Springboard Coaching Notes : राजस्थान का राज्यपाल

अगर आप RAS , Raj. Police , LDC , REET या राजस्थान से संबंधित अन्य किसी भी परीक्षा की तैयारी कर रहे है तो इन नोट्स को जरूर पढ़े इस पोस्ट में हमने राजस्थान की राजवयवस्था से संबंधित टॉपिक राज्यपाल के बारे में बताया है ताकि यहाँ से अगर कोई भी प्रश्न पूछा जाये तो आप इसकी तैयारी अच्छे से कर सके | 

यह नोट्स बहुत ही सरल एवं आसान भाषा में तैयार किये गए है अगर आप घर रहकर किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे है तो निश्चित ही इन नोट्स को पढ़कर आप हर परीक्षा की तैयारी बिना किसी कोचिंग के कर सकते है | 

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राजस्थान की राजवयवस्था : राज्यपाल

● राज्यपाल का पद राज्य की शासन व्यवस्था का अत्यंत महत्त्वपूर्ण पद है। यह राज्य विधान मण्डल का अभिन्न अंग है, राज्य की कार्यपालिका का औपचारिक प्रधान है तथा केन्द्र सरकार का प्रतिनिधि भी है।

● राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख/कार्यकारी प्रमुख/हैड ऑफ स्टेट होता है।

● मूल संविधान (26 जनवरी, 1950) में व्यवस्था की गई थी कि प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा (अनुच्छेद–153)

● संविधान के 7वें संशोधन, 1956 के माध्यम से अनुच्छेद–153 में परंतुक जोड़कर स्पष्ट किया गया कि एक ही व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल बनाया जा सकेगा।

● अनुच्छेद–154 के अनुसार राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी लेकिन अनुच्छेद–163 के तहत राज्यपाल अपनी स्व–विवेक शक्तियों के अलावा सभी कृत्य राज्य मंत्रिपरिषद् की सलाह पर करेगा।

● अनुच्छेद–155 के अनुसार राज्यपाल को राष्ट्रपति नियुक्त करेगा। इस प्रकार वह केन्द्र सरकार द्वारा मनोनीत होता है।

● अनुच्छेद–155 में यह भी उल्लिखित है कि राज्यपाल की नियुक्ति के सन्दर्भ में राष्ट्रपति अधिपत्र (वारण्ट) जारी करते हैं। यह अधिपत्र राज्य का मुख्य सचिव पढ़कर सुनाता है।

संविधान लागू होने से लगाकर वर्तमान तक राज्यपाल की नियुक्ति के संबंध में कुछ परम्पराएँ बन गई है, जो निम्न हैं

I. संबंधित राज्य का निवासी नहीं होना चाहिए ताकि वह स्थानीय राजनीति से मुक्त रहे।

II. राज्यपाल की नियुक्ति के समय राष्ट्रपति संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री से परामर्श ले ताकि संवैधानिक व्यवस्था सुनिश्चित हो।

● राज्यपाल ऐसे व्यक्ति को बनाया जाना चाहिए जो किसी क्षेत्र विशेष में प्रसिद्ध हो।

● राज्यपाल राज्य के बाहर का निवासी होना चाहिए।

● राजनीतिक रूप से तटस्थ व्यक्ति होना चाहिए।

● सक्रिय राजनीति में भागीदारी नहीं ले रहा हो।

● राज्यपाल की नियुक्ति से पूर्व राज्य के मुख्यमंत्री से परामर्श लिया जाए। इसके लिए अनुच्छेद–155 में संशोधन किया जाए।

● 5 वर्ष की निश्चित पदावधि हो।

● यदि कोई राज्यपाल पद से त्यागपत्र देकर सक्रिय राजनीति में शामिल होता है तो इसे नियंत्रित किया जाना चाहिए।

नोट–

– केन्द्र–राज्य संबंधों की गहन समीक्षा के उद्देश्य से केन्द्र सरकार द्वारा 1983 में सरकारिया आयोग का गठन किया गया। इसके तीन सदस्यों में आर. एस. सरकारिया (अध्यक्ष), एस. आर. सेन तथा वी. शिवरामन शामिल थे। जनवरी, 1988 में इसने अपना प्रतिवेदन दिया।

– वर्ष 2005 में वीरप्पा मोईली (कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री) की अध्यक्षता में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया गया था। 2010 में इसने अपना प्रतिवेदन दिया। इस आयोग के अनुसार राज्यपाल की नियुक्ति के सन्दर्भ में कॉलेजियम व्यवस्था होनी चाहिए। प्रधानमंत्री इसका अध्यक्ष होगा जबकि उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, गृहमंत्री तथा लोकसभा में विपक्ष का नेता इसके सदस्य होंगे। लेकिन सुझाव स्वीकार नहीं किया गया था।

