गुप्तकालीन वास्तुकला एवं मंदिरों की विशेषताएं

इस पोस्ट में हम प्राचीन भारत का इतिहास के एक टॉपिक गुप्तकालीन वास्तुकला एवं मंदिरों की विशेषताएं से संबंधित क्लासरूम नोट्स उपलब्ध करवा रहे हैं जिसमें आपको गुप्तकालीन वास्तुकला , गुप्तकालीन मंदिरों की विशेषताएँ , गुप्तकालीन प्रमुख मंदिर इत्यादि के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए मिलेगा इस टॉपिक के नोट्स को पढ़ने के पश्चात आपको इसके लिए अन्य कहीं से पढ़ने की आवश्यकता नहीं होगी 

यह नोट्स ऑफलाइन क्लासरूम से तैयार किए गए हैं ताकि आप अगर सेल्फ स्टडी कर रहे हैं तो इन नोट्स के माध्यम से आप बिल्कुल फ्री घर बैठे तैयारी कर सकें

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गुप्तकालीन वास्तुकला एवं मंदिरों की विशेषताएं

गुप्तकालीन वास्तुकला ( मंदिर निर्माण कला )

♦ भारत में सर्वप्रथम गुप्तकाल में मंदिर निर्माण कला का जन्म हुआ।

♦ पहली बार शिखर युक्त मंदिर बनाए गए  सभा मंडपों का प्रयोग किया गया।

♦ गुप्तों के समय कला के तीन प्रमुख केन्द्र थे – मथुरा, पाटलिपुत्र एवं सारनाथ।

गुप्तकालीन मंदिरों की विशेषताएँ 

♦ गुप्तकाल की वास्तुकला में मंदिर सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है।

♦ ईंट  पत्थर से निर्माण होता था।

♦ मंदिर निर्माण ऊँचे  सपाट चबूतरे पर होता था। चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ थीं।

♦ गर्भगृह के द्वारपाल के रूप में मकरवाहिनी (गंगा)  कूर्मवाहिनी (यमुना) आकृति अंकित होती थी।

♦ प्रारम्भ में मंदिर की छत चपटी थी  बाद में शिखर भी बनाए जाने लगे।

♦ मंदिर के अन्दर वर्गाकार कक्ष होता था जिसमें प्रतिमा रखते थे, इसे ही गर्भगृह कहा जाता था।

♦ कालिदास ने गुप्तकालीन मंदिरों पर शंख  पद्म के अंकन का उल्लेख किया।

♦ गुप्त काल में सिरपुर  भितर गाँव के मंदिर ही ईंटों से बने हैं, दूसरे मंदिर पत्थरों से निर्मित हैं।

♦ गुप्त काल में चार सिंहों की मूर्तियाँ एक-दूसरे से पीठ सटाए हुए वर्गाकार स्तम्भों के शीर्ष भाग पर होते थे।

♦ पंचायतन शैली का प्राचीनतम उदाहरण देवगढ़ का दशावतार मंदिर है।

नोट :-  शिखरयुक्त मन्दिर का प्रथम उदाहरण।

गुप्तकालीन प्रमुख मंदिर 

1.साँची का मंदिर :

♦साँची के महास्तूप के दक्षिण-पूर्व की ओर बने इस मंदिर की संख्या 17 है।

♦इसमें छत सपाट  गर्भगृह चौकोर है। सामने छोटा स्तम्भ युक्त मण्डप है। यह आकार में छोटा है।

♦गुप्त काल का प्रारम्भिक मंदिर है।

2. भूमरा का शिव मंदिर :

♦ पाँचवीं शताब्दी ई. में बनाया गया।

♦ मध्य प्रदेश के सतना जिले में भूमरा नाम के स्थान पर है।

♦ गर्भगृह पाषाण निर्मित हैप्रवेश द्वार पर गंगायमुना की आकृति अंकित है।

♦ गर्भगृह के अन्दर एकमुखी शिवलिंग स्थापित किया गया है।

♦ के. डी. वाजपेयी ने वर्ष 1968 में सतना जिले के उचेहरा के पास पिपरिया नामक स्थान से विष्णु मंदिर व मूर्ति की खोज की थी।

♦ इसके अलावा गुप्तकालीन मंदिरों के अवशेष सतना में खोह, नागौद, जबलपुर में मढ़ी स्थानों से प्राप्त हुए हैं।

3. तिगवां का विष्णु मंदिर :

♦ मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में स्थित है।

♦ तिगवां के विष्णु मंदिर के बीच में गर्भगृह है।

♦ स्तम्भों के ऊपर कलश व कलशों पर सिंह की मूर्ति है।

♦ प्रवेश द्वार के पार्श्वों पर गंगा, यमुना की आकृतियाँ उनके वाहन सहित उत्कीर्ण है।

4. एरण का विष्णु मंदिर :

