Springboard Notes : राज्यपाल की शक्तियाँ एवं कार्य

अगर आप RAS , Raj. Police , LDC , REET या राजस्थान से संबंधित अन्य किसी भी परीक्षा की तैयारी कर रहे है तो इन नोट्स को जरूर पढ़े इस पोस्ट में हमने राजस्थान की राजवयवस्था से संबंधित टॉपिक राज्यपाल की शक्तियाँ एवं कार्य के बारे में बताया है ताकि यहाँ से अगर कोई भी प्रश्न पूछा जाये तो आप इसकी तैयारी अच्छे से कर सके | 

यह नोट्स बहुत ही सरल एवं आसान भाषा में तैयार किये गए है अगर आप घर रहकर किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे है तो निश्चित ही इन नोट्स को पढ़कर आप हर परीक्षा की तैयारी बिना किसी कोचिंग के कर सकते है |

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राज्यपाल की शक्तियाँ एवं कार्य

(i) कार्यपालिका शक्तियाँ  

(ii) विधायी शक्तियाँ     

(iii) वित्तीय शक्तियाँ  

(iv) न्यायिक शक्तियाँ

(v) स्वविवेक शक्तियाँ

(vi) विशेष दायित्व

(vii) अन्य

● अनुच्छेद–154 के तहत राज्यपाल को राज्य सरकार की कई कार्यपालिका संबंधित शक्तियाँ प्राप्त होती है। राज्यपाल अपनी इन शक्तियों का उपयोग अधीनस्थ अधिकारियों के सहयोग से करते हैं।

● अनुच्छेद–166 के तहत राज्य के सभी कार्य राज्यपाल के नाम से किए जाते हैं तथा राज्यपाल मंत्रियों के बीच विभागों के बँटवारे के संदर्भ में “कार्य आवंटन के नियम” (एलोकेशन ऑफ द बिजनेस रूल्स) बनाता है।

● विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को मुख्यमंत्री तथा उसकी सलाह पर मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल करता है।

● महाधिवक्ता की नियुक्ति करता है तथा शपथ ग्रहण भी राज्यपाल ही करवाता है।

● मुख्यमंत्री एवं मंत्रिपरिषद् के सदस्यों को पद एवं गोपनीयता की शपथ राज्यपाल दिलाता है।

● राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल करता है।

● राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति करता है, जबकि स्वयं राज्य के विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति होता है।

● राज्य के निर्वाचन आयुक्त एवं राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति करता है।

● राज्यपाल मुख्यमंत्री से शासन और प्रशासन से संबंधित किसी भी प्रकार की सूचना माँग सकता है। (अनुच्छेद–167)

● वह राष्ट्रपति से राज्य में संवैधानिक आपातकाल (अनुच्छेद–356) के लिए सिफारिश कर सकता है।

● राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह से मंत्रियों के विभागों का वितरण करता है।

● अनुच्छेद–168 के तहत राज्य विधानमंडल में राज्यपाल, विधानसभा एवं विधान परिषद् तीनों शामिल होते हैं।

● राज्यपाल विधानसभा में प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति करते हैं। विधानसभा के वरिष्ठतम सदस्य को प्रोटेम स्पीकर बनाए जाने की परम्परा है।

● अनुच्छेद–192 के तहत राज्यपाल विधानमंडल के किसी सदस्य की सदस्यता को समाप्त करते हैं। इसमें यह स्पष्ट उल्लिखित है कि राज्यपाल इस संदर्भ में भारत के निर्वाचन आयोग से परामर्श करेंगे तथा इस संदर्भ में सभी निर्णय निर्वाचन आयोग के परामर्श के अनुसार ही लेंगे।

● वह राज्य विधानसभा के सत्र को आहूत, सत्रावसान या विघटित कर सकता है। (अनुच्छेद–174)

● विधानसभा के चुनाव पश्चात् पहले तथा प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र को संबोधित कर सकता है। (अनुच्छेद–176) राज्यपाल का यह अभिभाषण मंत्रिपरिषद् द्वारा तैयार किया जाता है। (विशेष अभिभाषण)

● अनुच्छेद–207 के अनुसार वित्त विधेयक राज्यपाल की अनुमति से ही विधानसभा में प्रस्तुत होता है।

