आज की इस पोस्ट में हम कालीबंगा सभ्यता क्लासरूम नोट्स के बारे में पढ़ने वाले हैं जब भी आप भारतीय इतिहास पढ़ेंगे तो उसमें आपको सिंधु घाटी ( कालीबंगा ) के बारे में जरूर पढ़ने के लिए मिलेगा अगर आप इस टॉपिक को अच्छे से याद करना चाहते हैं तो उपलब्ध करवाई गये नोट्स को अच्छे से जरूर पढ़ें एवं याद कर ले
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कालीबंगा
कालीबंगा :-
– कालीबंगा से हड़प्पा सभ्यता के साथ-साथ हड़प्पा पूर्व सभ्यता के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं अर्थात् यह प्राक् हड़प्पाकालीन स्थल है।
– कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में स्थित घग्घर नदी के किनारे बाएँ तट पर स्थित है।
– कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ है ̵ काले रंग की चूड़ियाँ।
– कालीबंगा की खोज 1952-53 ई. में अमलानन्द घोष ने की तथा उत्खनन 1961-67 ई. के मध्य किया गया।
कालीबंगा से प्राप्त साक्ष्य –
- ऊँट के प्रथम साक्ष्य
o हल की आकृति व जोते हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं।
- कालीबंगा के लोग एक साथ 2 फसलें बोते थे।
- ‘दीन-हीन’ बस्ती कहा जाता था।
- लकड़ी की नालियों के साक्ष्य
- खोपड़ी की शल्य चिकित्सा के साक्ष्य
- यहाँ से प्राप्त एक खोपड़ी में छेद किए हुए मिले हैं जो शल्य चिकित्सा का प्रमाण माना जाता है।
– कालीबंगा से तीन प्रकार के शवाधान के साक्ष्य मिले हैं ̵
o आंशिक शवाधान
o पूर्ण शवाधान
o दाह संस्कार
– कालीबंगा से विश्व के प्रथम भूकम्प के साक्ष्य मिले, जो कि लगभग 2100 ई.पू. के आसपास आया होगा।
– अलंकृत फर्श, ईँट तथा बेलनाकार मोहरे व हवनकुण्ड के साक्ष्य।
चन्हुदड़ो :-
– चन्हुदड़ो, मोहनजोदड़ो से 130 किमी. दक्षिण में स्थित है। इसकी सर्वप्रथम खोज सन् 1930-31 में नानी गोपाल मजूमदार (NG मजूमदार) ने की थी। उत्खनन वर्ष 1935 में अर्नेस्ट मैके द्वारा किया गया।
– चन्हुदड़ो सिंधु घाटी सभ्यता का एकमात्र पुरास्थल है, जहाँ से वक्राकार ईंटें मिली हैं।
यहाँ से :-
– मनके बनाने के कारखाने के साक्ष्य
– सौंदर्य प्रसाधन सामग्री (जैसे- लिपिस्टिक) के अवशेष यहाँ मिले हैं।
– हाथी का खिलौना
– पीतल की इक्का गाड़ी
– स्याही की दवात के साक्ष्य मिले हैं।
बनवाली :-
– बनवाली, हरियाणा के हिसार जिले में सरस्वती नदी के किनारे स्थित है।
– इसकी खोज आर.एस. विष्ट ने की थी।
– यहाँ से मिट्टी के खिलौने (हल) की प्राप्ति हुई है।
रंगपुर :-
– रंगपुर गुजरात के काठियावाड़ प्रायद्वीप में भादर नदी के समीप स्थित है।
– इसकी खोज 1974 में S.R. राव ने की
सुरकोटड़ा :
– गुजरात राज्य के कच्छ क्षेत्र में इस स्थल की खोज सन् 1964 में जगपति जोशी ने की थी।
– यहाँ से घोड़े की हड्डी के अवशेष मिले हैं। (घोड़े के अस्थि पंजर)
– कलश शवाधान के साक्ष्य यहाँ से मिले हैं।
धौलावीरा
– यह गुजरात राज्य के कच्छ जिले के भचाऊ तालूका में स्थित है।