♦ यह मंदिर मध्य प्रदेश के सागर जिले में एरण नामक स्थान पर स्थित है।

♦ यह विष्णु मंदिर अब ध्वस्त हो चुका है।

♦ केवल गर्भगृह का द्वार  सामने दो स्तम्भ खड़े हुए अवशेष बने हैं।

5. नचना – कुठार का पार्वती मंदिर :

♦ मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में अजयगढ़ के समीप प्राप्त हुआ है।

♦ यह मंदिर पाँचवीं शताब्दी ई. में बनाया गया है।

♦ यहाँ चारों ओर परिक्रमापथ बनाया गया है।

6. देवगढ़ का दशावतार मंदिर :

♦ यह मंदिर उत्तर प्रदेश के ललितपुर (प्राचीन झाँसी) जिले में देवगढ़ नामक स्थान से प्राप्त हुआ है।

♦ यह मंदिर पंचायतन शैली में निर्मित है।

♦ इसमें गर्भगृह के ऊपर 12 मीटर ऊँचे शिखर का निर्माण किया गया है।

♦ यह गुप्त काल का प्रथम ‘शिखर’ वाला मंदिर है, जो वास्तु कला का उत्कृष्ट नमूना माना जाता है।

♦ देवगढ़ के दशावतार मंदिर में वास्तुकला का विकसित रूप पाया जाता है।

♦ इसमें 4 सभा मंडपों का निर्माण किया गया है।

♦ इसमें भगवान विष्णु को शेषशय्या पर विराजमान व नाभि से कमल निकलता हुआ तथा माता लक्ष्मी को पैर दबाते हुए दिखाया गया है।

7. भितर गाँव का मंदिर :

♦ यह उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में स्थित है। ईंटों से निर्मित प्रथम हिन्दू मंदिर है।

♦ इस मंदिर का निर्माण ईंटों से किया गया है।

♦ इस मंदिर की हजारों उत्खनित ईंटें लखनऊ संग्रहालय में सुरक्षित हैं।

♦ यह वर्गाकार चबूतरे पर बना व गर्भगृह भी वर्गाकार है। गर्भगृह के सामने मण्डप है।

♦ यह मंदिर भी शिखर युक्त है, भारत में पहली बार इसके शिखर में ‘मेहराबों’ का प्रयोग हुआ।

♦ बाहरी दीवारों में बने ताखों में गणेश, आदिवराह, नंदी, दुर्गा आदि की मृण्मूर्तियाँ रखी गई हैं।

♦ छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के सिरपुर नामक स्थान से ईंटों से निर्मित एक अन्य मंदिर प्राप्त हुआ है, इसे ‘लक्ष्मण मंदिर’ कहा जाता है।

♦ राजस्थान के कोटा से मुकुन्द दर्रा (कोटा का दर्रा) से मंदिर प्राप्त हुआ जो प्रारम्भिक गुप्त मंदिर है।

♦ शिव मंदिर – खोह (नागौद, मध्य प्रदेश)

मंदिरों की मुहर 

♦गया (बिहार) के विष्णु पाद मंदिर की मुहर में ‘विष्णुपाद स्वामी नारायण’ शब्द खुदे थे।

♦वैशाली के सूर्य मंदिर की मुहर पर ‘भगवतो आदित्यस्य’ शब्द खुदे थे।

स्तूप तथा गुहा – स्थापत्य कला 

♦गुप्तकालीन दो बौद्ध स्तूप – राजगृह स्थित ‘जरासंध की बैठक’ सारनाथ का धमेख स्तूप का निर्माण इसी काल में हुआ।

♦नरसिंह गुप्त बालादित्य ने नालन्दा में बाघोरा नदी के किनारे बुद्ध का भव्य मंदिर बनवाया था।

अजंता की गुफाएँ

♦ यह महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में सह्याद्रि पहाड़ियों को काटकर बनाई गई।

♦ यहाँ कुल 29 गुफाएँ हैं।

♦ गुप्तकालीन गुफा संख्या 16 व 17 हैं।

खोज – 1819 ई. में मद्रास रेजीमेन्ट के एक सैनिक विलियम एरिक्सन के द्वारा की गई।

♦ इन गुफाओं का निर्माण वाकाटक नरेश पृथ्वीसेन II के सामन्त वराहदेव, व्याघ्रदेव द्वारा करवाया गया था।

♦ इन गुफाओं का आकार घोड़े के पैर की नाल के आकार का है।

♦ चैत्य गुफाएँ (विहार बौद्ध मठ) की संख्या चार हैं, जो गुफा संख्या 9, 10, 19 और 26 में स्थित हैं।

♦ पहले सर्वाधिक चित्र गुफा संख्या – 16 में थे, परन्तु अब सर्वाधिक चित्र गुफा संख्या – 17 में हैं, इसे चित्रशाला कहा जाता है।

♦ कई इतिहासकारों के अनुसार गुफा संख्या 16, 17 व 19 गुप्तकालीन मानी गई हैं लेकिन प्रामाणिक पुस्तकों में केवल गुफा संख्या – 16 व 17 का उल्लेख हैं।

