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Class 6th social science civics chapter 1 : विविधता की समझ पार्ट 2
4. जातीय विविधता
भारतीय समाज में जाति के आधार पर विविधता दिखाई देती हैं वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था थी जो जन्मता न होकर कर्मणा होते थे। जाति विविधता हिंदू धर्म की देन है परंतु ये विविधता सभी धर्मों में दिखाएं देते हैं। प्राचीन काल में जाति को 4 वर्गों में विभाजित किया गया था।
1) ब्राह्मण : (विद्वान, सलाहकार, यज्ञ करने वाला)
2) क्षत्रिय : (रक्षा करने वाला -राजा, सैनिक)
3) वैश्य : (व्यापारी, सौदागर, खेत के मालिक, जमीदार)
4) शुद्र : (सेवक-तीनों वर्गों की सेवा करता है।)
आज हम देखते हैं कि जाति भेदभाव देश की राजनीति पर भी हावी हो गया है चुनाव के समय जातिवाद का उपयोग किया जाता है।
5. जनजातीय विविधता
जन जातियां से तात्पर्य है ऐसे मानव समूह जो आज भी सभ्यता की दौड़ में पीछे हैं तथा आदिम जीवन व्यतीत कर रहे हैं। 1991 की जनगणना के अनुसार भारत में 6.78 प्रतिशत जनजातीय लोग रहते हैं कुछ जनजाति आधुनिक सुख सुविधा को अपना लिया है और कुछ इन सुख-सुविधाओं से वंचित हैं इन सब जातियों की संस्कृति रहन सहन रीति रिवाज तथा भाषाएं हैं। भारतीय संविधान में भी इन जनजातियों को अधिकार एवं सुविधाएं दी गई है तथा इनकी संस्था भारतीय संविधान के अनुसार 216 है परंतु इसके अतिरिक्त भी बहुत सी जनजातीय हैं जो जनजाति है जीवन बिता रहे हैं संपूर्ण भारत को जनजातियों की दृष्टि से चार क्षेत्रों में बांटा गया है-
मध्य क्षेत्र:-
मध्य प्रदेश, बिहार, उड़ीसा तथा पश्चिम बंगाल की जनजातीय आती है जैसे संथाल, मुंडा, उरांव, भूमीज, गोंड भुईया आदि।
1) दक्षिण क्षेत्र में:- केरल, मैसूर, मद्रास, पूर्व-पश्चिम क्षेत्रों में रहने वाली जनजातियां गोंडा, कोण्डा, गेरा, इरुला आदि।
2) पश्चिमी क्षेत्रों में:- राजस्थान गुजरात और महाराष्ट्र रहने वाली जनजातियां जैसे मीना, भील, कोकना आदि आते हैं।
टिप्पणी: एक ही जगह या परिवेश के दो व्यक्तियों में उसके खानपान एवं रहन-सहन में अंतर पाई जाती है तो उसे विविधता नहीं कर सकते हैं। एक ही परिवेश के लोगों में खानपान एवं रहन सहन में अंतर गरीबी और अमीरी के कारण होता है। गरीबी तथा अमीरी विविधता का रूप नहीं है। इसे गैर बराबरी यानि असमानता कहते हैं।
विविधता की समझ
गैर बराबरी – गैर बराबरी का मतलब है की कुछ लोगो के पास न अवसर है न ही जमीन या पैसे जैसे संसाधन, जो दुसरो के पास है। इसलिए गरीबी और अमीरी विवधता का रूप नहीं है। यह लोगो के बिच मौजूदा असमानता यानि गैर बराबरी है।
जाति व्यवस्था – असमानता का एक और उदहारण है।इस बटवारे का आधार था लोग किस- किस तरह का काम करते है।किस जाति में पैदा होते है।
भारत में विविधता
भारत विविधताओं का देश है।यहां कई प्रकार के धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं। भारत में अनेकों प्रकार की भाषाएं बोली जाती है,अलग-अलग त्योहार मनाए जाते हैं तथा विभिन्न प्रकार का खाना खाया जाता है। इन्हीं सब कारणों से भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है। उपरोक्त लेख के माध्यम से हम लोगों ने विविधता को जाना। इस लेख में हम लोगों ने जाना कि विविधता किसे कहते हैं? विविधता के प्रकार एवं विविधता के कारण, भारत में विविधता, विविधता में एकता के बारे में हमलोगों ने अध्ययन किया।