● जिन राज्यों में द्विसदनात्मक विधान मण्डल है वहाँ पर उच्च सदन (विधान परिषद्) में राज्यपाल सदन के 1/6 सदस्यों को मनोनीत करता है। (अनुच्छेद–171)

● अनुच्छेद–333 के तहत राज्य विधानसभा में एक एंग्लो–इंडियन को मनोनीत कर सकता है। (हाल ही में जनवरी, 2020 से निष्प्रभावी हो गया।)

● जब राज्य विधान मण्डल का सत्र नहीं चल रहा हो तो वह अनुच्छेद–213 के तहत अध्यादेश जारी कर सकता है। ये अध्यादेश विधानसभा के सत्र में आने के 6 सप्ताह तक जारी रहता है।

● अनुच्छेद–213 में यह भी स्पष्ट उल्लिखित है कि अध्यादेश उसी विषय पर जारी किया जा सकता है जिन विषयों पर राज्य विधानमंडल को कानून बनाने का अधिकार होता है।

● अध्यादेश का वही महत्त्व है जो राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून का होता है।

● अध्यादेश राज्यपाल का स्वविवेक नहीं है तथा अध्यादेश भी विधि होने के कारण न्यायपालिका में चुनौती देने योग्य है।

● अध्यादेश दो तरीकों से समाप्त किया जा सकता है–

1. निर्धारित अवधि (6 सप्ताह) में विधान मंडल द्वारा स्वीकृति नहीं दिए जाने पर।

2. राज्यपाल इसे कभी भी वापस ले सकते हैं।

● राज्य विधान मण्डल द्वारा पारित किसी विधेयक को राज्यपाल के पास भेजे जाने पर

1. विधेयक स्वीकृत कर सकता है।

2. विधेयक को अपनी स्वीकृति देने से रोके रखे।

3. एक बार पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है।

4. विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रख सकता है।

● राज्य विधानसभा में सभी धन विधेयक राज्यपाल की पूर्व स्वीकृति से ही प्रस्तुत किए जाते हैं। (धन विधेयक को अनुच्छेद–199 में परिभाषित किया गया है।)

● अनुच्छेद–200 में स्पष्ट उल्लेख है कि राज्यपाल धन विधेयक को पुन: विचार के लिए नहीं भेज सकता।

● राज्यपाल की सिफारिश से ही अनुदान माँग विधानसभा में प्रस्तुत की जाती है।

● राज्यपाल द्वारा ही विधानसभा  के समक्ष बजट प्रस्तुत किया जाता है।

● अनुच्छेद–243 (I) व अनुच्छेद–243 (Y) के तहत राज्यपाल प्रत्येक 5 वर्ष में राज्य वित्त आयोग का गठन करते हैं।

● राज्यपाल किसी अप्रत्याशित व्यय के वहन के लिए राज्य की आकस्मिक निधि से अग्रिम ले सकता है। (अनुच्छेद–267)

● अनुच्छेद–161 के अनुसार राज्यपाल किसी सिद्धदोष व्यक्ति के दण्ड को कम कर सकता है, स्थगित कर सकता है, उसकी प्रकृति को बदल सकता है या क्षमा कर सकता है। राज्यपाल मृत्युदंड के मामलों में क्षमा नहीं कर सकता है।

● राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के समय राज्यपाल से परामर्श लेता है। (अनुच्छेद–217)

● वह उच्च न्यायालय के साथ विचार कर जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति स्थानांतरण और प्रोन्नति कर सकता है। (अनुच्छेद–233)

● अनुच्छेद–219 के तहत उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों को राज्यपाल या उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति द्वारा शपथ दिलाई जाती है।

● अनुच्छेद–234 के तहत राज्यपाल उच्च न्यायालय तथा राज्य लोक सेवा आयोग के साथ विचार–विमर्श कर जिला न्यायाधीशों के अलावा अन्य न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति करते हैं।

● राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति में अंतर 

A.     मृत्युदण्ड के सभी मामलों में राष्ट्रपति को क्षमादान करने का पूर्ण अधिकार है जबकि राज्यपाल को मृत्युदण्ड के निर्णय के विरुद्ध क्षमादान की शक्ति प्राप्त तो है लेकिन वह मृत्युदण्ड को पूर्णतया माफ नहीं कर सकते हैं। राज्यपाल उसे स्थगित कर सकते हैं या उसकी प्रकृति बदल सकते हैं।

B.     राष्ट्रपति को सेना के न्यायालयों के द्वारा दिए गए दण्ड या दण्डादेश के मामले में क्षमादान की शक्ति प्राप्त है जबकि राज्यपाल को इस तरह की कोई भी शक्ति प्राप्त नहीं है।

● संविधान के अनुच्छेद–163 (1) के अन्तर्गत राज्यपाल की स्व–विवेक की शक्तियों का उल्लेख है। इसमें यह उल्लिखित है कि राज्यपाल अपनी स्वविवेकीय शक्तियों को छोड़कर मंत्रिपरिषद् के परामर्श पर कार्य करेगा।

● राष्ट्रपति को भी स्व–विवेकीय शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। लेकिन इसका उल्लेख संविधान में नहीं है।

● राज्यपाल के संवैधानिक विवेकाधिकार निम्न मामलों में प्राप्त है–

– राष्ट्रपति के विचारार्थ किसी विधेयक को सुरक्षित रखना। (अनुच्छेद–200)

– राज्य में यदि संवैधानिक तंत्र विफल होता है तो अनुच्छेद–356 के तहत राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करता है।

– राज्य के विधान मण्डल एवं प्रशासनिक मामलों में मुख्यमंत्री से जानकारी प्राप्त करना। (अनुच्छेद–167)

● संवैधानिक विवेकाधिकारों के अतिरिक्त राज्यपालराष्ट्रपति की भाँति परिस्थितिजन्य निर्णय लेता है जो निम्न हैं–

– विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने पर राज्यपाल स्वविवेक के आधार पर सबसे बड़े राजनीतिक दल के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त कर सकता है।

– मंत्रिपरिषद् के अल्पमत में आने पर राज्य विधानसभा को विघटित करना।

● स्वविवेकीय शक्तियों की आलोचना –

– विवेकाधिकार शक्तियों का दबावपूर्ण प्रयोग अर्थात् केन्द्र सरकार के आदेशों को प्राथमिकता या केन्द्रीय हितों के अनुरूप होना।

– स्वविवेकीय निर्णय स्वतंत्र न होकर दबावपूर्ण निर्णय होते हैं।

– राज्यपाल महोदयों का व्यवहार पक्षपातपूर्ण।

6. अन्य

● अनुच्छेद–239 के तहत राष्ट्रपति किसी राज्यपाल को संघशासित प्रदेश का प्रशासक भी नियुक्त कर सकते हैं।

● राजस्थान मानवाधिकार आयोग, राजस्थान महिला आयोग तथा राजस्थान अनुसूचित जाति व जनजाति आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों और राजस्थान के लोकायुक्त की नियुक्ति ‘राज्यपाल’ ही करता है।

● राजस्थान सैनिक कल्याण बोर्ड तथा रेडक्रॉस सोसायटी की राजस्थान की शाखा का संरक्षक राज्यपाल ही होता है।

● केन्द्र और राज्य सरकार के मध्य समन्वय एवं संबंध स्थापित करना।

● राज्य प्रशासन की रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजना।

● राज्य शासन का संचालन करना।

● संघ के हितों की रक्षा करना।

● राष्ट्रीय राजमार्ग और संचार साधनों की रक्षा करना।

अन्य तथ्य

● राज्यपाल अपने विवेक के आधार पर कुछ स्थितियों में काम कर सकता है जबकि राष्ट्रपति के मामले में ऐसा नहीं होता है।

● विधि विश्वविद्यालय का कुलाधिपति उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश होता है।

● 42वें संविधान संशोधन, (1976) के बाद राष्ट्रपति के लिए मंत्रियों की सलाह की बाध्यता तय कर दी गई जबकि राज्यपाल पर यह उपबंध लागू नहीं होता है।

● सरोजिनी नायडू के अनुसार “राज्यपाल सोने के पिंजरे में बंद पक्षी के समान है।”

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