Class 11 Political Science Chapter 4 : सामाजिक न्याय

अगर आप NCERT के नोट्स क्लास अनुसार पढ़ना चाहते हैं तो आज की इस पोस्ट में हम आपके लिए Ncert Class 11 Political Science Chapter 4 : सामाजिक न्याय अध्याय से संबंधित क्लासरूम नोट्स उपलब्ध करवा रहे हैं जिसमें आपको इसके बारे में संपूर्ण जानकारी देखने को मिलेगी | अगर आप घर बैठे सेल्फ स्टडी कर रहे है तो हमारे  नोट्स के माध्यम से आप घर बैठे शानदार तैयारी कर सकते है 

सिविल सर्विस परीक्षा या स्टेट पीसीएस परीक्षा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के लिए यह नोट्स बहुत जरूरी है इसलिए इन्हें अच्छे से जरूर पढ़ें एवं आगामी परीक्षा के लिए याद करें |

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सामाजिक न्याय

●    चीन के दार्शनिक कन्फ्यूशन का तर्क था कि गलत करने वालों को दंडित कर और भले लोगों को पुरस्कृत कर राजा को न्याय कायम रखना चाहिए। ईसा पूर्व चौथी सदी के एथेंस (यूनान) में फ्लेटो ने अपनी पुस्तक ‘द रिपब्लिक’ में न्याय के मुद्दों पर चर्चा की है। सुकारात और उनके युवा मित्रों, ग्लाउकॉन और एडीमंटस के नौजवानों ने सुकरात से पूछा कि हमें न्यायसंगत क्यों होना चाहिए। उनका आकलन यह था, कि जो अन्यायी हैं, वे न्यायी लोगों से ज्यादा बेहतर स्थिति में है। उनका आकलन यह था, कि जो अन्यायी हैं, वे न्यायी लोगों से ज़्यादा बेहतर स्थिति में हैं। जो अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए कानून तोड़ते-मरोड़ते हैं, कर चुकाने से नहीं कतराते हैं और झूठ और धोखाधड़ी का सहारा लेते हैं, वे अक्सर उन लोगों से ज़्यादा सफल होते हैं, जो सच्चाई और न्याय के रास्ते पर चलते हैं। आपने आज भी लोगों को ऐसी भावना व्यक्त करते सुना होगा।

●    उन्होंने बताया कि न्याय का मतलब सिर्फ यह नहीं होता कि हम अपने मित्रों का भला करें और दुश्मनों का नुकसान करें या अपने हितों के पीछे लगे रहें। न्याय में तमाम लोगों की भलाई निहित रहती है। जैसे एक डॉक्टर अपने सभी मरीजों की भलाई की चिंता करता है, उसी तरह न्यायसंगत शासक या सरकार को भी जनता की भलाई की चिंता करनी होगी। जनता की भलाई की सुनिश्चता में हर व्यक्ति को उसका वाजिब हिस्सा देना शामिल है।

●    न्याय में हर व्यक्ति को उसका वाजिब हिस्सा देना शामिल हैं, आज भी न्याय की हमारी समझ का महत्त्वपूर्ण अंग बना हुआ है। बहरहाल, जर्मन दार्शनिक इमैनुएल कांट के अनुसार हर मनुष्य की गरिमा होती है। अगर सभी व्यक्तियों की गरिमा स्वीकृत है, तो उनमें से हर एक का प्राप्य यह होगा कि उन्हें अपनी प्रतिभा के विकास और लक्ष्य की पूर्ति के लिए अवसर प्राप्त हो।

●    उनमें से एक है समकक्षों के साथ समान बरताव का सिद्धांत माना जाता है कि मनुष्य होने के नाते सभी व्यक्तियों में कुछ समान चारित्रिक विशेषताएँ होती हैं। इसलिए वे समान अधिकार और समान बरताव के अधिकारी हैं। आज अधिकांश उदारवादी जनतंत्रों में कुछ महत्त्वपूर्ण अधिकार दिए गए हैं। इनमें जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार जैसे नागरिक अधिकार शामिल हैं। इसमें समाज के अन्य सदस्यों के साथ समान अवसरों के उपभोग करने का सामाजिक अधिकार और मताधिकार जैसे राजनीतिक अधिकार भी शामिल हैं। ये अधिकार व्यक्तियों को राज प्रक्रियाओं में भागीदार बनाते हैं।

●    समान अधिकारों के अलावा समकक्षों के साथ समान बरताव के सिद्धांत के लिए जरूरी है, कि लोगों के साथ वर्ग जाति, नस्ल या लिंग के आधार पर भेदभाव न किया जाए। उन्हें  उनके काम और कार्यकलापों के आधार पर जाँचा जाना चाहिए, इस आधार पर नहीं कि वे किस समुदाय के सदस्य हैं।