विविधता के कारण
– प्राचीन काल में लोग युद्ध भोजन व अकाल अन्य कारण से एक इस्थान से दूसरे इस्थान चले जाते थे और यात्रा के साधन के आभाव में वही रहने लगते थे इस कारन वह वहाँ की संस्कृति ,भाषा को सिख लेते थे और अपनी पुरानी संस्कृति व नई संस्कृति के साथ सामंजस्य बना कर नई संस्कृति उभरने लगती थी।
– विविधता के लिए भौगोलिक कारक भी महत्त्वपूर्ण है जैसे, जलवायु, मृदा, मानसून, जल, मैदान, इत्यादि लोग अपनी भौगोलिक परिस्थितियो के अनुरूप व संस्कृति परम्पराओ को ढाल लेते है।
– भारत में विभिन्न जातियों, धर्मों के लोग निवास करते हैं। यहाँ अनेकों भाषाओं का प्रचलन है तथा समाज में विभिन्न जातियों का अस्तित्व है। इसके बावजूद भी ये सभी एक देश व एक स्थान पर साथ-साथ निवास करते हैं जो भारतीय समाज में विविधता का प्रमुख कारण है,
जैसे-
1. जातीय कारण-
भारतीय समाज और संस्कृति में जातिगत विविधता भी बड़ी महत्वपूर्ण है। यद्यपि यह विविधता प्राकृतिक या वाह्य कारणों से नहीं वरन् हिन्दू संस्कृति की ही देन है, तथापि अलगाव और सामाजिक जीवन के खण्डात्मक विभाजन की दृष्टि से बड़ी महत्वपूर्ण है। जे0 एच0 हट्टन (J. H. Hutton) के अनुसार भारतवर्ष में करीब 3,000 से भी ऊपर जातियाँ और उपजातियाँ हैं। इनकी उत्पत्ति इसी समाज के भीतर से हुई परन्तु सामाजिक सम्मिलन की दृष्टि से जातिगत विविधता ने भारतीय समाज में बड़ा अलगाव पैदा किया है। विवाह, छुआछूत, जाति के प्रति भक्ति, दूसरी जातियों के प्रति ऊँच-नीच की भावना और उससे उत्पन्न घृणा आदि के कारण ही भारतीय समाज में विविधता पाईजातीहै।
2. संजातीय कारण-
नृजातिकी समूह किसी समाज की जनसंख्या का वह भाग होता है जो परिवार की पद्धति, भाषा, मनोरंजन, प्रथा, धर्म, संस्कृति एवं उत्पत्ति आदि आधार पर अपने को दूसरों से पृथक् समझता है। दूसरे शब्दों में, एक प्रकार की भाषा, प्रथा, धर्म, परिवार, रंग एवं संस्कृति से सम्बन्धित लोगों के एक समूह को नृजातिकी की संज्ञा प्रदान दी जाती है। समान इतिहास, प्रजाति, जनजाति, वेश-भूषा, खान-पान वाला सामाजिक समूह भी एक नृजातीय समूह होता है जिसकी अनुभूति उस समूह एवं अन्य समूहों के सदस्यों को होनी चाहिये।समान आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक हितों की रक्षा तथा अभिव्यक्ति करने वाले समूह को भी संजातीय समूह कहा जा सकता हैं। एक नृजातिकी के लोगों में परस्पर प्रेम, सहयोग एवं संगठन पाया जाता है, उनमें अहं की भावना पायी जाती है। एक नृजातिकी के लोग दूसरी नृजातिकी के लोगों से अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने हेतु अपनी भाषा, वेश-भूषा, रीति रिवाज एवं उपासना पद्धति की विशेषताओं को बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं। समाजशास्त्रीय भाषा में इसे नृजातिकी केन्द्रित पवृत्ति (Ethnocentrism) कहते हैं। नृजातिकी के आधार पर एक समूह दूसरे समूह से अपनी दूरी बनाये रखता है। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से शक्तिशाली नृजातिकी समूह कमजोर नृजातिकी समूह का शोषण करते हैं, उनके साथ भेद-भाव रखते हैं। इससे समाज में असमानता, संघर्ष एवं तनाव पैदा होता है। भाषा, धर्म और सांस्कृतिक विभेद, संजातीय समस्या के मुख्य कारण हैं। भारत में भाषा, धर्म, सम्प्रदाय एवं प्रान्तीयता की भावना के कारण अनेक तनाव एवं संघर्ष हुए हैं।
