अगर आप NCERT के नोट्स क्लास अनुसार पढ़ना चाहते हैं तो आज की इस पोस्ट में हम आपके लिए राजनीति विज्ञान कक्षा 11 नोट्स : राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय अध्याय से संबंधित क्लासरूम नोट्स उपलब्ध करवा रहे हैं जिसमें आपको इसके बारे में संपूर्ण जानकारी देखने को मिलेगी |

सिविल सर्विस परीक्षा या स्टेट पीसीएस परीक्षा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के लिए यह नोट्स बहुत जरूरी है इसलिए इन्हें अच्छे से जरूर पढ़ें एवं आगामी परीक्षा के लिए याद करें

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राजनीतिक सिद्धांत – एक परिचय

राजनेता और चुनाव लड़ने वाले लोग अथवा राजनीतिक पदाधिकारी कह सकते हैं कि राजनीति एक प्रकार की जनसेवा है।

यदि हम एक क्रिकेटर को टीम में बने रहने के लिए जोड़तोड़ करते या किसी सहपाठी को अपने पिता की हैसियत का उपयोग करते अथवा दफ्तर में किसी सहकर्मी को बिना सोचे-समझे बॉस की हाँ में हाँ मिलाते देखते हैं, तो हम कहते हैं कि वह ‘गंदी’ राजनीति कर रहा है।

सिनेमा के कलाकार भी अक्सर राजनीति की बुराई करते हैं। यह अलग बता है कि जैसे ही वे इस खेल में सम्मिलित होते हैं वैसे ही वे अपने को इस खेल की ज़रूरतों के अनुसार ढाल लेते हैं।

इस प्रकार हमारा सामना राजनीति की परस्पर विरोधी छवियों से होता है। क्या राजनीति अवांछनीय गतिविधि है, जिससे हमें अलग रहना चाहिए और पीछा छुड़ाना चाहिए? या यह इतनी उपयोगी गतिविधि है कि बेहतर दुनिया बनाने के लिए हमें इसमें निश्चित ही शामिल होना चाहिए।

महात्मा गाँधी ने एक बार टिप्पणी की थी कि राजनीति ने हमें साँप की कुंडली की तरह जकड़ रखा है और इससे जूझने के सिवाय कोई अन्य रास्ता नहीं है।

राजनीतिक संगठन और सामूहिक निर्णय के किसी ढाँचे के बगैर कोई भी समाज जिंदा नहीं रह सकता। जो समाज अपने अस्तित्व को बचाए रखना चाहता है, उसके लिए अपने सदस्यों की विविध ज़रूरतों और हितो का ख्याल रखना आवश्यक होता है। परिवार जनजाति और आर्थिक संस्थाओं जैसी अनेक सामाजिक संस्थाएँ लोगों की ज़रूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने में सहायता करने के लिए पनपी हैं। ऐसी संस्थाएँ हमें साथ रहने के उपाय खोजने और एक-दूसरे के प्रति अपने कर्तव्यों को कबूलने में मदद करती हैं। इन संस्थाओं के साथ सरकारें भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सरकारों कैसे बनती हैं और कैसे कार्य करती हैं, यह राजनीति में दर्शाने वाली महत्त्वपूर्ण बातें है।

राजनीतिक सिद्धांत में हम क्या पढ़ते हैं

राजनीतिक सिद्धांत उन विचारों और नीतियों को व्यवस्थित रूप को प्रतिबिंबित करता है, जिनसे हमारे सामाजिक जीवन, सरकार और सावधान ने आकार ग्रहण किया है। यह स्वतंत्रता, समानता, न्याय, लोकतंत्र और धर्मनिरेपेक्षता जैसी अवधारणाओं का अर्थ स्पष्ट करता है। यह कानून का राज, अधिकारों का बँटवारा और न्यायिक पुनरवलोकन जैसी नीतियों की सार्थकता की जाँच करता है। यह इस काम को विभिन्न विचारकों द्वारा इन अवधारणाओं के बचाव में विकसित युक्तियों की जाँच-पड़ताल के जरिये करता है।

