आज की इस पोस्ट में हम कक्षा 12 के भारतीय इतिहास का अध्याय 2 – राजा, किसान और नगर के नोट्स उपलब्ध करवा रहे हैं अगर आप NCERT पढ़ने में रुचि रखते हैं तो हमारे इन नोट्स को एक बार जरूर पढ़ें जिन्हें हमने बहुत ही सरल एवं आसान भाषा में तैयार किया है अध्याय 1 से संबंधित संपूर्ण नोट्स आपको इस पोस्ट में देखने को मिलेंगे जिन्हें आप पीडीएफ फॉर्मेट में हिंदी भाषा में नि शुल्क डाउनलोड भी कर सकते हैं
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अध्याय 2 – राजा, किसान और नगर
Table of contents
वैदिक सभ्यता
नोट :- हड़प्पा सभ्यता के पतन के बाद वैदिक सभ्यता आई, वैदिक सभ्यता आर्यों के द्वारा बनाई गई सभ्यता थी।
वैदिक सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थी, जो की 1500 ई . पू . से 600 ई . पू . तक चली, वैदिक काल में ही चारो वेदों की रचना हुई, वैदिक सभ्यता के बाद महाजनपद काल आया इस समय नए नगरो का विकास हुआ।
चार वेद :-
– ऋग्वेद
– यजुर्वेद
– सामवेद
– अर्थववेद
छठी शताब्दी ईसा पूर्व एक परिवर्तनकारी काल
– प्रारंभिक भारतीय इतिहास में छठी सदी ई . पू . को एक अहम बदलावकारी काल मानते है। इसका कारण आरंभिक राज्यों व नगरों का विकास, लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों का प्रचलन है।
– इसी समय में बौद्ध तथा जैन सहित भिन्न – भिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ। बौद्ध एवं जैन धर्म के प्रारंभिक ग्रंथों में महाजनपद नाम से सोलह राज्यों का जिक्र मिलता है।
– छठी शताब्दी ईसा पूर्व कृषि के लिए परिवर्तन काल माना गया है। इस काल मे लोहे के हल का प्रयोग हुआ जिससे कठोर जमीन को जोतना आसान हुआ। इस काल में धान के पौधे का रोपण शुरू हुआ। इससे फसलो की उपज बढ़ गई।
जनपद और महाजनपद
– ऋग्वेदिक युग मे राज्यो को जन कहा जाता था। तथा उत्तरवैदिक युग में राज्य को जनपद कहा जाता था।
– 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में देश के राजनीतिक क्षितिज पर जिन विनिन्न राज्यों का असतित्व दिखाई देता था उन्हें महाजनपद की संज्ञा दी गई है।
– इस समय के विभिन्न महाजनपदों का उल्लेख बौद्ध ग्रंथ के अगुन्तर निकाय एव जैन धर्म के ग्रंथ भगवतिसूत्र में हुआ है। इनमे अगुन्तर निकाय की सूची को अधिक विश्वसनीय एव प्रमाणित माना गया है।
– बौद्ध एवं जैन धर्म के प्रारंभिक ग्रंथों में महाजनपद नाम से सोलह राज्यों का जिक्र मिलता है। हालांकि महाजनपदों के नाम की तालिका इन ग्रंथों में एकबराबर नहीं है किन्तु वज्जि, मगध, कोशल, कुरु, पांचाल, गांधार एवं अवन्ति जैसे नाम अकसर मिलते हैं। इससे यह स्पष्ट है कि उक्त महाजनपद सबसे अहम महाजनपदों में गिने जाते होंगे।
– अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन था।
– लेकिन गण और संघ के नाम के राज्यों में लोगे का समूह शासन करता था।
– हर जनपद की राजधानी होती थी जिसे किल्ले से घेरा जाता था।
– किलेबंद राजधानियों के रख – रखाव और प्रारंभी सेनाओं और नौकरशाही के लिए अधिक धन की जरूरत थी।
– शासक किसानों और व्यपारियो से कर वसूलते थे।
– ऐसा हो सकता है कि पड़ोसी राज्यों को लूट कर धन इकटा किया जाता हो।
– धीरे – धीर कुछ राज्य स्थाई सेना और नोकरशाही रखने लगे।
गण एव संघ
– गण – गण शब्द का प्रयोग कई सदस्य वाले समूह के लिए किया जाता था।
– संघ – संघ शब्द का प्रयोग किसी संगठन या सभा के लिए किया जाता हैं।