3. भाषायी कारण-
भाषा मनुष्य की अभिव्यक्ति का शायद सबसे शक्तिशाली माध्यम है। प्राकृतिक अलगाव के कारण इस देश में प्रायः प्रत्येक दस मील पर भाषा और बोली में अन्तर पाया जाता है। 2001 की जनगणना के अनुसार देश में 1,652 भाषाएँ बोली जाती हैं। वैसे भारतीय संविधान में केवल 18 भाषाओं का ही उल्लेख किया गया है, परन्तु इनके अतिरिक्त भारत में और भी भाषाएँ और बोलियाँ हैं जिनका कुछ-न-कुछ साहित्य है। वैसे तो अधिकांश भाषाएँ लिपि-रहित हैं, परन्तु कुछ की लिपियाँ भी हैं और समृद्ध भी। कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे देश और समाज में भाषागत विविधता भी बहुत है भारत की सभी भाषाओं को तीन भाषा परिवारों में रखा गया है
– इण्डो आर्यन भाषा परिवार– इसके अन्तर्गत हिन्दी, संस्कृत, बंगला, उर्दू, राजस्थानी हरियाणवी आदि भाषायें सम्मिलित हैं।
– द्रविड़ भाषा परिवार– इसके अन्तर्गत तमिल, तेलगू, कन्नड़, मलयाली और गोंडी आदि भाषायें सम्मिलित हैं।
– आस्ट्रिक भाषा परिवार– इसके अन्तर्गत बिरहोर, कोरकू, हो, खरिया, भूमिज, संथाली, मुण्डारी, जुआँग, खासी, कोरवा आदि भाषायें सम्मिलित हैं।
उपरोक्त भाषाओं के अतिरिक्त भारत में चीनी-तिब्बती परिवार की भाषा भी पायी जाती है, यथा लेपचा, नेवाड़ी, मणिपुरी और नागा भाषा आदि।
4. भौगोलिक कारण-
भौगोलिक दृष्टि से भारत भिन्न-भिन्न खण्डों और उपखण्डों में विभक्त है तथा उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम में हजारों किलोमीटर तक फैला हुआ है। भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर (विश्व का 2.42 प्रतिशत) है। यह सम्पूर्ण भू-भाग तीन भागों में विभाजित है- (क) हिमालय का विस्तृत पर्वतीय प्रदेश, (ख) गंगा का मैदान और (ग) दक्षिणी पठारी भाग सभी खण्डों और उपखण्डों के वासियों की भाषा, रहन-सहन, तौर-तरीके, वेशभूषा, संस्कृति और सामाजिक संगठन अलग-अलग हैं। इतना ही नहीं, विभिन्न भागों में पाए जाने वाले पशु, वर्षा की दशा, भूमि की किस्म, खान-पान इत्यादि में भी विविधता पाई जाती है।
5. प्रजातीय कारण-
भारत की विशालता को देखते हुए इसे एक छोटा-सा महाद्वीप कहना ठीक होगा। कभी-कभी भारत को विभिन्न जातियों और प्रजातियों का अजायबघर भी कह दिया जाता है। बिलोचिस्तान से लेकर असम और म्यांमार (बर्मा) तक, पश्चिमी तट पर गुजरात से लेकर कुर्ग की पहाड़ियों तक तथा हिमालय पर्वत से लेकर कन्याकुमारी तक विविध प्रजातियों के लोग रहते है, जैसे- श्वेत (काकेशियन), पीत (मंगोलियन), श्याम (नीगागे, तस्मानियन, मलेशियन, बुशमैंन) आदि। सम्पूर्ण भारत में यों तो बहुत प्रजातियाँ रहती हैं, परन्तु 8 प्रजातियाँ विशेषतया उल्लेखनीय हैं- आर्य प्रजाति, मंगोल प्रजाति, द्रविड़ प्रजाति, मंगोल द्रविड़ प्रजाति, सीथो- द्रविड़ नीग्रटो प्रजाति और भूमध्यसागरीय प्रजाति। इन सभी प्रजातियों के खान-पान, व्यवसाय, रहन-सहन, आचार-विचार, मनोरंजन के साधन, सामाजिक संगठन, भाषा और शारीरिक विशेषताएँ भी भिन्न-भिन्न प्रकार की हैं। इस प्रकार, भारत में सभी प्रमुख प्रजातियाँ विद्यमान रही हैं। यद्यपि आज प्रजातीय मिश्रण के कारण शुद्ध रूप में कोई प्रजाति नहीं पाई जाती है, तथापि प्रजातियों के सम्मिश्रण से उत्पन्न विविधता स्पष्टतः देखी जा सकती है।
6. जनजातीय कारण-
भारतवर्ष में अनेक ऐसे मानव समूह निवास करते हैं जो आज भी आधुनिक सभ्यता के प्रभावों से बहुत दूर हैं। इन्हीं को जनजाति अथवा वन्य जाति कहा जाता है। सभी जनजातियों की भाषा अलग है, पूजा विधि अलग है और संस्कृति भी अलग है। इन सभी जनजातियों में भी सांस्कृतिक विविधता पाई जाती है। भारतीय संविधान में इनकी कुल संख्या 216 है, परन्तु इसके अतिरिक्त भी बहुत से ऐसे समुदाय हैं जो जनजातीय जीवन बिता रहे हैं। सम्पूर्ण भारत को जनजातियों की दृष्टि से चार क्षेत्रों में बांटा जा सकता है (अ) मध्य क्षेत्र में मध्य प्रदेश, बिहार व उड़ीसा तथा पश्चिम बंगाल की जनजातियाँ (जैसे कि सन्थाल, मुण्डा, उराँव, हो, भूमिज, कोया, खोण्ड, भूइयाँ, बैगा इत्यादि) आती हैं। (ब) उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में हिमालय की तराई, असम और बंगाल की जनजातियाँ (जैसे गद्दी, गूजर, किन्नउरा, कुकी, गारो, खासी, नागा इत्यादि) आती हैं। (स) दक्षिणी क्षेत्र में केरल, मैसूर, मद्रास (चेन्नई) तथा पूर्वी पश्चिमी घाटों पर रहने वाली जनजातियाँ (जैसे गोंड, कोण्डा डोरा, इरूला, टोडा, पनियन इत्यादि) आती हैं। (द) पश्चिमी क्षेत्र में राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में रहने वाली जनजातियाँ (जैसे मीना, भील, गमित, कोकना इत्यदि) आती हैं। जनजातियों की कुल जनसंख्या का इन चार क्षेत्रों में प्रतिशत वितरण इस प्रकार है-(i) हिमालय का क्षेत्र (11.35), (ii) मध्य भारत क्षेत्र (56.88), (iii) पश्चिमी भारत क्षेत्र (24.86) तथा (iv) दक्षिणी भारत क्षेत्र (6.21)
7. धार्मिक कारण-
धार्मिक दृष्टिकोण से भारत के नागरिक विभिन्न धर्मों के अनुयायी हैं। यदि एक ओर हिन्दू धर्म में विश्वास करने वाले हैं तो दूसरी ओर इस्लाम धर्म मानने वाले मुस्लिम लोग भी भारतवासी ही हैं। बौद्ध धर्म के लोग भी भारत में कुछ कम नहीं हैं। क्रिश्चियन अर्थात् ईसाई धर्म को मानने वाले भी नगरों और ग्रामीण समुदायों में वास करते हैं । सिक्ख धर्म के लोग भी भारत के विभिन्न प्रान्तों में फैलें हुए है। सभी धर्मों की अपनी भिन्न-भिन्न मान्यताएँ हैं तथा उपसना एवं पूजा की अपनी-अपनी भिन्न-भिन्न विधियाँ हैं। इन धर्मों के अतिरिक्त अनेक सम्प्रदाय, जैसे- रौब, वैष्णव, आर्य समाजी, नानक पन्थी, कबीर पन्थी इत्यादि उल्लेखनीय हैं जिनके अन्तर्गत उच्च कोटि के विचारक उत्पन्न हुए हैं।
8. राजनीतिक कारण-
