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मध्यकालीन भारत का इतिहास – मुगल काल | Part 2
शाहजहाँ ( 1628-1658 ई. )
1627 ई. में जहाँगीर की मृत्यु के समय शाहजहाँ दक्कन में था।
शाहजहाँ के बचपन का नाम खुर्रम था उसकी माता जगत गोसाई (जोधाबाई) मोटा राजा उदयसिंह की पुत्री थी।
शाहजहाँ ने “अर्जुमन्दबानो बेगम” से विवाह किया जिसे बाद में मुमताज की उपाधि प्रदान की ताजमहल इसी की याद में बनवाया गया।
शाहजहाँ ने इलाही संवत् के स्थान पर वापिस “हिजरी संवत्” की शुरुआत की
शाहजहाँ के सिंहासन “तख्त-ए-ताउस” का शिल्पकार बेबादल खाँ था।
धरमत (उज्जैन) के मैदान में 25 अप्रैल, 1658 को मुराद और औरंगजेब की संयुक्त सेना का मुकाबला दाराशिकोह की सेना, (जिसका नेतृत्व जसवंत सिंह तथा कासिम खाँ कर रहे थे) के मध्य हुआ। युद्ध का परिणाम औरंगजेब के पक्ष में रहा।
औरंगजेब ने शाहजहाँ को 1658 ई. में आगरा के किले में कैद किया।
शाहजहाँ के शासनकाल में यूरोपीय यात्री फ्रांसीस बर्नियर ने भारत की यात्रा की थी।
शाहजहाँ के सिंहासन ‘तख्त-ए-ताऊस’ में विश्व का सर्वाधिक महंगा हीरा कोहिनूर लगा था।
औरंगजेब ( 1658-1707 ई. )
आगरा पर अधिकार के पश्चात् 1658 ई. में उसने ‘आलमगीर’ की उपाधि धारण की थी।
वीरता व साहस के लिए शाहजहाँ ने औरंगजेब को “बहादुर” की उपाधि भी दी
औरंगजेब को कुरान कंटस्थ होने के कारण ”हाफिज“ भी कहा गया था।
1679 ई. में हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया था।
औरंगजेब के इस्लामिक कट्टरता के कारण “जिन्दापीर” तथा सादगी से भरे जीवन के लिए “शाही दरवेश” भी कहा जाता था
1686 ई. में बीजापुर को मुगल साम्राज्य में शामिल किया गया। तत्कालीन शासक सिकन्दर आदिलशाह था।
1675 ई. में औरंगजेब ने गुरु तेगबहादुर को प्राणदंड दे दिया।
मुगल प्रशासन
मुगल प्रशासनिक मॉडल का जनक (संस्थापक) अकबर था।
आइने-अकबरी (अबुल फजल) के अनुसार बादशाह वही बनता है जो ईश्वर का प्रतिनिधित्व तथा पृथ्वी पर ईश्वर का दूत होता है।
मुगल प्रशासन में बादशाह को सहायता देने हेतु एक मंत्रि-परिषद् होती थी, जिसे विजारत कहा जाता था।
बाबर ने 1507 ई. में मिर्जा की उपाधि का त्याग कर बादशाह (पादशाह) की उपाधि धारण की यह उपाधि धारण करने वाला यह प्रथम शासक था।
1579 ई. में अकबर ने मजहर की घोषणा की। इस मजहर का अर्थ था अगर किसी धार्मिक विषय पर कोई वाद-विवाद की स्थिति प्रकट होती है तो इसमें बादशाह अकबर का फैसला सर्वोपरि होगा और यह फैसला सबको स्वीकार करना पड़ेगा।
मुगल कालीन केन्द्रीय प्रशासन
प्रान्तीय (सूबा) शासन व्यवस्था
बाबर और हुमायूँ के शासन की प्रान्तीय व्यवस्था विकसित नहीं हो पाई थी।
मुगल कालीन प्रान्तीय प्रशासन के विकास का श्रेय अकबर को जाता है जिन्होंने 1580 ई. में मुगल साम्राज्य को सूबों में विभाजित किया तथा सूबों के प्रमुख अधिकारी सूबेदार व सूबाई दीवान होते थे।
दीवान–ए–कुल :- अकबर ने वकील (प्रधानमंत्री) की शक्तियों को कम करने हेतु 1565 ई. में इस पद का सृजन किया तथा इसके निम्न कार्य थे जैसे :-
