Mugal Kal History Notes – मुगल काल का इतिहास

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मध्यकालीन भारत का इतिहास – मुगल काल

इंडो – इस्लामिक संस्कृति का काल

भारत में मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर था तथा वास्तविक संस्थापक अकबर को माना जाता है।

सर्वाधिक समय तक शासन अकबर तथा सबसे कम समय तक शासन मुगल बादशाह रफी-उद्-जात (3 माह 7 दिन) ने किया।

बाबर (1526-30 ई.) :

1494 ई. में ट्रांस ऑक्सियाना की छोटी-सी रियासत फरगना का बाबर उत्तराधिकारी बना।

बाबर के पिता का नाम उमर शेख मिर्जा था, जो चगताई तुर्क था।

इसमें पहली बार बारूद (तोपखाने) का प्रयोग किया गया था।

21 अप्रैल, 1526 को बाबर तथा इब्राहिम लोदी के बीच पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ था।

इस युद्ध में बाबर ने उस्मानी विधि व तुलुगमा पद्धतिका प्रयोग किया।

इस युद्ध में इब्राहिम लोदी पराजित हुए तथा दिल्ली एवं आगरा तक का प्रदेश बाबर के अधीन हो गया।

बाबर अपनी उदारता के कारण ‘कलंदर’ नाम से भी जाना जाता है।

27 अप्रैल, 1526 को बाबर ने दिल्ली में मुगल वंश के संस्थापक के रूप में राज्याभिषेक करवाया।

दिसम्बर, 1530 में आगरा में बाबर की मृत्यु

बाबर का मकबरा काबुल में है।

खानवा युद्ध

खानवा युद्ध से पहले बाबर ने “जिहाद” का नारा दिया

आगरा से 40 किमी. दूर खानवा की लड़ाई 17 मार्च, 1527 ई. में बाबर तथा राणा सांगा के बीच लड़ी गई, जिसमें राणा सांगा पराजित हुए।

इस युद्ध में सांगा के घायल होने पर झाला अज्जा ने छत्र धारण किया था।

युद्ध में विजयी होने के बाद बाबर ने “गाजी” की उपाधि धारण की।

चंदेरी युद्ध : (29 जनवरी, 1528 ई.)

खानवा के बाद बाबर ने चंदेरी के युद्ध में राजपूत सरदार मेदिनीराय को पराजित कर चंदेरी पर अधिकार कर लिया।

बाबर की आत्मकथा ‘तुजुक-ए-बाबरी’ का विश्व साहित्य के शास्त्रीय ग्रन्थों में स्थान है। बाबरनामा (तुर्की भाषा में) का फारसी भाषा में अनुवाद ‘रहीम-खान-ए-खाना’ ने किया।

घाघरा का युद्ध (6 मई 1529 ई.)

यह युद्ध बाबर व बिहार के अफगान सरदार महमूद लोदी के मध्य हुआ जिसमें बाबर विजयी हुआ था।

यह युद्ध मध्यकाल का प्रथम युद्ध जो थल व जल पर लड़ा गया था।

हुमायूँ

हुमायूँ 1530 ई. में 23 वर्ष की आयु में आगरा में गद्दी पर बैठा।

29 जून, 1539 में चौसा की लड़ाई में हुमायूँ शेर खाँ से पराजित हो गया था।

हुमायूँ 1555 ई. में सूर साम्राज्य के पतन के बाद दिल्ली पर पुनः अधिकार करने में सफल हुआ।

हुमायूँ सप्ताह के सात दिन, अलग-अलग रंग के कपड़े पहनता था। हुमायूँ का मकबरा दिल्ली में हाजी बेगम द्वारा बनवाया गया। इसे ताजमहल का पूर्वगामी भी कहा जाता है।

अकबर (1556-1605 ई.)

14 फरवरी, 1556 में कलानौर में अकबर की ताजपोशी 13 वर्ष 4 महीने की अवस्था में हुई थी।

बैरम खाँ को खान-ए-खाना की उपाधि प्रदान की गई तथा राज्य का वकील बनाया गया।

5 नवम्बर, 1556 में हेमू के नेतृत्व में तथा मुगलों के बीच पानीपत की दूसरी लड़ाई हुई जिसमें हेमू पराजित हुआ एवं मारा गया।

1574-76 ई. में अकबर ने बिहार तथा बंगाल को मुगल साम्राज्य में शामिल किया।

अकबर ने महाराणा प्रताप से संधि हेतु क्रमश: चार संधि प्रस्तावकों जलाल खाँ (1572 ई.), मानसिंह (1573 ई.) भगवन्तदास (1573 ई.), टोडरमल (1573 ई.) को भेजा, लेकिन ये असफल रहे।

हल्दीघाटी युद्ध का आँखों देखा वर्णन बदायूँनी ने किया।

18 जून, 1576 को मुगल सेना तथा मेवाड़ के शासक राणा प्रताप की सेना के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ।

कर्नल जेम्स टॉड ने हल्दीघाटी को मेवाड़ का मैराथन कहा तथा दिवेर युद्ध को मेवाड़ की थर्मोपल्ली कहाँ है।

1601 ई. में असीरगढ़ के किले को विजित किया गया, जो कि अकबर का अंतिम सैनिक अभियान था।