प्रशासन की सुविधा के लिए भारत को पाँच प्रमुख भागों में विभक्त कर दिया गया है। ये पांच भाग हैं- केन्द्र, प्रान्त, जिला, ब्लॉक और नगर अथवा गाँव। इन सब भागों के अलग-अलग अधिकारीगण हैं और उनके अधिकार क्षेत्र तथा कर्तव्य भी अलग-अलग तथा सुनिश्चित हैं। जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा इन उपर्युक्त सभी भागों और उपभागों का प्रशासन चलता है। सरकारी नियम भी भिन्न-भिन्न भागों में अलग-अलग हैं। जनता द्वारा निर्वाचित प्रत्येक क्षेत्र (भाग) की सरकार को पूर्णतया यह स्वतन्त्रता है कि वह अपने क्षेत्र के नागरिकों के कल्याण के लिए समितियाँ और उपसमितियाँ बनाकर कार्यभार सँभाले । भारत में राजनीतिक दलों की भरमार है तथा उनकी विचाराधाराओं में पर्याप्त अन्तर है। केन्द्र में एक दल की सरकार है तो विभिन्न राज्यों में उससे भिन्न प्रकार के राजनीतिक दलों की सरकारें कार्य कर सकती हैं।
विविधता के लाभ या विविधता के गुण
– विविधता न होती तो जीवन उभाव हो जाता।
– परस्पर निर्भर के लिए विविधता उपयोगी है।
– विविधता के द्वारा व्यक्ति की रचनात्मक शक्तियों का विकास होता है।
– विविधता के द्वारा उदार तथा शांतिपूर्ण अस्तित्व भावना का विकास होता है।
– विविधता सांस्कृतिक गौरव का परिचायक है।
– विविधता चाहे सामाजिक या आर्थिक हो देश की प्रगति में आवश्यक है।
– विविधता के द्वारा हम एक दूसरे के पूरक बन सकते हैं तथा विभिन्न प्रकार की समस्याओं का समाधान करने में समर्थ हो सकते हैं।
विविधता के दोष
– विविधता को आधार बनाकर देश में अशांति का वातावरण बनाना।
– जातिय, प्रजातीय तथा धार्मिक विविधता को आधार बनाकर संप्रदायिक दंगे कराना।
– ऊंच-नीच की भावना विकसित करना।
– देश की एकता एवं अखंडता हेतु खतरा हो ना।
– सांस्कृतिक टकरा हट तथा युद्ध की स्थितियों का पनपना।
– राजनीति में विविधता को मोहरा बनाकर विकास के स्थान पर गंदी राजनीति करना।
विविधता मुक्त समाज में बच्चों की शिक्षा नीति एवं संवैधानिक प्रावधान:-
– संविधान के अनुच्छेद 15 में वंश, धर्म, लिंग, जन्म स्थान आदि किसी भी आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध लगाता है। यह अधिकार भारतीय नागरिकों को प्रदान किया गया है।
– अनुच्छेद 15 3 में स्त्रियों एवं बच्चों के लिए विशेष व्यवस्था की गई है कि राज्य को सरकारी नौकरी में पुरुषों की तुलना में स्त्रियों को प्राथमिकता देना अर्थात् स्त्री एवं पुरुष आदि समान रूप से योग्य है लेकिन स्त्री अधिक योग्य है तो स्त्री को प्राथमिकता दी जा सकती हैं यह प्रावधान लिंग भेद को दूर करने के लिए किया गया है।
– अनुच्छेद 15 4 में कहा गया है कि राज्य समाजिक तथा शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों तथा SC,ST के लिए विशेष प्रबंध करता है इसके माध्यम से समाज में जाति के आधार पर असमानता को दूर करने का प्रयास किया गया है।
विविधता पर भूगोल का प्रभाव
भूगोल हमारे जीवन के कई पहलुओं को प्रभावित करता है। भूगोल से यह तय होता है कि हमारी शक्ल कैसी है, हम क्या खाते हैं और हम क्या पहनते हैं। भारत में भौगोलिक विविधता प्रचुर मात्रा में है। भौगोलिक लक्षणों के कारण होने वाली विविधताओं के कुछ उदाहरण नीचे दिये गये हैं।
– जम्मू और कश्मीर हिमालय के निकट होने के कारण एक ठंडी जगह है। इसलिए यहाँ के लोग अक्सर गोरे और लंबे होते हैं। ठंडी जलवायु के कारण लोग गर्म कपड़े पहनते हैं।
