उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक परिचय एवं अध्ययन Part 2 : UPSSC Notes

आज की इस पोस्ट में हम उत्तर प्रदेश का इतिहास परिचय एवं अध्ययन से संबंधित बात करने वाले हैं जिसमें आपको उत्तर प्रदेश से संबंधित इतिहास के बारे में संपूर्ण जानकारी पढ़ने के लिए मिलेगी UPPSC , UP POLICE , LDC या अन्य किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो हमारे यह नोट्स आपको सभी परीक्षाओं में जरूर काम आएंगे

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उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक परिचय


– जैन तथा बौद्ध ग्रन्थों में उल्लिखित 16 महाजनपदों में से कुल 8 महाजनपद उत्तर प्रदेश में अवस्थित थे। गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में हुआ था। इनके पिता कपिलवस्तु गणराज्य के शासक थे। कपिलवस्तु उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में आता था, जबकि इनकी माता रामग्राम के कोलिय गणराज्य की कन्या थी। वर्तमान में गोरखपुर, जिले को रामग्राम के रूप में पहचाना गया है। बुद्ध के सम्पूर्ण संन्यासी जीवन का अधिकांश भाग उत्तर प्रदेश में ही व्यतीत हुआ। गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ (मृगदाव/ऋषिपत्तन) में दिया। इसे ‘धर्मचक्रप्रवर्तन’ की संज्ञा दी गई है। बुद्ध ने अपना सर्वाधिक उपदेश कोशल देश की राजधानी श्रावस्ती में दिए। गौतम बुद्ध के समय उत्तर प्रदेश में सात मुख्य गणराज्य मौजूद थे। कुशीनारा के मल्ल, केरलपुत्त के कलाम, पावा के मल्ल, पिप्पलिवन के मोरिय, रामग्राम के कोलिय, कपिलवस्तु के शाक्य, समसुमेर पर्वत (चुनार) के भग्ग उल्लेखनीय है। गौतम बुद्ध ने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में ही अपने शरीर का त्याग किया।

क्र. सं.महाजनपदउत्तर प्रदेश में स्थित क्षेत्र
1.पांचालबरेली, बदायूँ तथा फर्रुखाबाद
2. कुरुमेरठ से दिल्ली तक
3.काशीवाराणसी
4.कोशलअवध
5.वत्सप्रयागराज और कौशाम्बी
6.शूरसेनमथुरा के समीपवर्ती क्षेत्र
7.चेदिबाँदा
8.मल्लकुशीनगर, देवरिया


 सारनाथ– धमेख स्तूप, चौखण्डी स्तूप, धर्मराजिका स्तूप 
– श्रावस्ती – अनाथपिण्डक स्तूप, अंगुलीमाल स्तूप, जेतवन विहार, विश्वशांति घण्टा
– कुशी नगर –रानाभार स्तूप, परिनिर्वाण स्तूप, मैत्रेय बुद्ध परियोजना


उत्तर प्रदेश में अवस्थित प्रमुख जैन तीर्थ स्थल


– महावीर स्वामी के समय उत्तर प्रदेश का मथुरा नगर जैन धर्म का प्रमुख केन्द्र था। मुख्य जैन तीर्थंकर, ऋषभनाथ, अजितनाथ, अभिनन्दननाथ तथा सुमतिनाथ की जन्मस्थली अयोध्या है जबकि पार्श्वनाथ की जन्मभूमि वाराणसी है। फर्रुखाबाद (काम्पिल्य) व श्रावस्ती क्रमश: विमलनाथ, संभवनाथ व शोभानाथ से संबंधित है। महोबा, गोखर पर्वत की चट्टानों को काट कर बनायी गयी 24 तीर्थंकरों की प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है तथा प्राचीन जैन शिल्प एवं मूर्तियों के लिए देवगढ़ (झाँसी) विख्यात है। बौद्ध एवं जैन धर्मों के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में सनातन धर्म के देवताओं- विष्णु, सूर्य, वासुदेव, वराह आदि की प्राचीन मूर्तियाँ मथुरा से प्राप्त हुई हैं। मथुरा के सोंख क्षेत्र में हुई खुदाई से कुषाणकाल का मंदिर प्राप्त हुआ है। मथुरा को भारतीय मूर्ति कला की जन्म स्थली कहा गया है। 


– मगध में मौर्य वंश को स्थापित करने का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य को है। चन्द्रगुप्त के बाद उसका पुत्र बिन्दुसार शासक बना, तत्पश्चात अशोक मौर्य साम्राज्य की गद्दी पर बैठा। जनता को नैतिक कार्यों के प्रति प्रेरित करने के लिए अशोक ने ‘धम्म’ के नाम से आचार संहिता बनवाई। मौर्यकाल के इतिहास को जानने का स्रोत अशोक के अभिलेख हैं। मौर्य काल के शिलालेख एवं अन्य कलाकृतियों का निर्माण मिर्जापुर जिले में स्थित चुनार के बलुए पत्थर से हुआ है। उत्तर प्रदेश में सम्राट अशोक के 5 शिलालेख प्राप्त हुए हैं- 
1. मिर्जापुर का अहिरौरा शिलालेख 
2. खिज्राबाद-सहारनपुर का टोपरा अभिलेख 
3. मेरठ का स्तम्भ लेख 
4. कौशाम्बी का लघु स्तम्भ लेख 
5. सारनाथ का लघु स्तम्भ लेख- इस स्तम्भ लेख के शीर्ष पर बने ‘सिंहों की आकृति’ को ही भारत सरकार ने अपना राजकीय चिह्न बनाया है। 
गोरखपुर जिले में स्थित सोहगौरा से प्राप्त काँस्य लेख में अशोक ने अकाल पड़ने की दशा को ध्यान में रखते हुए अन्नागार स्थापित करने का आदेश दिया है। 


