आज की इस पोस्ट में हम राष्ट्रपति की शक्तियां के बारे में नोट्स उपलब्ध करवा रहे हैं अगर आप भारतीय राजव्यवस्था विषय पढ़ रहे हैं तो आपको उसमें भारत के राष्ट्रपति के बारे में जरूर पढ़ने को मिलेगा और यह आपको पता होना चाहिए कि राष्ट्रपति के पास कौन-कौन सी शक्ति होती है
इसलिए इस पोस्ट को जरूर पढ़े ताकि इस टॉपिक से संबंधित समस्त जानकारी आपको मिल सके ताकि आगामी परीक्षा की तैयारी के लिए आप इसे याद कर सके
राष्ट्रपति की शक्तियां : Powers of the President
राष्ट्रपति की शक्तियों को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
A. सामान्यकालीन शक्तियाँ
(i) कार्यपालिका शक्तियाँ (Executive Powers)
(ii) विधायी शक्तियाँ (Legislative Powers )
(iii) वित्तीय शक्तियाँ (Financial Powers)
(iv) न्यायिक शक्तियाँ (Judicial Powers)
B. आपातकालीन शक्तियाँ
(i) राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) (National Emergency)
(ii) राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता (अनुच्छेद 356) (Failure of Constitutional Machinery in states)
(iii) वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360) (Financial Emergency)
A. सामान्यकालीन शक्तियाँ
(i) कार्यपालिका शक्तियाँ
- अनुच्छेद-77 में यह उल्लिखित है कि भारत सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्रवाई राष्ट्रपति के नाम से की हुई कही जाएगी।
- राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है।
- प्रधानमंत्री की सिफारिश पर राष्ट्रपति अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है तथा उन्हें शपथ दिलाता है।
- राष्ट्रपति कार्य आवंटन के नियम बनाता है।
- अनुच्छेद-78 में यह उल्लिखित है कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से देश के प्रशासन तथा विधि निर्माण के संदर्भ में जानकारी प्राप्त कर सकता है।
- अनुच्छेद-53 में यह उल्लिखित है कि केन्द्र की कार्यपालिका सम्बन्धित शक्तियाँ राष्ट्रपति के पास होगी। जिसका उपयोग वह अपने अधीनस्थ अधिकारियों के सहयोग से करेगा।
- राष्ट्रपति महान्यायवादी, विदेशों में राजदूत एवं राज्यों के मुख्य राज्यपाल, सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीश, संघ लोक सेवा आयोग, निर्वाचन आयोग, वित्त आयोग के अध्यक्ष व सदस्य, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति करता है।
(ii) व्यवस्थापिका सम्बन्धित शक्तियाँ- राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है इसे निम्नलिखित विधायी शक्तियाँ प्राप्त हैं –
- संसद के सत्र आहूत करने, सत्रावसान करने तथा लोकसभा भंग करने का अधिकार ।
- प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम सत्र के प्रारंभ में संसद में अभिभाषण की शक्ति ।
- संसद द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के अनुमोदन के पश्चात् ही कानून बनता है।
- संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक राष्ट्रपति अनुच्छेद-108 के तहत आहूत करता है।
- अनुच्छेद-123- के तहत राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है।
(iii) न्यायिक शक्तियाँ
अनुच्छेद-72- इसके तहत राष्ट्रपति किसी भी व्यक्ति की सजा का –
(a) लघुकरण (Commute)
(b) परिहार (Remission)
(c) निलम्बन (Reprieve) कर सकते हैं।
अनुच्छेद-143- प्रेसीडेंसियल रेफरेंस (राष्ट्रपति किसी भी विषय पर सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श ले सकते हैं।)
(iv) वित्तीय शक्तियाँ
- अनुच्छेद-109 – धन विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात् ही लोकसभा में रखा जाता है।
- अनुच्छेद-112- इसके अन्तर्गत राष्ट्रपति संसद के समक्ष वार्षिक आय-व्यय (बजट) प्रस्तुत करवाता है।
- अनुच्छेद-117 – वित्त से सम्बन्धित कोई विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति के बिना संसद में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है।
B. आपातकालीन शक्तियाँ
(i) राष्ट्रीय आपातकाल
अनुच्छेद-352 इसमें यह उल्लिखित है कि निम्नलिखित तीन परिस्थितियों की केवल संभावना होने पर भी राष्ट्रीय आपातकाल लगाया जा सकता है-
• बाह्य आक्रमण
• भारत द्वारा किसी युद्ध में शामिल हो जाने पर
– आन्तरिक अशांति
नोट:- 44वें संविधान संशोधन द्वारा वर्ष 1978 में ‘आन्तरिक अशांति’ के स्थान पर ‘सशस्त्र विद्रोह’ शब्द लिखा गया।
अब तक तीन बार राष्ट्रीय आपातकाल लगाया जा चुका है-
- वर्ष 1962 – बाह्य आक्रमण
- वर्ष 1971 – बाह्य आक्रमण
- वर्ष 1975 – आंतरिक अशान्ति
26 जून को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
(ii) राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता
अनुच्छेद-356
- इस अनुच्छेद के तहत यदि किसी राज्य का संवैधानिक तंत्र विफल हो जाए तो उस राज्य सरकार को हटाकर
- राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
(iii) वित्तीय आपातकाल
- अनुच्छेद-360 – देश में आर्थिक संकट आ जाने पर राष्ट्रपति द्वारा वित्तीय आपातकाल लगाया जा सकता है।
- उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन कम किया जा सकता है।
- राज्य सरकारों के बजट केन्द्र सरकार की अनुमति से लागू होता है।
राष्ट्रपति की वीटो शक्तियाँ
राष्ट्रपति को तीन प्रकार की वीटो शक्तियाँ प्राप्त हैं, जो निम्नलिखित हैं-
1. पूर्ण वीटो – किसी विधेयक पर स्वीकृति देने से इनकार करना।
2. निलम्बित वीटो – विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटाना।
3. पॉकेट वीटो – विधेयक को अनिश्चितकाल के लिए लम्बित रखना।
नोट:- पॉकेट वीटो का प्रयोग ज्ञानी जैलसिंह ने वर्ष 1986 में भारतीय डाक विधेयक’ के संदर्भ में किया।
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