इतिहास के प्रमुख स्रोत : पाषाण काल से संबंधित संपूर्ण नोट्स

इस पोस्ट में हम प्राचीन भारत का इतिहास के एक टॉपिक इतिहास के प्रमुख स्रोत : पाषाण काल से संबंधित क्लासरूम नोट्स उपलब्ध करवा रहे हैं जिसमें आपको पाषाण काल , नवपाषाण काल इत्यादि के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए मिलेगा इस टॉपिक के नोट्स को पढ़ने के पश्चात आपको इसके लिए अन्य कहीं से पढ़ने की आवश्यकता नहीं होगी 

यह नोट्स ऑफलाइन क्लासरूम से तैयार किए गए हैं ताकि आप अगर सेल्फ स्टडी कर रहे हैं तो इन नोट्स के माध्यम से आप बिल्कुल फ्री घर बैठे तैयारी कर सकें

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पाषाणकाल

परिचय

जेम्स मिल ने अपनी पुस्तक “हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इण्डिया” में भारतीय इतिहास को तीन भागों में विभाजित किया है।

(1) प्राचीन काल (हिन्दु काल)

(2) मध्य काल (मुस्लिम काल)

(3) आधुनिक काल

1. पाषाणकाल

पाषाणकाल को तीन भागों में बाँटा गया हैं

(1) पुरापाषाण काल (2) मध्य पाषाण काल (3) नव पाषाण काल

1. पुरापाषाणकाल (Palaeolihic Age)

यह प्रागैतिहासिक युग का वह समय है जब मानव ने पत्थर के औजार बनाना सर्वप्रथम प्रारम्भ किया था।

इस युग में धरती बर्फ से ढँकी हुई थी। भारतीय पुरापाषाणकाल को मानव द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पत्थर के औजारों के स्वरुप और जलवायु में होने वाले परिवर्तन के आधार पर तीन भागों में बाँटा गया है-

(i)  निम्न पुरापाषाणकाल : लगभग (500000 ई.पू. से 50000 ई.पू. के मध्य)

(ii) मध्य पुरापाषाणकाल : लगभग (50000 ई.पू. से 40000 ई.पू. के मध्य)

(iii)उच्च पुरापाषाणकाल : लगभग (40000 ई.पू. से 10000 ई.पू. के मध्य)

भारत में पुरापाषाणकाल के अवशेष आन्ध्रप्रदेश के करनूल, कर्नाटक के हुस्गी, ओडिशा के कुलिआना तथा राजस्थान के डीडवाना एवं मध्यप्रदेश के भीमबेटका से प्राप्त हुए है।

2. मध्यपाषाणकाल ( Mesolihic Age )

यह पुरापाषाणकाल और नवपाषाणकाल के मध्य का संक्रमण काल है।

इसका समयकाल लगभग 9000 ई.पू. से 4000 ई.पू. तक माना जाता है। इस काल में पत्थर के बहुत छोटे औजार होते थे।

मध्य पाषाण काल में प्रमुख औजार फलक, पाँइटं, खुरचन, वेधनी जैसे कई सुक्ष्म पाषाण उपकरण मौजुद थे।

पशुपालन का प्रारंम्भिक साक्ष्य भी इसी काल में मिलता है।

इस काल में मध्यप्रदेश के आदमगढ और राजस्थान के बागोर से पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य मिले है।

प्रमुख मध्यपाषाणकालीन क्षेत्र निम्नलिखित है- सांभर झील, लंगनाज, सराय नाहर, महादाहा, भीमबेटका, वीरभानपुर इत्यादि।

3. नव पाषाण काल ( New Sone Age )

मानव ने आग का आविष्कार इसी समय किया था। (आग का प्रयोग अपने सामान्य जीवन में जैसे – भोजन पकाने, जंगल साफ करने इत्यादि में)।

स्थायी बसावट के साक्ष्य – मेहरानगढ़ (पाक) से मिलते हैं। यही से खेती बाड़ी या कृषि के साक्ष्य मिले हैं।

पहिये का आविष्कार – इस काल का सबसे क्रांतिकारी आविष्कार माना जाता है।

आदिमानव ने सर्वप्रथम धातु के रूप में ताँबे का अविष्कार किया।

अनाज के भण्डारण हेतु उसने मृदभाण्ड बनाए।

नव पाषाण काल में मानव ने तीव्रता से प्रगति की । यद्यपि इस काल में मानव के हथियार पत्थर के ही थे, परन्तु उन्हें नुकीला और पॉलिश करके चमकीला बना दिया गया था इस काल में मानव ने अन्य कालों की अपेक्षा अधिक उन्नति कर ली थी।