– गण या संघ में कई शासक होते हैं कभी – कभी लोग एक साथ शासन करते थे। सभाओं में वाद – विवाद के जरिए निर्णय लिया जाता था। गणो की सभाओं में स्त्रियों, दसो, कम्पकारो की भागीदारी नही थी। इसलिए इन्हें लोकतन्त्र नही माना जाता।
– भगवान बुद्ध और भगवान महावीर दोनो इन्ही गणो से सम्बंधित थे। वज्जि संघ की ही भांति कुछ राज्यो में भूमि सहित अनेक आर्थिक स्रोतों पर राजा गणसामुहिक नियंत्रण रखते थे।
मगध महाजनपद
मगध आधुनिक विहार राज्य में स्थित है। मगध छठी से चौथी शताब्दी ई. पूर्व में सबसे शक्तिशाली महाजनपद बन गया था।
– प्रारंभ में राजगृह मगध की राजधानी थी। पहाड़ियों के बीच बसा राजगृह एक किलेबंद शहर था। बाद में 4 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र को राजधानी बताया। (वर्तमान में पाटलिपुत्र को पटना कहते हैं) अनेक राजधानियो की किलेबंदी लकड़ी, ईट या पत्थर की ऊँची दीवारे बनाकर की जाती थी।
डॉ हेमचन्द्र राय चौधरी ने मगध के बारे में कुछ इस प्रकार बताया।
– मगध का प्ररंभिक इतिहास हर्यक कुल में राजा बिम्बिसार से प्रारंभ होता है मगध को इन्होंने दिग्विजय और उत्कर्ष के जिस मार्ग पर अग्रसर किया, वह तभी समाप्त हुआ जब कलिंग के युद्ध के उपरांत अशोक ने अपनी तलवार को म्यान में शांति दी
मगध महाजनपद इतना समृद्ध क्यों था और शक्तिशाली महाजनपद बनने के कारण क्या थे ?
– ये प्राकृतिक रूप से सुरक्षित था। इस जनपद के ईद गिर्द पहाड़िया थी जो प्राकृतिक रूप से इसकी रक्षा करती थी।
– यहाँ उपजाऊ भूमि थी। गंगा और सोन नदी के पानी से सिंचाई के साधन उपलब्ध थे जिसके कारण यहां फसल अच्छी होती थी।
– यहाँ की जनसंख्या और जनपदों से अधिक थी।
– जंगलों में हाथी उपलब्ध थे। जंगल में हाथी पाए जाते थे जो कि सेना के बहुत काम आते थे।
– योग्य तथा महत्वकांक्षी शासक थे। मगध के राजा बहुत योग्य और शक्तिशाली थे।
– गंगा और सोन नदी के पानी से सिंचाई होती थी जिससे व्यापार में वृद्धि होती थी।
– लोहे की खदानें थी जिससे सेना में हथियार बनाए जाते थे।
– लेकिन आरंभिक जैन और बौद्ध लेखको ने मगध की प्रसिद्धि का कारण विभिन्न शासको तथा उनकी नीतियों को बताया है। जैसे बिंबिसार, आजातशत्रु ओर महापदमनन्द जैसे प्रसिद्ध राजा अत्यंत महत्वकांक्षी शासक थे औऱ इनके मंत्री उनकी नीतियाँ लागू करते थे।
एक आरंभिक सम्राज्य (मौर्य साम्राज्य) 321-185 BC :-
मगध के विकास के साथ – साथ मौर्य सम्राज्य का उदय हुआ।
मौर्य साम्राज्य की स्थापना चंद्र गुप्त मौर्य ने (321 ई . पू) में की थी जो कि पश्चिम में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान तक फैला था।
चन्द्रगुप्त मौर्य
चंद्रगुप्त मौर्य (chandragupta maurya) का जन्म 340 ईसवी पूर्व में पटना के बिहार जिले में हुआ था। भारत के प्रथम हिन्दू सम्राट थे। इन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु (विष्णुगुप्त,कौटिल्य, चाणक्य) थे।
मौर्य वंश के बारे में जानकारी के स्रोत :-
– मूर्तिकला
– समकालीन रचनाएँ मेगस्थनीज द्वारा लिखत इंडिका पुस्तक : चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आए यूनानी राजदूत मंत्री द्वारा लिखी गई पुस्तक से जानकारी मिली है।
– अर्थशास्त्र पुस्तक (चाणक्य द्वारा लिखित) : इसके कुछ भागो की रचना कौटिल्य या चाणक्य ने की थी इस पुस्तक से मौर्य शासकों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
– जैन, बोद्ध, पौराणिक ग्रंथों से : जैन ग्रंथ बौद्ध ग्रंथ पौराणिक ग्रंथों तथा और भी कई प्रकार के ग्रंथों से मौर्य साम्राज्य के बारे में जानकारी मिलती है।