शुंग काल


– पुष्यमित्र शुंग ने मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या करके मौर्य साम्राज्य पर अधिकार कर लिया तथा शुंग वंश की नींव डाली। अयोध्या से प्राप्त शिलालेख से यह ज्ञात होता है कि पुष्यमित्र शुंग ने पतंजलि की अध्यक्षता में दो अश्वमेध यज्ञ तथा भरहुत में स्तूप का निर्माण कराया था। इसके शासनकाल में उत्तर प्रदेश में संस्कृत भाषा तथा स्थापत्य कला का पुनरुत्थान हुआ। भारत पर सर्वप्रथम आक्रमण हिन्द-यवनों ने किया और पश्चिमोत्तर भारत के विशाल क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। गंगा घाटी में शुंगों ने इन्हें कड़ी टक्कर दी और पराजित किया। हिन्द यवन शासकों में मेनाण्डर सर्वाधिक विख्यात हैं। इसने अपना साम्राज्य झेलम से मथुरा तक विस्तारित किया। गांधार कला शैली, हिन्द-यवनों की ही देन है। मथुरा कला में भी इसकी झलक दिखाई देती है। 


– शक मूलतः मध्य एशिया के बर्बर जाति से संबंधित थे। इन्होंने तक्षशिला, मथुरा, महाराष्ट्र, उज्जयिनी आदि स्थानों पर अपनी शाखाएँ फैलाई थी। मथुरा का प्रथम क्षत्रप राजुल था। राजुल का उल्लेख मथुरा के ‘मोरा लेख’ में हुआ है। कुषाण चीन के सीमावर्ती क्षेत्रों में निवास करने वाली जाति थी। इन्होंने भारत के शकों, पल्लवों इत्यादि को परास्त कर कुषाण वंश की नींव डाली। इस वंश का पहला शासक कुजुल कडफिसेस था। इनके द्वारा जारी किए गए सिक्के मथुरा से प्राप्त हुए हैं, जिन पर शिव, त्रिशूल एवं नंदी के चित्र उत्कीर्ण है। इससे इनके शैव धर्म अनुयायी होने की जानकारी प्राप्त होती है। कनिष्क भारत में समस्त कुषाणों में सर्वाधिक महान शासक के रूप में जाना जाता है। 78 ई. शक संवत् का प्रारम्भ कनिष्क द्वारा कराया गया जिसे भारत सरकार ने अपनाया है। मथुरा से जो भी सिक्के, अभिलेख इत्यादि प्राप्त हुए हैं, उनसे स्पष्ट होता है कि मथुरा कुषाणों की दूसरी राजधानी के रूप में प्रतिस्थापित थी। मथुरा व्यापार, संस्कृति का केंद्र होने के साथ कला क्षेत्र की प्रमुख शैलियों (गांधार, मथुरा) के लिए भी जाना जाता है। 


– भारत में गुप्त वंश की स्थापना श्रीगुप्त के द्वारा 275 ई. में की गई थी। चन्द्रगुप्त प्रथम इसी वंश का प्रतापी राजा था। चन्द्रगुप्त प्रथम द्वारा ही गुप्त संवत का प्रवर्तन कराया गया। इस वंश के शासक समुद्रगुप्त को ‘भारत का नेपोलियन’ कहा गया है। प्रयाग प्रशस्ति से समुद्रगुप्त के उत्तरापथ एवं दक्षिणापथ अभियानों की जानकारी मिलती है। उत्तर प्रदेश में उत्तरापथ के 12 राज्यों में से 4 राज्य अवस्थित थे। गुप्त साम्राज्य से संपूर्ण उत्तर प्रदेश आच्छादित था। समुद्रगुप्त का पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय था, जिसने ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की थी। इसके दरबार में कालिदास, धनवन्तरि, क्षपणक, अमर सिंह, शंकु, बेताल भट्ट, घटकर्पट, वराहमिहिर तथा वररुचि निवास करते थे। भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाने वाला गुप्तकाल मंदिर निर्माण एवं स्थापत्य कला की दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध था। उत्तर प्रदेश में स्थित गुप्तकालीन मंदिर कानपुर के भीतरगाँव, गाजीपुर का भीतरी स्तम्भ लेख स्कन्दगुप्त तथा हूणों के संघर्ष की कथा बताता है, जबकि झाँसी के देवगढ़ का मंदिर भारत में शिखरयुक्त मंदिर का प्रथम उदाहरण प्रस्तुत करता है। 


उत्तर प्रदेश में स्थित गुप्तकालीन अभिलेख

बिलसड़ अभिलेख(एटा) कुमार गुप्त प्रथम से संबंधित
गढ़वा अभिलेख(प्रयागराज) कुमार गुप्त प्रथम से संबंधित
करमदण्डा अभिलेखअयोध्या
मनकुँवर अभिलेखप्रयागराज
मथुरा शिलालेखमथुरा

मौखरि वंश


– गुप्तकाल के पतन के बाद विकेंद्रीकरण एवं क्षेत्रीयता की भावना का प्रसार प्रारम्भ हो गया। फलतः 7वीं सदी तक ‘कन्नौज’ भारतीय राजनीति के केंद्र के रूप में उभरता चला गया। 484 ई. में तोरमाण और मिहिरकुल के नेतृत्व में हूणों ने मथुरा, कन्नौज और कौशाम्बी पर धावा बोला और इन नगरों को क्षति पहुँचाई। मौखरि वंश के शासक ईसान वर्मा ने हूणों को पराजित कर उत्तर भारत से हूणों का सफाया कर दिया। कन्नौज पर मौखरि वंश का शासन अल्पकाल तक ही रहा।

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