♦ नालन्दा बौद्ध विहार की स्थापना कुमार गुप्त प्रथम के समय हुई।

♦ नालन्दा विश्वविद्यालय को बौद्ध धर्म का ऑक्सफोर्ड कहा जाता है।

♦ यहाँ धर्मगंज नामक पुस्तकालय है, जिसके तीन भाग हैं-

1. रत्नरंजक, 2. रत्नसागर, 3. रत्नोदधी

♦ चीनी ह्वेनसांग ने नालन्दा से शिक्षा प्राप्त की तथा वापस चीन जाते समय अपने साथ 6000 बौद्ध ग्रंथ ले गया।

स्कंदगुप्त (455 – 467 ई.)

♦ उपाधियाँ – क्रमादित्य, विक्रमादित्य, शक्रोपम, परमभागवत।

♦ गुप्त वंशावली का अन्तिम प्रतापी शासक माना जाता है।

♦ अपने पिता कुमार गुप्त के समय पुष्यमित्रों के आक्रमण का सामना किया तथा उनकी मृत्यु के बाद शासक बना।

♦ जूनागढ़ शिलालेख से ज्ञात होता है कि स्कंदगुप्त ने सुदर्शन झील का पुनर्निर्माण करवाया था। इस झील का पुनर्निर्माण पर्णदत्त और उसके पुत्र चक्रपालित की निगरानी में करवाया गया था।

♦ स्कन्दगुप्त के समय के सिक्कों में मिलावट आना शुरू हो गई थी।

♦ स्कन्दगुप्त ने नंदी (बैल) प्रकार की मुद्राएँ चलाई।

♦ हूणों को पराजित करने के बाद स्कन्दगुप्त ने ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की।

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