– दक्षिण भारत की जलवायु गर्म और नम होती है। इसलिये दक्षिण भारत के लोग अक्सर गहरे रंग के और मध्यम लंबाई के होते हैं। यहाँ के लोग अक्सर वेस्ती (लुंगी) पहनते हैं। यहाँ के लोग चावल खाते हैं और उनके अधिकतर व्यंजनों में नारियल का इस्तेमाल होता है।
– पश्चिम बंगाल में भी गर्म और नम जलवायु होती है। इसलिए पूर्वी भारत के अधिकतर लोगों की त्वचा भूरी या गहरी होती है। यहाँ के लोग मुख्य रूप से चावल और मछली खाते हैं।
विविधता पर इतिहास का प्रभाव
– विविधता पर इतिहास का भी गहरा प्रभाव पड़ता है। हमारे भोजन में इस्तेमाल होने वाली अधिकतर चीजें अलग-अलग देशों से आई हैं। आज आप लोग नूडल बहुत चाव से खाते हैं। नूडल चीन से आया है। लेकिन नूडल के लोकप्रिय होने से सैंकड़ों वर्षों पहले से यहाँ सेवियाँ खाई जाती हैं। ये भी नूडल का ही एक रूप है। आलू, टमाटर, लाल मिर्च और कई अन्य सब्जियाँ अलग-अलग देशों से आई हैं।
– आदि काल से ही लोग एक जगह से दूसरी जगह की यात्रा करते आये हैं। अधिकतर लोग व्यापार के लिए यात्रा करते थे। लेकिन कुछ लोग तीर्थ करने के लिए भी यात्रा करते थे। ऐसे लोग अपने साथ अपना खानपान, पोशाक, संस्कृति और धर्म को भी ले जाते थे।
भारतीय विविधता के समक्ष चुनौतियाँ
– विविधता’ शब्द असमानताओं के बजाय अंतरों पर बल देता है। जब हम यह कहते है कि भारत एक महान सांस्कृतिक विविधता वाला राष्ट्र है वो हमारा तात्पर्य यह होता है कि यहाँ अनेक प्रकार के सामाजिक समूह एवं समुदाय निवास करते है।
भारत में सांस्कृतिक विविधता की झलक :-
– भारतम में विभिन्न प्रदेशों में भाषा, रहन-सहन, खानपान, वेश-भूषा, प्रथा, परम्परा, लोकगीत, लोकगाथा, विवाह प्रणाली, जीवन संस्कार, कला, संगीत तथा नृत्य में भी हमें अनेक रोचक व आकर्षक भेद देखने को मिलते है।
– सांस्कृतिक विविधता से सम्प्रदायवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद आदि पनपते है। एक समुदाय दूसरे समुदाय को नीचा दिखाता है।
जैसे-
नदियों के जल, सरकारी नौकरियों, अनुदानों के बंटवारे को लेकर खींचतान शुरू हो जाती है।
सांस्कृतिक विविधता –
– भारत में अनेक प्रकार के सामाजिक समूह व समुदाय निवास करते है। जिनकी भाषा, धर्म, पंथ, जाति, प्रजाति अलग-अलग है। इसे ही सांस्कृतिक विविधता कहा जाता है।
– सांस्कृतिक विविधता के कारण हमारे सामने बड़ी-बड़ी चुनौतिया है जैसे क्षेत्रवाद, सांप्रदायिकता व जातीयता।
– सामुदायिक पहचान जन्म तथा अपनेपन पर आधरित होती हैं कि किसी अर्जित योग्यता या उपलब्धि के आधार पर।
प्रदत्त पहचान –
जो पहचान जन्म से निर्धारित होती है। उसे प्रदत्त पहचान होती जैसे जाति, धर्म, लिंग आदि।
अर्जित पहचान –
जिसकी पहचान अपनी योग्यता, कौशल, हुनर आदि से प्राप्त की जाती है उसे अर्जित पहचान कहा जाता है। जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, अध्यापक आदि।
समुदाय –
व्यक्तियों का समूह जिसमें हम की भावना है, तथा अपनापन हो।
राष्ट्र –
राष्ट्र एक तरह का बड़े स्तर का समुदाय होता है, यह कई समुदायों से मिल कर बनता है।
मैक्स वैबर के अनुसार –
– राज्य एक ऐसा निकाय होता जो एक विशेष क्षेत्र में विधिसम्मत एकाधिकार का सफलतापूर्वक दावा करता है।