– राजस्व व वित्त मामलों का प्रमुख होता था।
–राजस्व नीति का निर्माण करना।
– सूबई दीवान की नियुक्ति बादशाह द्वारा दीवान-ए-कुल की सलाह से की जाती थी।
मुस्तौफी :– इसका प्रमुख कार्य लेखा परीक्षक (ऑडीटर जनरल) करना।
मीर बख्शी:- यह सैनिक विभाग का प्रमुख होता था। मीर बख्शी सेनापति नहीं होता था क्योंकि सर्वोच्च सेनापति बादशाह स्वयं होता था।
मीर-ए-सामा:
इस पद का सृजन अकबर द्वारा किया गया, औरंगजेब के काल में इसे “खाने सामा” कहा जाने लगा।
अकबर के काल में मीर-ए-सामा दीवान के अधीन कार्य करता था, परन्तु जहाँगीर ने इसे स्वतंत्र मंत्री का दर्जा दे दिया।
यह घरेलू मामलों का प्रधान होता था, बादशाह तथा महल की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता था।
सद्र-उस-सुदूर :-
धार्मिक मामलों का प्रमुख होता था, जो बादशाह को सलाह भी देता था।
मुगलकालीन अन्य अधिकारी
अधिकारी | विभाग/कार्य |
1. मीर-ए-आतिश (मीरआतिश) | शाही तोपखाने का प्रमुख |
2. मीर-ए-बर्र | वन विभाग का प्रमुख होता था |
3. मीर-ए-बहर | जल सेना का प्रमुख व शाही नौकाओं की देखरेख करने |
6. मीर-ए-तोजक | धार्मिक उत्सवों का प्रबंध करने वाला अधिकारी |
9. हरकारा | संदेश वाहक व गुप्तचर |
प्रांतीय प्रशासन
मनसबदारी प्रथा:- मनसबदारी प्रथा अकबर ने शुरू की थी।
मनसब, दरअसल फारसी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब पद, ओहदा या दर्जा होता है।
यह प्रथा दशमलव प्रणाली पर आधारित थी। इसकी सबसे छोटी इकाई 10 थी और सबसे बड़ी इकाई 10,000 थी।
मनसबदारी प्रथा का आरम्भ अकबर ने 1575 ई. में किया।
मीर-ए-अदल :
इसकी नियुक्ति सर्वप्रथम अकबर द्वारा की गई थी।
यह दान, (अनुदान) व उत्तराधिकार से संबंधित मामलों का निपटारा करता था।
सरकार (जिला) प्रशासन :
मुगलकालीन अर्थव्यवस्था
बाबर के सिक्के:-
बाबर ने काबुल में शाहरुख नामक चाँदी का सिक्का चलाया व कन्धार में बाबरी नामक चाँदी का सिक्का चलाया।
शेरशाह सूरी:-
शेरशाह सूरी ने 180 ग्रेन (14 ग्राम) का शुद्ध चाँदी का रुपया चलाया।
शेरशाह सूरी ने ताँबे का सिक्का चलाया जिसे ‘पैसा’ कहा जाता था।
शेरशाह सूरी द्वारा प्रचलित रुपया आधुनिक भारत की मुद्रा का आधार माना जाता है।
अकबर के सिक्के:-
मुगलकालीन अर्थव्यवस्था को सुव्यवस्थित करने का श्रेय अकबर को जाता है।
अकबर ने 1577 ई. में दिल्ली में एक टकसाल की स्थापना करवाई तथा इसका अध्यक्ष ‘ख्वाजा अब्बदुसम्मद’ को नियुक्त किया।
इलाही:-
यह सोने का गोल सिक्का था जिसका मूल्य 10 रुपये के बराबर था।
शंसब:-
यह अकबर द्वारा प्रचलित किए गए सिक्कों में से सबसे बड़ा सिक्का था।
इसका उपयोग बड़े लेन–देनों में किया जाता था।
इस सिक्के का मूल्य 101 तौला के बराबर होता था।
चाँदी के सिक्के:-
जलाली:- यह चाँदी का चौकोर सिक्का था।
ताँबे के सिक्के:-
दाम:-
यह सिक्का रुपये के 40 वें भाग के बराबर होता था।
अकबर एकमात्र ऐसा शासक माना जाता है जिसने सूर्य व चन्द्रमा के श्लोक भी अपने सिक्कों पर उपलब्ध करवाए।
अकबर के सिक्कों पर ‘अल्लाहो अकबर’ व ‘जिले-जलाल हूँ’ का अंकन मिलता है।