♦ अजंता गुफाओं के चित्र पारलौकिक (धार्मिक) है।

♦ गुफा संख्या – 8 से 13 हीनयान (बौद्ध) से संबंधित है।

♦ इन समस्त गुफाओं में गुफा संख्या – 13 सबसे प्राचीन गुफा है।

♦ अजन्ता की गुफा बौद्ध धर्म के महायान शाखा से संबंधित हैं।

गुफा संख्या – 16

♦ भगवान बुद्ध के वैराग्य उत्पन्न होने के 4 दृश्य मिलते हैं।

♦ उपदेश सुनते हुए भक्तगण।

♦ मरणासन्न अवस्था में राजकुमारी का चित्र सबसे प्रसिद्ध चित्र।

♦ यह राजकुमारी भगवान बुद्ध के भाई नंदिवर्द्धन की पत्नी – सौन्दरी।

♦ यह गुफा अजन्ता के विहारों में सबसे उत्कृष्ट हैं।

गुफा संख्या – 17

♦ वर्तमान में सर्वाधिक चित्र इसी गुफा में है इसलिए इसे ‘चित्रशाला’ भी कहा जाता है।

♦ इसमें बुद्ध के गृहत्याग का (महाभिनिष्क्रमण) का चित्रण किया गया है।

♦ भगवान बुद्ध की पत्नी यशोधरा द्वारा अपने पुत्र ‘राहुल’ को दान में देते हुए (त्याग) का चित्रण किया गया है।

अजन्ता की गुफाओं के अन्य चित्र 

♦ झूला-झूलते हुए राजकुमारी का चित्रण – गुफा संख्या-2

♦ बैठी हुई स्त्री का चित्र – गुफा संख्या-9

♦ पुजारियों का दल स्तूप की ओर जाते हुए – गुफा संख्या-9

♦ साँडों की लड़ाई – गुफा संख्या-1

♦ गुफा संख्या 1 में पुलकेशिन द्वितीय द्वारा ईरानी शासक परवेज शाह खुसरो का स्वागत करते हुए दिखाया गया है।

गुप्तकालीन मूर्तिकला (मूर्ति निर्माण) के प्रमुख केन्द्र 

मथुरा:- इस मूर्तिकला में खड़े बुद्ध की प्रतिमा को दर्शाया गया है।

सारनाथ:- इस मूर्तिकला में बैठे हुए बुद्ध की प्रतिमा को दर्शाया गया है।

पाटलिपुत्र:- सुल्तानगंज (बिहार) से बुद्ध की 7-5 फीट ऊँची ताँबे की प्रतिमा प्राप्त हुई है, जो वर्तमान में बर्मिंघम संग्रहालय में है।

♦ गुप्तकाल की मूर्तियों में कुषाणकालीन नग्नता एवं कामुकता का पूर्णत: लोप हो गया था।

♦ कुषाण कला से प्रभावित एकमात्र बुद्ध की मूर्ति मथुरा शैली में निर्मित है यह मनकुंवर (प्रयागराज) से मिलती है।

♦ गुप्तकालीन धातु मूर्तिकला में नालन्दा तथा सुल्तानगंज की बुद्ध की मूर्ति उल्लेखनीय है।

♦ मुण्डित सिर वाली गुप्तकालीन बुद्ध मूर्ति मानकुँवर (प्रयागराज) से प्राप्त हुई।

♦ इस काल की चित्रकला के अवशेष अजन्ता (महाराष्ट्र के औरंगाबाद में) तथा बाघ (मध्य प्रदेश) गुफाओं से प्राप्त होते हैं।

♦ बाघ की गुफाएँ ग्वालियर के समीप विंध्यपर्वत को काट कर बनाई गई थी। 1818 ई. में डैजरफील्ड ने इन गुफाओं को खोजा, जहाँ से 9 गुफाएँ मिली है। बाघ गुफा के चित्र आम जन-जीवन से संबंधित है। (लौकिक जीवन)

♦महरौली लौह स्तम्भ से जानकारी मिलती है कि चन्द्रगुप्त ने विष्णु पद नाम पर्वत पर विष्णु स्तम्भ स्थापित करवाया था।

शैव मूर्तियाँ 

♦ करमदण्डा – शिव की चतुर्मुखी मूर्ति

♦ खोह – एकमुखी शिवलिंग

♦ गुप्तकालीन शिव के अर्द्धनारीश्वर रूप की दो मूर्तियाँ मथुरा संग्रहालय में सुरक्षित है।

♦ भूमरा के शिव मन्दिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग स्थापित है।

♦ विदिशा से शिव के हरिहर स्वरूप की प्रतिमा जो इस समय दिल्ली संग्रहालय में हैं।

♦ गुप्तकाल की बनी मयूरासनासीन का कार्तिकेय की एक सुन्दर मूर्ति पटना संग्रहालय में सुरक्षित है।

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