– राष्ट्र व राज्य के बीच एकैक (एक-एक का) सम्बन्ध है जैसे-एक-राष्ट्र-एक राज्य या एक राज्य–एक राष्ट्र।
– सांकृतिक विविधता के कारण अधिकांश राज्यों को डर था कि इसमें सामाजिक विखंडन की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी व समरसत्ता पूर्ण समाज के निमार्ण मे रूकावट आएगी।
भारत में सांस्कृतिक विविधता –
जनसंख्य की दृष्ट्रि से भारत का स्थान विश्व में दूसरा है। यहाँ पर 1632 भिन्न भाषाएं व बोलियां है तथा विभिन्न धर्म – हिन्दू 80.5%, 13.4% मुसलमान, ईसाई 2.3%, सिख 1.9%, बौद्ध 0.8%, जैन 0.4%, 0.2% विभिन्न जातियों
विविधता में एकता
भारत में “विविधता में एकता” की प्रसिद्ध अवधारणा बिल्कुल सटीक बैठती है। “विविधता में एकता” का अर्थ है अनेकता में एकता। कई वर्षों से इस अवधारणा को साबित करने वाला भारत एक श्रेष्ठ देश है । भारत एक ऐसा देश है जहाँ पर “विविधता में एकता” देखने के लिये ये बहुत स्पष्ट है क्योंकि अपने धर्म के लिये एक-दूसरे की भावनाओं और भरोसे को बिना आहत किये कई कई धर्मों, नस्लों, संस्कृतियों, और परंपराओं के लोगों का एक साथ रहते हैं।
विविधता में एकता का महत्व
– “विविधता में एकता” लोगों की कार्यस्थल, संगठन और समुदाय में मनोबल को बढ़ाता है।
– ये लोगों के बीच में दल भावना, रिश्ते, समूह कार्य को बढ़ाने में मदद करता है इसकी वजह से प्रदर्शन, कार्यकुशलता, उत्पादकता और जीवन शैली में सुधार आता है।
– बुरी परिस्थिति में भी ये प्रभावशाली संवाद बनाता है।
– सामाजिक परेशानियों से लोगों को दूर रखता है और मुश्किलों से लड़ने में आसानी से मदद करता है।
– मानव रिश्तों में अच्छा सुधार लाता है तथा सभी के मानव अधिकारों की रक्षा करता है।
– भारत में “विविधता में एकता” पर्यटन के स्रोत उपलब्ध कराता है। पूरी दुनिया से अधिक यात्रियों और पर्यटकों को विभिन्न संस्कृति, परंपरा, भोजन, धर्म और परिधान के लोग आकर्षित करते हैं।
– कई तरीकों में असमान होने के बावजूद भी देश के लोगों के बीच राष्ट्रीय एकीकरण की आदत को ये बढ़ावा देता है।
– भारत की सांस्कृतिक विरासत को मजबूत और समृद्ध बनाने के साथ ही ये देश के संपन्न विरासत को महत्व देता है।
– विभिन्न फसलों के द्वारा कृषि के क्षेत्र में संपन्न बनाने में ये मदद करता है जिससे अर्थव्यवस्था में वृद्धि होती है।
– देश के लिये विभिन्न क्षेत्रों में कौशल और उन्नत पेशेवरों के साधन है।
भारत विश्व का एक प्रसिद्ध और बड़ा देश है जहाँ विभिन्न धर्म जैसे हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध, सिक्ख, जैन, ईसाई और पारसी आदि के एक साथ रहते हैं लेकिन सभी धर्म और क्रम के एक सिद्धांत पर भरोसा करते हैं। यहाँ के लोग स्वभाव से भगवान से डरने वाले होते हैं और आत्मा की शुद्धि, पुनर्जन्म, मोक्ष, स्वर्ग और नरक में भरोसा रखते हैं। बिना किसी धर्म के लोगों को हानि पहुँचाये बेहद शांतिपूर्ण तरीके से लोग अपने त्योंहारों होली, दिवाली, ईद, क्रिसमस, गुड फ्राईडे, महावीर जयंती, बुद्ध जयंती आदि को मनाते हैं।
NCERT SOLUTIONS
प्रश्न 1 अपने इलाके में मनाए जाने वाले विभिन्न त्योहारों की सूची बनाइए। इनमें से कौन-से त्योहार सभी समुदायों द्वारा मनाए जाते हैं.?