इसकी खोज वर्ष 1967- 68 में जे.पी. जोशी ने की तथा उत्खनन – वर्ष 1991 R.S. बिष्ट ने किया।
– यहाँ से सिंधु घाटी सभ्यता का एक मात्र स्टेडियम (खेल का मैदान) मिला है।
– घोड़े की कलाकृतियों के अवशेष भी मिले हैं।
– अन्य हड़प्पाई स्थल के विपरीत धौलावीरा नगर तीन खंडों में विभाजित है अर्थात् “मध्यमा” के अवशेष केवल इसी स्थल से प्राप्त हुए है-
1. दुर्ग
2. मध्यम नगर
3. निचला नगर
सुत्कागेंडोर :-
– पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान प्रान्त में दाश्क नदी पर सुत्कागेंडोर स्थित है। यह सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे पश्चिमी ज्ञात नगर है।
– यहाँ से बंदरगाह के अस्तित्व का पता चला है।
आलमगीरपुर :-
– उत्तर प्रदेश राज्य के मेरठ जिले के हिंडन नदी के तट पर आलमगीरपुर स्थित है।
– यहाँ से एक भी मातृदेवी की मूर्ति और मुद्रा प्राप्त नहीं हुई है।
– इस पुरास्थल की खोज में ‘भारत सेवक समाज’संस्था का विशेष योगदान रहा तथा उत्खनन 1958 में यज्ञदत शर्मा ने करवाया
रोपड़ :-
– सन् 1950 में इसकी खोज बी.बी. लाल ने की ।
– 1953-56 ई. में यज्ञदत्त शर्मा ने उत्खनन करवाया था।
– यहाँ हड़प्पा पूर्व एवं हड़प्पाकालीन संस्कृतियों के अवशेष मिले हैं।
राखीगढ़ी :-
– यह स्थल हरियाणा राज्य के जींद जिले में घग्घर नदी पर स्थित है।
– भारत में स्थित हड़प्पा सभ्यता के विशालतम नगरों में से एक राखीगढ़ी है।
सामाजिक जीवन :-
– इस सभ्यता के लोग भोजन में गेहूँ, जौ, खजूर एवं मांस खाते थे।
– सैन्धव समाज चार वर्गों में विभाजित था-
(1) विद्धान (पुरोहित)
(2) यौद्धा
(3) व्यापारी
(4) श्रमिक
– सूती एवं ऊनी दोनों वस्त्रों का प्रयोग करते थे।
– मछली पकड़ना, शिकार करना, चौपड़, पासा खेलना आदि मनोरंजन के साधन थे।
– पासा इस युग का प्रमुख खेल था।
– समाज की इकाई परम्परागत तौर पर परिवार था।
– सिंधु घाटी सभ्यता के लोग साज-सज्जा पर भी ध्यान देते थे। खुदाई में स्त्री एवं पुरुष दोनों के आभूषण प्राप्त हुए हैं।
धार्मिक मान्यताएँ :-
– इस सभ्यता से स्वास्तिक के प्रमाण प्राप्त हुए है।
– इस सभ्यता में कही से मंदिर के अवशेष नहीं मिले हैं।
– लिंग पूजा के पर्याप्त प्रमाण हैं जिन्हें बाद में शिव के साथ जोड़ा गया है। पत्थर की कई योनि आकृतियाँ भी प्राप्त हुई हैं, जिनकी पूजा प्रजनन शक्ति के रूप में की जाती थी।
राजनीतिक स्थिति :
– हड़प्पा सभ्यता व्यापार और वाणिज्य आधारित थी। इसलिए शासन व्यवस्था में भी व्यापारी वर्ग की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।
– पिग्गट और व्हीलर आदि विद्वानों का मत है कि सुमेर और अक्कद की भाँति मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में भी पुरोहित लोग शासन करते थे। ये शासक प्रजा के हित का पूरा ध्यान रखते थे। सम्भवत: मोहनजोदड़ो और हड़प्पा उनके राज्य की दो राजधानियाँ थी।
आर्थिक जीवन :