1605 ई. में अतिसार रोग से अकबर की मृत्यु हो गई थी।

अकबर का मकबरा आगरा के समीप सिकन्दरा में है।

अकबर ने 1570 ई. में नागौर दरबार का आयोजन किया था।

1582 ई. में इबादतखाना को बंद कर दिया गया।

बदायूँनी अकबर का घोर आलोचक था।

1582 ई. में अकबर ने विभिन्न धर्मों के सार संग्रह के रूप में ‘दीन-ए-इलाही’ की घोषणा की, जो एकेश्वरवाद पर आधारित थी।

दीन-ए-इलाही का प्रधान पुरोहित अबुल फजल था।

विन्सेन्ट स्मिथ के अनुसार दीन-ए-इलाही अकबर की मूर्खता का प्रतीक था, बुद्धिमानी का नहीं

अबुल फजल के अनुसार 1564 ई. में गैर-मुसलमानों से वसूल किए जाने वाले जजिया कर को अकबर ने समाप्त कर दिया,

1571 ई. में फतेहपुर सीकरी का निर्माण करवाकर राजधानी आगरा से फतेहपुर स्थानान्तरित की गई।

प्रसिद्ध सूफी संत शेख सलीम चिश्ती के साथ अकबर केघनिष्ठ संबंधथे।

राल्फ फिंच अकबर के दरबार में आने वाला पहला अंग्रेज व्यापारी था।

टोडरमल राजस्व मामलों का विशेषज्ञ था। उसने जब्ती प्रथा को जन्म दिया।

अकबर के नवरत्न में बीरबल, अबुल फजल, फैजी, टोडरमल, भगवानदास, तानसेन, मानसिंह, अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना आदि शामिल थे।

महेशदास नामक ब्राह्मण को अकबर ने बीरबल की पदवी दी थी।

अकबर ने लड़कों व लड़कियों के विवाह की आयु क्रमश: 16 वर्ष व 14 वर्ष निर्धारित की

अकबर के समय की प्रमुख घटनाएँ

1563 ई.तीर्थ यात्रा कर की समाप्ति।
1564 ई.जजिया की समाप्ति।
1569-70ई.फतेहपुर सीकरी की स्थापना।
1575 ई.मनसबदारी व्यवस्था प्रारम्भ की गई।
1575 ई.फतेहपुर सीकरी में इबादत्त खाने का निर्माण।
1577 ई.सिख गुरु रामदास को 500 बीघा जमीन दी जहां बाद में अमृतसर नगर बसा।
1577-78 ई.सिजदा एवं पायबोस की शुरुआत
1578 ई.इबादत खाने को सभी धर्मों के लिए खोला गया।
1580 ई.संपूर्ण साम्राज्य 12 सूबों में बाँटा गया
1580 ई.टोडरमल द्वारा दहसाला प्रणाली लागू।
1582 ई.दीन-ए-इलाही की घोषणा।
1583 ई.इलाही संवत् नामक नया कैलेण्डर जारी किया गया।

जहाँगीर (1605-1627 ई.)

अकबर जहाँगीर (सलीम) को शेखोबाबा कहकर पुकारता था।

जहाँगीर का राज्याभिषेक आगरा के किले में 1605 ई. में हुआ।

देश के सामान्य कल्याण तथा उत्तम प्रशासन के लिए बारह आदेशों के प्रवर्तन के साथ उसके शासन का शुभारम्भ हुआ, इन्हें आइने-जहाँगीरी कहा जाता है।

1613-1614 ई. में शहजादा खुर्रम के नेतृत्व में किया गया मेवाड़ अभियान सफल रहा तथा मेवाड़ के राणा ने 1615 ई. में मुगलों से संधि कर ली थी।

इसके शासनकाल में न्याय की जंजीर नाम से एक सोने की जंजीर आगरा दुर्ग के शाहबुर्ज तथा यमुना के तट पर एक पत्थर के खम्भे के बीच लगवाई थी।

कैप्टन हॉकिन्स 1608 ई. में जहाँगीर के समय “हैक्टर” नामक जहाज से भारत आया था।

1611 ई. में मिर्जा गयास बेग की पुत्री मेहरूनिसा के साथ जहाँगीर का विवाह हुआ था।

सम्राट ने इसे ‘नूरमहल’ की उपाधि दी, जिसे बाद में बदलकर नूरजहाँ कर दिया गया। 1613 ई. में बादशाह बेगम की उपाधि भी दी गई।

नूरजहाँ गुट में एत्माद्-उद-दौला अस्मत बेगम (नूरजहाँ की माँ) आसफ खाँ तथा शहजादा खुर्रम शामिल था।

सर टॉमस रो जहाँगीर के समय 1615 ई. में भारत आया।

अहमदनगर विजय के बाद जहाँगीर ने खुर्रम को “शाहजहाँ” की उपाधि प्रदान की इसने अहमदनगर के वजीर मलिक अम्बर को पराजित किया था।

जहाँगीर ने बीजापुर के सुल्तान इब्राहीम आदिल शाह द्वितीय को “फर्जन्द” की उपाधि दी।

जहाँगीर का मकबरा रावी नदी के किनारे शाहदरा (लाहौर) में है।

जहाँगीर के काल में भारत में तंबाकू की खेती प्रारम्भ हुई थी।

नूरजहाँ ने आगरा में अपने पिता “एतमादुद्दौला” का मकबरा” बनबाया ।

जो “पित्राड्यूरा शैली” में निर्मित प्रथम मकबरा है।

नूरजहाँ की माँ अस्मत बेगम को इत्र के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है।

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