लेकिन यह सब, अब हमारे लिए प्रासंगिक है? क्या, अब हम स्वतंत्रता और लोकतंत्र प्राप्त नहीं कर चुके हैं? भारत सचमुच स्वायत्त और स्वतंत्र है, हालाँकि स्वतंत्रता और समानता से संबंधित प्रश्नों का उठना बंद नहीं हुआ है। ऐसा इसलिए कि स्वतंत्रता समानता तथा लोकतंत्र से संबंधित मुद्दे सामाजिक जीवन के अनेक मामलों में उठते हैं और विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रफ्तार से उनकी बढ़ोतरी हो रही है। उदाहरण के लिए राजनीतिक क्षेत्र में समानता समान अधिकारों के रूप में बनी है, लेकिन यह आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में उसी तरह नहीं है। लोगों के पास समान राजनीतिक अधिकार हो सकते हैं, लेकिन हो सकता है कि समाज में उनके साथ जाति या गरीबी के कारण अभी भी भेदभाव होता हो। संभव है कि कुछ लोगों को समाज में विशेषाधिकार प्राप्त हो, वहीं कुछ दूसरे बुनियादी आवश्यकताओं तक से वंचित हों। कुछ लोग अपना मनचाहा लक्ष्य पाने में सक्षम हैं, जबकि कई लोग भविष्य में अच्छा राजेगार पाने के लिए जरूरी स्कूली पढ़ाई में भी अक्षम हैं। उनके लिए स्वतंत्रता अभी भी दूर का सपना है।

दूसरे, हालाँकि हमारे संविधान में स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है, फिर भी हमें हरदम नहीं व्याख्याओं का सामना करना पड़ता है। यह एक तरह से खेल खेलने जैसा है।

ठीक इसी प्रकार नई परिस्थितियों के मद्देनजर संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की निरंतर पुनर्व्याख्या की जा रही है। इसकी एक बानगी तो यही है कि ‘आजीविका के अधिकार’ को जीवन के अधिकार में शामिल करने के लिए अदालतों द्वारा उसकी पुनर्व्याख्या की गई है। सूचना के अधिकार की गांरटी एक नए कानून द्वारा की गई है। समय के साथ-साथ संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों में संशोधन भी हुए और इनका विस्तार भी। यद्यपि न्यायिक व्याख्याएँ और सरकारी नीतियाँ नई समस्याओं का सामना करने के लिए बनाई गई हैं।

तीसरे, जैसे-जैसे हमारी बदल रही है, हम आजादी और आजादी पर संभावित खतरों के नए-नए आयामों की खोज कर रहे हैं। उदाहरण के लिए वैश्विक संचार तकनीक दुनिया भर में आदिवासी संस्कृति या जंगल की सुरक्षा के लिए सक्रिय कार्यकर्ताओं का एक-दूसरे से तालमेल करना आसान बना रही है। पर इसने आतंकवादियों और अपराधियों को भी अपना नेटवर्क कायम करने की क्षमता दी है। इसके अलावा, भविष्य में इंटरनेट द्वारा व्यापार में बढ़ोतरी तय है। इसका अर्थ है कि वस्तुओं अथवा सेवाओं की खरीद के लिए हम अपने बारे में जो सूचना ऑन लाइन दें, उसकी सुरक्षा हो। इसीलिए यूँ तो हम अपने बारे में जो सूचना ऑन लाइन दें, उसकी सुरक्षा हो। इसीलिए यूँ तो इंटरनेटजन (अंग्रेजी में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों को नेटिजन कहा जाता है।) सरकारी नियंत्रण नहीं चाहते, लेकिन वे भी वैयक्तिक सुरक्षा और गोपनीयता बनाये रखने के लिए किसी न किसी प्रकार का नियमन जरूनी मानते हैं। परिणामस्वरूप ये प्रश्न उठाए जाते हैं कि इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों को कितनी स्वतंत्रता दी जानी चाहिए? क्या आप किसी अजनबी को अवांछनीय ई-मेल भेज सकते है? क्या आप चैट रूम में अपने उत्पाद का विज्ञापन कर सकते हैं? क्या सरकार आतंकवदियों को सुराग लगाने के लिए किसी के व्यक्तिगत ई-मेल में ताकझाँक कर सकती है? कितना नियमन न्यायोचित है और किसको नियमन करना चाहिए सरकार को या कुछ स्वतंत्र नियामकों को? राजनीतिक सिद्धांत में इन प्रश्नों के संभावित उत्तरों के सिलसिले में हमारे सीखने के लिए बहुत कुछ है और इसीलिए यह बेहद प्रासंगिक है।