●    समान बरताव न्याय का एकमात्र सिद्धांत नहीं है। ऐसी परिस्थतियाँ हो सकती हैं जिसमें हम महसूस करें कि हर एक के साथ समान बरताव अन्याय होगा। मसलन, अगर आपके स्कूल में यह फैसला किया जाय, कि परीक्षा में शामिल होने वाले तमाम लोगों का बराबर अंक दिए जाएँगे, क्योंकि  सब एक ही स्कूल के विद्यार्थी हैं और सबने एक ही परीक्षा दी है, तो आपकों कैसा लगेगा? यहाँ आप ज्यादा यह उचित समझेंगे कि छात्रों को उनकी उत्तर-पुस्तिकाओं की गुणवत्ता और संभव हो तो इसके लिए उनके द्वारा किए गए प्रयास के अनुसार अंक दिए जाएँ।

●    सबके लिए समान अधिकार की दौड़ में एक ही शुरुआती रेखा निर्धारित करने के बावजूद, ऐसे मामलों में न्याय का मतलब होगा, लोगों को उनके प्रयास के पैमाने और अरर्हता के अनुपात में पुरस्कृत करना। अधिकांश लोग सहमत होंगे, कि यूँ तो लोगों को समान काम का समान दाम मिलना चाहिए, लेकिन किसी काम के लिए वांछित मेहनत, कौशल, संभावित खतरे आदि कारकों को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग काम के लिए अलग-अलग पारिश्रमिक का निर्धारण उचित और न्यायसंगत होगा।

●    वह पारिश्रमिक या कर्तव्यों का वितरण करते समय लोगों की विशेष ज़रूरतों का ख्याल रखने का सिद्धांत है। इसे सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने का तरीका माना जा सकता है। समाज के सदस्यों के रूप में  लोगों की बुनियादी हैसियत और अधिकारों के लिहाज से न्याय के लिए यह जरूरी हो सकता है, कि लोगों के साथ समान बरताव किया जाय। लेकिन, लोगों के बीच भेदभाव न करना और उनकी मेहनत के अनुपात में उन्हें पारिश्रमिक देना भी यह सुनिश्चित करने के लिए शायद पर्याप्त न हो, कि समाज में अपने जीवन के अन्य संदर्भों में भी लोग समानता का उपभोग करें

●    विशेष जरूरतों या विकलांगता वाले लोगों को कुछ खास मामलों में असमान और विशेष सहायता के योग्य समझा जा सकता है। लेकिन इस पर सहमत होना हमेशा आसान नहीं होता, कि लोगों को विशेष सहायता देने के लिए उनकी किन असमानताओं को मान्यता दी जाएँ। शारीरिक विकलांगत, उम्र या अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच न होना कुछ ऐसे कारक हैं, जिन्हें अनेक देशों में विशेष बरताव का आधार समझा जाता है। यह माना जाता है, कि जीवनयापन और अवसरों के बहुत ऊँचे स्तर का उपभोग करने वाले और उत्पादक जिंदगी जीने के लिए जरूरी न्यूनतम बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित लोगों से हर मामले में बिलकुल एक जैसा बरताव करने पर परिणाम समतावादी और न्यायपूर्ण नहीं बल्कि एक असमान समाज होगा।

●    समाज में सामाजिक न्याय पाने के लिए सरकारों को यह सुनिश्चित करना होता है कि कानून और नीतियाँ सभी व्यक्तियों पर निष्पक्ष रूप से लागू हों। लेकिन इतना ही काफी नहीं है और इससे कुछ ज्यादा करने की आवश्यकता होती है। सामाजिक न्याय का सरोकार वस्तुओं और सेवाओं के न्यायोचित वितरण से भी है, चाहे यह राष्ट्रों के बीच वितरण का मामला हो या किसी समाज के अंदर विभिन्न समूहों और व्यक्तियों के बीच का। यदि समाज में गंभीर सामाजिक या आर्थिक असमानताएँ हैं, तो यह ज़रूरी होगा कि समाज के कुछ प्रमुख संसाधनों का पुनर्वितरण हो, जिससे नागरिकों को जीने के लिए समतल धरातल मिल सके।

●    किसी समाज के लिए न्याय के सिद्धांत की बुनियाद का निर्माण नहीं कर सकते। तो, हम ऐसे निर्णय पर कैसे पहुँचें जो निष्पक्ष हो और न्यायसंगत भी?