उत्तर – हमारे इलाके में मनाए जाने वाले विभिन्न त्योहारों की सूची इस प्रकार से है
1. होली
2. दीवाली,
3. दशहरा
4. ईद
5. बैसाखी
6. जन्माष्टमी
7. रामनवमी
8. गुरुपर्व
9. तीज
10. रक्षाबंधन
11. क्रिसमस
12. दुर्गा-पूजा
13. लोहड़ी
इन त्योहारों में से होली और दीवाली त्योहारों को सभी समुदायों के लोग मिलकर मनाते हैं। इनके अतिरिक्त हमारे राष्ट्रीय नों; जैसे स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, बाल दिवस, गांधी जयंती जैसे पर्यों को सभी समुदायों के लोग मिलकर मना
प्रश्न 2 आपके विचार में भारत की समृद्ध एवं विविध विरासत आपके जीवन को कैसे बेहतर बनाती है ?
उत्तर – भारत विविधताओं का देश है। हम विभिन्न भाषाएं बोलते हैं। हमारा खान-पान अलग-अलग है। हम अलग-अलग हार मनाते हैं और भिन्न-भिन्न धर्मों का पालन करते हैं। जब हम सभी लोग आपस में मिल जुलकर रहते हैं, तो इससे हमारा विन नए रंगों से सराबोर हो जाता है तथा जीवन में रोचकता और समृद्धि आती है।
प्रश्न 3 आपके अनुसार ‘अनेकता में एकता’ का विचार भारत के लिए कैसे उपयुक्त है ? ‘भारत की खोज’ किताब लिए गए इस वाक्यांश में नेहरू भारत की एकता के बारे में क्या कहना चाह रहे हैं ?
उत्तर – जवाहरलाल नेहरू ने अपनी किताब ‘भारत की खोज’ में लिखा कि भारतीय एकता कोई बाहर से थोपी हुई चीज़ नही ,बल्कि “यह बहुत ही गहरी है जिसके अंदर अलग-अलग तरह के विश्वास और प्रथाओं को स्वीकार करने की भावना है। इसमें चविधता को पहचाना और प्रोत्साहित किया जाता है।” यह नेहरू ही थे जिन्होंने भारत की विविधता का वर्णन करते हुए ‘अनेकता एकता’ का विचार हमें दिया। नेहरू जी ने भारत में अनेकता का वर्णन अग्रलिखित रूपों में किया है
– रंग-रूप की विविधता, …
– खान-पान की विविधता,
– भाषा की विविधता, .
– त्योहारों और रीति-रिवाज़ों की विविधता,
– व्यवसायों की विविधता,
– धर्म की विविधता।
लेकिन नेहरू जी कहते हैं कि इन सभी विविधताओं के बावजूद भी हम सभी भारतीय हैं। यह हमारी अनेकता में एकता का . दर्शन कराता है।
प्रश्न 4 जलियांवाला बाग हत्याकांड के ऊपर लिखे गए गाने की उस पंक्ति को चुनिए जो आपके अनुसार भारत की एकता को निश्चित रूप से झलकाती है।
उत्तर – जलियांवाला बाग हत्याकांड के ऊपर लिखे गए गाने की यह पंक्ति भारत की एकता की झलक प्रस्तुत करती है
“हिंदू औ, मुस्लिमों की, होती है आज होली
बहते हैं एक रंग में, दामन भीगों के जाना।”
प्रश्न 5 लदाख एवम् केरल की तरह भारत का कोई एक क्षेत्र चुनिए और अध्ययन कीजिए कि कैसे उस क्षेत्र की विविधता को ऐतिहासिक और भौगोलिक कारकों ने प्रभावित किया है।क्या ये ऐतिहासिक एवम् भौगोलिक कारक आपस में जुड़े हुए हैं ? कैसे ?
उत्तर – हम राजस्थान राज्य का उदाहरण लेते हैं। यह राज्य उत्तर-पश्चिमी भारत में पाकिस्तान की सीमा के साथ लगता है। यह एक रेगिस्तानी इलाका है। यहां चारों ओर रेत-ही-रेत है। इस राज्य का पश्चिमी क्षेत्र बहुत ही शुष्क है। वर्षा कम होने के कारण पानी की बहुत कमी है। लोग भेड़-बकरियां और ऊंट पालते हैं। ज्वार और बाजरा यहां की प्रमुख फसलें हैं। यहां की जलवायु बहुत विषम है। दिन बहुत अधिक गर्म होते हैं और रातें अधिक ठंडी होती हैं।
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