राजनीतिक सिद्धांतों को व्यवहार में उतारना

राजनीतिक अवधारणाओं के अर्थ को राजनीतिक सिद्धांतकार यह देखते हुए स्पष्ट करते हैं कि आम भाषा में इसे कैसे समझा और बरता जाता है। वे विविध अर्थों और रायों पर विचार-विमर्श और उनकी जाँच-पड़ताल भी सुव्यवस्थित तरीके से करते हैं। अवसर की समानता कब पर्याप्त है? कब लोगों को विशेष बरताव की जरूरत होती है? ऐसा विशेष बरताव कब तक  और किस हद तक किया जाना चाहिए? क्या गरीब बच्चों को स्कूल में बने रहने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु दोपहर का भोजन दिया जाना चाहिए?  ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जिनकी ओर वे मुखातिब होते हैं। आप भी देख सकते हैं कि ये मसले बिलकुल व्यावहारिक हैं। वे शिक्षा और रोजगार के बारे में सार्वजनिक नीतियाँ तय करने में मार्गदर्शन करते हैं।

हमें राजनीतिक सिद्धांत क्यों पढ़ना चाहिए ?

पहली बात तो यह कि राजनीतिक सिद्धांत ऐसे सभी समूहों के लिए प्रासंगिक है। छात्र के रूप में हम भविष्य में उपर्युक्त पेशों में से किसी एक को चुन सकते हैं और इसलिए परोक्ष रूप से यह अभी ही हमारे लिए प्रासंगिक है। क्या हम गणित नहीं पढ़ते, जबकि हममें से सभी गणितज्ञ या इंजीनियर नहीं बनेंगे? क्या इसीलिए नहीं कि बुनियादी अंकगणित जीवन में सामान्यत: उपयोगी होता है?

दूसरी बार यह कि हम सभी मत देने और अन्य मसलों के फैसले करने के अधिकार-संपन्न नागरिक बनने जा  रहे हैं। दायित्वपूर्ण कार्य निर्वहन के लिए उन राजनीतिक विचारों और संस्थाओं की बुनियादी जानकारी हमारे लिए मददगार होती है, जो हमारी दुनिया को आकार देते हैं।

तीसरी बात यह कि आज़ादी, समानता और धर्मनिरपेक्षता हमारे जीवन के अमूर्त मसले नहीं हैं। परिवारों, विद्यालयों, महाविद्यालयों, व्यावसायिक केंद्रों आदि में तरह-तरह के भेदभावों का हम प्रतिदिन सामना करते हैं। हम स्वयं भी अपने से भिन्न लोगों के प्रति पूर्वाग्रह रखते हैं, चाहे वे अलग जाति के हों या अलग धर्म के अथवा अलग लिंग या वर्ग के। यदि हम उत्पीड़ित महसूस करते हैं, तो हम पीड़ा का निवारण चाहते हैं और यदि उसमें विलम्ब होता है, तब हम महसूस करते हैं कि हिंसक क्रांति उचित है। यदि हम विशेषाधिकार संपन्न है, तो हम सम्मान के लिए संघर्षरत अपने नौकरों और नौकरानियों के उत्पीड़न से भी इनकार करते है। कभी-कभी हम यह भी महसूस करते हैं कि हमारे नौकर उसी व्यवहार के योग्य हैं, जो उनके साथ हो रहा है। राजनीतिक सिद्धांत बस यही करता है कि वह हमें राजनीतिक चीजों के बारे में अपने विचारों और भावनाओं के परीक्षण के लिए प्रोत्साहित करता है। थोड़ी अधिक सतर्कता से देखने भर से हम अपने विचारों और भावनाओं में उदार होते जाते हैं।

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