राज्यपाल के सीधे निर्वाचन की बात संविधान सभा में उठी लेकिन संविधान सभा द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति को ही अपनाया गया क्योंकि

● निर्वाचन से राज्य में स्थापित संसदीय व्यवस्था की स्थिति के प्रतिकूल हो सकता है।

● चुनाव से मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल के मध्य संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

● राज्यपाल संवैधानिक प्रमुख होता है इसलिए चुनाव जैसी जटिल प्रक्रिया अपनाना अव्यावहारिक है।

● राज्यपाल यदि निर्वाचित होता है तो वह किसी राजनीतिक दल से संबंधित होगा जिससे वह तटस्थ होकर कार्य नहीं कर पाएगा।

● राज्यपाल दोहरी भूमिका निभाता है अर्थात् राज्य का प्रमुख एवं केन्द्र का एजेण्ट लेकिन निर्वाचन की स्थिति में वह केन्द्र के एजेण्ट के रूप में कार्य नहीं कर पाएगा।

● अनुच्छेद–156 के अनुसार राज्यपाल अपने पदग्रहण की तारीख से पाँच वर्ष तक पद पर बना रहेगा।

● राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करता है।

● राज्यपाल राष्ट्रपति को संबोधित करके त्यागपत्र देता है।

● राष्ट्रपति किसी भी राज्यपाल को उसके बचे हुए कार्यकाल के लिए किसी दूसरे राज्य में स्थानांतरित कर सकता है।

● राज्यपाल को दुबारा नियुक्त किया जा सकता है।

● राज्यपाल अपने कार्यकाल के बाद भी तब तक पद पर बना रहता है जब तक उसका उत्तराधिकारी कार्यग्रहण नहीं कर ले।

● राज्यपाल को हटाने के आधार का उल्लेख संविधान में नहीं है।

● बी.पी सिंघल बनाम भारत संघ (2010) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्णय दिया गया था कि राज्यपाल को हटाए जाने पर इसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है तथा किसी भी राज्यपाल को राजनीतिक आधार पर हटाया नहीं जा सकता है।

● सरकारिया आयोग ने यह सिफारिश की थी कि राज्यपाल को हटाये जाने से पूर्व एक बार चेतावनी देनी चाहिए अथवा पूर्व सूचना दी जानी चाहिए।

● 2007 में केन्द्र–राज्यों संबंधों की जाँच हेतु गठित पुंछी आयोग ने राज्यपाल को हटाने के लिए विधानमंडल में महाभियोग (Impeachment) की प्रक्रिया अपनाने का सुझाव दिया है।

● वह भारत का नागरिक होना चाहिए।

● 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।

● संसद या राज्य विधान मण्डल का सदस्य नहीं होना चाहिए। यदि वह किसी भी सदन का सदस्य है तो राज्यपाल के पद की शपथ लेने के बाद उस सदन से उसका स्थान रिक्त माना जाएगा।

● राज्यपाल अपने कार्यकाल के दौरान अन्य किसी भी प्रकार का पद धारण नहीं कर सकता।

● कार्यकाल के दौरान उनकी आर्थिक उपलब्धियों व भत्तों को कम नहीं किया जा सकता।

● राज्यपाल को शपथ संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश दिलवाता है। उनकी अनुपस्थिति में उपलब्ध वरिष्ठतम न्यायाधीश शपथ दिलवाते हैं।

● तीसरी अनुसूची में राज्यपाल की शपथ का उल्लेख नहीं है।

● राज्यपाल संविधान की रक्षा और राज्य के लोगों के कल्याण की शपथ लेते हैं।

नोट– यदि किसी राज्यपाल को किसी अन्य राज्य का अतिरिक्त प्रभार दिया

जाए तो भी उन्हें पुन: शपथ लेनी होती है।

● राज्यपाल का वेतन 3,50,000/– रुपये प्रतिमाह है जो संबंधित राज्य की संचित निधि या राज्य के राजकोष पर भारित होता है।

● यदि एक व्यक्ति दो या अधिक राज्यों के बतौर राज्यपाल नियुक्त होता है तो उसे वेतन एवं भत्ते राष्ट्रपति द्वारा तय मानकों के हिसाब से राज्य मिलकर प्रदान करते हैं।

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इस पोस्ट में उपलब्ध करवाए गए UPSC NOTES अगर आपको अच्छे लगे हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ एवं अन्य ग्रुप में जरूर शेयर करें ताकि जो विधार्थी घर पर रहकर बिना कोचिंग कर तैयारी कर रहा है उसको मदद मिल सके |  

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