– अशोक के स्तमभो से : अशोक द्वारा लिखवाए गए स्तंभों से भी मौर्य साम्राज्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
– अशोक पहला सम्राट था जिसने अधिकारियों ओर प्रजा के लिए संदेश प्रकृतिक पत्थरो ओर पॉलिश किये हुए स्तम्भों पर लिखवाए थे।
मौर्य साम्राज्य में प्रशासन :-
मौर्य साम्राज्य के पाँच प्रमुख राजनीतिक केंद्र थे।
– राजधानी – पाटलिपुत्र और चार प्रांतीय केंद्र –
– तक्षशिला,
– उज्जयिनी,
– तोसलि,
– सुवर्णगिरी
इन सब का उल्लेख अशोक के अभिलेखो में किया जाता है।
– पश्चिम मे पाक से आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और उत्तराखण्ड तक हर स्थान पर एक जैसे संदेश उत्कीर्ण किर गए थे।
– ऐसा माना जाता है इस साम्राज्य में हर जगह एक समान प्रशासनिक व्यवस्था नहीं रही होगी क्योकि अफगानिस्तान का पहाड़ी इलाका दूसरी तरफ उडीसा तटवर्ती क्षेत्र।
– तक्षशिला और उज्जयिनी दोनो लंबी दूरी वाले महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग थे।
– सुवर्णगिरी (सोने का पहाड़) कर्नाटक में सोने की खाने थी।
– साम्राज्य के संचालन में भूमि और नदियों दोनों मार्गो से आवागमन बना रहना आवश्यक था। राजधानी से प्रांतो तक जाने में कई सप्ताह या महीने का समय लगता होगा।
सेना व्यवस्था :-
मेगास्थनीज़ के अनुसार मौर्य साम्राज्य में सेना के संचालन के लिए 1 समिति और 6 उप्समीतियाँ थी।
– नौसेना का संचालन करना।
– दूसरी का काम यातायात व खान पान का संचालन करना।
– तीसरी का काम पैदल सैनिकों का संचालन करना।
– चौथी का काम अश्वरोही का संचालन करना।
– पाँचवी का काम रथारोही का संचालन करना।
– छठवी का काम हथियारो का संचालन करना।
अन्य उपसमितियां :-
– दूसरी उपसमिति का दायित्व विभिन्न प्रकार का था। जैसे :-
– उपकरणो को ढोने के लिए बैलगाड़ियो की व्यवस्था करना
– सैनिको के लिए भोजन की व्यवस्था करना।
– जानवरो के लिए चारे की व्यवस्था करना।
– तथा सैनिको की देखभाल करने के लिए सेवको और शिल्पकारों की नियुक्ति करना।
मेगस्थनीज :-
– मेगस्थनीज यूनान का राजदूत और एक महान इतिहासकार था।
– मेगस्थनीज ने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम इंडिका था, इस पुस्तक से हमें मौर्य साम्राज्य की जानकारी मिलती है।
– मेगस्थनीज ने बताया की मौर्य साम्राज्य में सेना के संचालन के लिए 1 समिति और 6 उप्समीतियाँ थी।
सम्राट अशोक
– अशोक भारतीय इतिहास के सर्वाधिक रोचक व्यक्तियों में से एक है। अशोक की पहचान 1830 ई० के दशक में हुई। जब ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अधिकारी जेम्स प्रिंसेप ने ब्राहमी और खरोष्ठी लिपियों का अर्थ निकाला। अशोक के अभिलेख प्राकृत में हैं। जबकि पश्चिमोत्तर से मिले आरमाइक और यूनानी भाषा मे है।
– प्राकृत के आधिकांश अभिलेख ब्राहमी लिपि में लिखे गए थे जबकि पश्चिमोत्तर के कुछ अभिलेख खरोष्ठी में लिखे गए। अरामाइक और यूनानी लिपियों का प्रयोग अफगानिस्तान में मिले अभिलेखों में किया गया था। इन लिपियो का उपयोग सबसे आरंभिक अभिलेखों और सिक्को में किया गया है।
– प्रिंसेप को पता चलता है की अब अधिकांश अभिलेखो और सिक्को पर प्रियदस्सी यानी मनोहर मुखाकृति वाले राजा का नाम लिखा है। कुछ अभिलेखो पर राजा का नाम अशोक भी लिखा है।
– अशोक ने कलिंग के युद्ध के बाद युद्ध का परित्याग किया तथा धम्म विजय की नीति को अभिलेखों पर खुदवाया ताकि उसके वंशज भी युद्ध न करे।
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Pages | 32 |
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