इस काल में मानव खेती करके अन्न उपजाने लगा, अत: अब मानव उदरपूर्ति के लिए भोजन का उपयोग करने लगा। अग्नि की सहायता से वह अपना भोजन पकाने लगा। खुदाई में भोजन पकाने के अनेक बर्तन मिले हैं।

नवपाषाणिक संस्कृति अपनी पूर्वगामी संस्कृतियों की अपेक्षा अधिक विकसित थी। इस काल का मानव न केवल खाद्य पदार्थों का उपभोक्ता था, वरन् उत्पादक भी था। वह कृषि कर्म और पशुपालन से पूर्णत: परिचित हो चुका था।

आद्य इतिहास  

पाषाण युग की समाप्ति के बाद धातुओं के युग का प्रारम्भ हुआ। इसी युग को आद्य ऐतिहासिक काल या धातु काल कहा जाता है।

हड़प्पा संस्कृति तथा वैदिक संस्कृति की गणना इस काल से की जाती है।

काल वर्गीकरणऔजारों का भारतीय प्रकारजीवन शैलीप्रमुख स्थल
पुरापाषाण कालनिम्न पुरापाषाण युगकोर, औजार जैसे हस्त कुठार क्लीवर तथा चॉपिंग औजारउपकरण-शल्क, गंडासा, खंडक, हस्तकुठार और बटिकाश्म।आखेट तथा संग्रहणसोहन नदी घाटी(पाकिस्तान का पंजाब प्रांत), सिंगरौली घाटी (उ. प्र.), छोटा नागपुर, नर्मदा घाटी
मध्य पुरापाषाण युगफ्लेक औज़ार (लेवालॉइस तकनीक से तैयार किए गए कोर द्वारा बने औजार)औजार- बेधक, खुरचनी और वेधनियाँ।आखेट तथा संग्रहणनेवासा (महाराष्ट्र), डीडवाना (राजस्थान), भीमबेटका, नर्मदा घाटी (मध्यप्रदेश), पुरुलिया (पश्चिम बंगाल) तुंगभद्रा नदी घाटी
उच्च पुरापाषाण युगफ्लेक पर बने ब्लेड जैसे समांतर फलक ब्लेड और ब्युरिनऔजार- तक्षणी, फलक, खुरचनी, हार्पून, शुद्ध फलक उद्योग बेलन घाटी से, रेनीगुंटा से फलकों व तक्षणियों का विशाल संग्रह एवं कुरनूल से हड्डी के उपकरण मिले हैं।आखेट तथा संग्रहणरेनीगुंटा तदा कुरनूल (आन्ध्रप्रदेश), शोलापुर, बीजापुर, बेलन घाटी।
मध्य पाषाण कालमाइक्रोलिथ या सूक्ष्म औजारउपकरण – लघु पाषाण (माइक्रोलिथ) से बने औजार-ब्लेड, अर्धचन्द्राकार उपकरण, इकधार फलक वाले औजार, त्रिकोण, नवचन्द्राकार तथा समलंब औजार, नुकीला औजार।आखेटसंग्रहणमछली पकड़ना तथा पशुपालन का आरम्भबागोर, पंचपद्रा घाटी व सोजत (राजस्थान), लंघनाज (गुजरात), अक्खज, बलसाना, विन्ध्य व सतपुड़ा के क्षेत्र, व भीमबेटका (मध्यप्रदेश) ,आदमगढ़ (बिहार), वीरभानपुर (प.बंगाल), संगनकल्लु (कर्नाटक), सरायनाहर राय, लेखहीमा, मोरहाना पहाड़ (उ. प्र.)
नव पाषाण कालसेल्ट चमकीले हस्त कुठार और पूरा कुठारमुख्य औजार- पॉलिस किए हुए पत्थर के औजार, पत्थर की कुल्हाड़ी, छोटे पत्थर के औजार व हड्डी के औजारपशुपालन और कृषि पर आधारित खाद्यान्न उत्पादन– आदमगढ़ व चिरांद (बिहार), ब्लूचिस्तान, उत्तर प्रदेश का बेलन घाटी, बुर्जहोम व गुफ्फरकराल (जम्मू-कश्मीर), मेहरगढ़, प्रायद्वीपीय भारत, कोटदीजी। 
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