●    जॉन रॉल्यस ने इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास किया है। वह तर्क करते हैं कि निष्पक्ष और न्यायसंगत नियम तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता यही है कि हम खुद को ऐसी परिस्थिति में होने की कल्पना करें जहाँ हमें यह निर्णय लेना है कि समाज को कैसे संगठित किया जाएँ। जबकि हमें यह ज्ञात नहीं है कि उस समाज में हमारी क्या जगह होगी। अर्थात् हम नहीं जानते कि किस किस्म के परिवार में हम जन्म लेंगे, हम ‘उच्च’ जाति के परिवार में पैदा होंगे या ‘निम्न’ जाति में, धनी होंगे या गरीब, सुविधाहीन। रॉल्स तर्क देते हैं कि अगर हमें यह नहीं मालूम हो, इस मायने में, कि हम कौन होंगे और भविष्य के समाज में हमारे लिए कौन से विकल्प खुले होंगे, तब हम भविष्य के उस समाज के नियमों और संगठन के बारे में जिस निर्णय का समर्थन करेंगे, वह तमाम सदस्यों के लिए अच्छा होगा।

●    रॉल्स ने इसे ‘अज्ञानता के आवरण’ में सोचना कहा है। वे आशा करते हैं कि समाज में अपने संभावित स्थान और हैसियत के बारे में पूर्ण अज्ञानता की हालत में हर आदमी, आमतौर पर जैसे सब करते हैं, अपने खुद के हितों को ध्यान में रखकर फैसला करेगा। चूँकि कोई नहीं जानता कि वह कौन होगा और उसके लिए क्या लाभपद्र होगा, इसलिए हर कोई सबसे बुरी स्थिति के मद्देनजर समाज की कल्पना करेगा। खुद के लिए सोच-विचार कर सकने वाले व्यक्ति के सामने यह स्पष्ट रहेगा कि जो जन्म से सुविधा संपन्न हैं, वे कुछ विशेष अवसरों का उपभोग करेंगे।

●    इस प्रयास से दिखेगा कि शिक्षा स्वास्थ्य, आवास जैसे महत्त्वपूर्ण संसाधन सभी लोगों को प्राप्त हों- चाहे वे उच्च वर्ग हो या न हो-     

●    समाज में बेहिसाब धन-दौलत और इनके स्वामित्व के साथ जुड़ी सत्ता का उपभोग करने वालों तथा बहिष्कृतों और वंचितों के बीच गहरा एवं स्थायी विभाजन मौजूद है, तो हम कहेंगे कि वहाँ सामाजिक न्याय का अभाव है। हम यहाँ सिर्फ समाज में विभिन्न व्यक्तियों के जीवनयापन के सिर्फ विभिन्न स्तरों की चर्चा नहीं कर रहे हैं। न्याय के लिए लोगों के रहन-सहन के तौर-तरीकों में पूर्ण समानता और एकरूपता की आवश्यकता नहीं है। लेकिन उस समाज को अन्यायपूर्ण ही माना जायेगा, जहाँ धनी और गरीब के बीच खाई इतनी गहरी हो, कि वे बिलकुल भिन्न-भिन्न दुनिया में रहने वाले लगें और जहाँ अपेक्षाकृत वंचितों को अपनी स्थिति सुधारने का कोई मौका न मिले चाहे वे कितना भी कठिन श्रम क्यों न करें। दूसरे शब्दों में, न्यायपूर्ण समाज को लोगों के लिए न्यूनतम बुनियादी स्थितियाँ  जरूर मुहैया करानी चाहिए, ताकि वे स्वास्थ और सुरक्षित जीवन जीने में सक्षम हो सकें, समाज में अपनी प्रतिभा का विकास करें तथा इसके साथ समान अवसरों के जरिये अपने चुने हुए लक्ष्य की ओर बढ़ें।

●    लोगों की जिंदगी के लिए जरूरी न्यूनतम बुनियादी स्थितियों का निर्धारण हम कैसे कर सकते हैं? विभिन्न सरकारों और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने लोगों की बुनियादी मात्रा , आवास, शुद्ध पेयजल की आपूर्ति, शिक्षा और न्यूनतम, मजदूरी इन बुनियादी स्थितियों के महत्त्वपूर्ण हिस्से होंगे।

●    मुक्त बाजार के समर्थकों का मानना है कि जहाँ तक संभव हो, व्यक्तियों को संपत्ति अर्जित करने के लिए तथा मूल्य, मजदूरी और मुनाफे के मामलें में दूसरों के साथ अनुबंध और समझौतों में शामिल होने के लिए स्वतंत्र रहना चाहिए। उन्हें लाभ की अधिकतम मात्रा हासिल करने हेतु एक-दूसरे के साथ प्रतिद्वंद्विता करने की छूट होनी चाहिए। यह मुक्त बाजार का सरल चित्रण है।

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