जहाँगीर के सिक्के
निसार:-
चाँदी का सिक्का जो रुपये का चौथा भाग होता था।
खैर-ए-काबुल:-
यह सोने का सिक्का होता था।
सोने के सिक्के:-
नोट :– जहाँगीर के काल का सोने का सबसे बड़ा सिक्का नूरशाही था जिसका मूल्य 100 तोल के बराबर होता था।
जहाँगीर मुगलकाल का प्रथम शासक था जिसने अपने सिक्के पर स्वयं की तस्वीर अंकित करवाई थी।
जहाँगीर ऐसा प्रथम शासक था जिसने अपने चाँदी के सिक्कों पर 12 राशि चक्रों का अंकन करवाया।
शाहजहाँ:-
शाहजहाँ ने रुपया व दाम के मध्य ‘आना’ नामक एक नवीन सिक्का चलाया।
औरंगजेब:-
जीतल का प्रयोग केवल हिसाब-किताब रखने में ही किया जाता था। इसे फूलूस या पैसा भी कहा जाता था।
दीवान नियुक्त किया।
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य:-
शाहजहाँ के काल में भू-राजस्व एकत्रित करने हेतु ठेकेदारी प्रथा प्रारंभ की गई जिसे ‘इजारा’ प्रणाली कहा जाता था।
शाहजहाँ के काल में ही राज्य की 70 प्रतिशत भूमि जागीर के रूप में जागीरदारों को दे दी गई।
शाहजहाँ के शासनकाल में ‘मुर्शिदकुली खाँ’ ने, दक्षिण में टोडरमल की भाँति राजस्व व्यवस्था लागू की, अत: इसे दक्कन का टोडरमल कहा जाता है।
आय के अन्य स्रोत:-
1. जज़िया :- गैर मुसलमानों से वसूला जाने वाला कर।
2. ज़कात :- मुसलमानों से वसूला जाने वाला कर (कुल आय का 2.5 प्रतिशत)
3. ख़ुम्स :- युद्ध की लूट में अर्जित किया गया धन लूट के माल को 20% राजा को तथा 80 प्रतिशत भाग लूटने वाली सैनिक टुकड़ी रखती थी।
4. नज़राना :- बादशाह को दी जाने वाली नकद भेंट, इसे नजर भी कहा जाता था।
प्रमुख मुगलकालीन इमारतें
इमारत | वास्तुकार |
ताजमहल | उस्ताद ईसा खाँ एवं उस्ताद अहमद लाहौरी |
दिल्ली का लाल किला | हमीद एवं अहमद लाहौरी |
फतेहपुर सीकरी | बहाउद्दीन |
हुमायूँ का मकबरा | मिर्जा गयास |
आगरा का किला | कासिम खाँ |
राजस्थान में मराठों ने चौथ तथा सरदेशमुखी की वसूली की माँग नहीं की। यहाँ के राजाओं पर खानदानी तथा मामलत (खराज) लगाया जाता था। केवल अजमेर ही सुरक्षात्मक उद्देश्य के कारण मराठों के प्रत्यक्ष नियंत्रण में था।
मीरासदार (जमींदार) वे काश्तकार थे जिनकी अपनी भूमि होती थी तथा उत्पादन के साधनों जैसे-हल, बैल आदि पर अधिकार होता था।
उपरिस बटाईदार थे, जिन्हें कभी भी बेदखल किया जा सकता था।
सेना
मराठा सेना का गठन मुगल सैन्य व्यवस्था पर आधारित था।
शिवाजी सामन्तशाही सेना पर निर्भर नहीं थे तथा सेना के स्थायित्व को पसन्द करते थे, पेशवा लोग सामन्तशाही पद्धति पसन्द करते थे तथा साम्राज्य जागीरों के रूप में बाँट दिया गया था।
मराठों के तोपखानों में मुख्यतः पुर्तगाली अथवा भारतीय ईसाई ही काम करते थे।
पेशवाओं ने तोपखाना बनाने के लिए पूना तथा जुन्नार के अम्बेगाँव में अपने कारखाने स्थापित करवाए थे।
विदेशियों को सेना में भर्ती होने के लिए अधिक वेतन दिया जाता था।
टोन ने मराठा संविधान को सैनिक गणतन्त्र की संज्ञा दी है।
इतिहासकार स्मिथ ने शिवाजी के राज्य को ‘डाकू राज्य‘ कहा है।
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