– पुरातात्विक साक्ष्य से यह अनुमान लगाया गया है कि सिन्धु सभ्यता के लोग हल या कुदाल से खेती नहीं करते थे। यह सम्भव है कि ये लोग पत्थर की कुल्हाड़ियों से या लकड़ी के हल से भूमि को खोदकर खेती करते थे। इन लोगों के औजार बहुत अपरिष्कृत थे किन्तु यहाँ के किसान अपनी आवश्यकता से अधिक अन्न उगाते थे। अतिरिक्त अन्न का उपयोग व्यापार और वाणिज्य में होता था।
– सिन्धु घाटी के लोग खेती के अतिरिक्त बहुत से उद्योग जानते थे। ये लोग कपास उगाना और कातना भली प्रकार जानते थे। यह संभव है कि कपास और सूती कपड़े का निर्यात किया जाता था। ये अनेक प्रकार के मिट्टी के बर्तन बनाते और कपड़ों को रंगते थे।
कृषि :
– हड़प्पा संस्कृति की मुख्य फसलें गेहूँ और जौ थी। इसके अलावा वे राई, मटर, तिल, चना, कपास, खजूर, तरबूज आदि भी पैदा करते थे।
– चावल के उत्पादन का प्रमाण लोथल और रंगपुर से प्राप्त हुआ है।
– किसी भी स्थल से नहरों व नालों से सिंचाई के प्रमाण नहीं मिले है।
पशुपालन :
– हड़प्पा सभ्यता में पाले जाने वाले मुख्य पशु थे – बैल, भेड़, हिरण, मोर, गाय, खच्चर, बकरी, भैंस, सूअर, हाथी, कुत्ते, गधे आदि।
– हड़प्पा निवासियों को कूबड़वाला सांड विशेष प्रिय था।
– ऊँट, गैंडा, मछली, कछुएँ का चित्रण हड़प्पा संस्कृति की मुद्राओं पर हुआ है।
– धातुकर्मी ताँबे के साथ टिन मिलाकर काँसा तैयार करते थे।
– मोहनजोदड़ो से बने हुए सूती कपड़े का एक टुकड़ा तथा कालीबंगा में मिट्टी के बर्तन पर सूती कपड़े की छाप मिली है।
– इस सभ्यता के लोगों को लोहे की जानकारी नहीं थी।
– कांस्य मूर्ति का निर्माण द्रवी – मोम विधि से हुआ है।
कला :
– कला के क्षेत्र में सिन्धु घाटी के लोगों ने बहुत उन्नति की थी। वे बर्तनों पर सुन्दर चित्र बनाते थे। मनुष्यों और पशुओं के चित्र बड़ी संख्या में मिलते हैं। मुहरों पर जो पशुओं के चित्र बने हैं, उनसे इन लोगों की कलात्मक अभिरुचि प्रकट होती है। ये चित्र बैल, हाथी, चीता, बारहसिंगा, घड़ियाल, गैंडा आदि पशुओं के हैं।
व्यापार :
– हड़प्पा वासी राजस्थान, सौराष्ट्र, महाराष्ट्र, दक्षिण भारत तथा बिहार से व्यापार करते थे।
– मेसोपोटामिया, सुमेर तथा बहरीन से उनके व्यापारिक संबंध थे।
– 2350 ई. पू. के मेसोपोटामियाई अभिलेखों में मेलूहा (सिन्ध क्षेत्र का ही प्राचीन भाग) के साथ व्यापार संबंध होने के उल्लेख मिलते हैं।
मापतौल :
– मोहनजोदड़ो से सीप का तथा लोथल से एक हाथी – दाँत का पैमाना मिला है।
– तौल पद्धति की एक शृंखला 1, 2, 4, 8 से 64 इत्यादि की तथा 16 या उसके आवर्तकों का व्यवहार होता था, जैसे -16, 64, 160, 320 और 640।
मुहर एवं लिपि :
– मोहनजोदड़ो से सर्वाधिक संख्या में मुहरें प्राप्त हुई है।
– प्राप्त मुहरों में सर्वाधिक सेलखड़ी की बनी हुई हैं।
– मुहरों पर एक शृंगी पशु की सर्वाधिक आकृति मिली है। लोथल और देसलपुर से ताँबे की मुहरें मिली हैं।
– हड़प्पा लिपि वर्णात्मक नहीं, बल्कि मुख्यतः भाव चित्रात्मक है।
– लोथल व मोहनजोदड़ों की एक-एक मुहर पर नाव का चित्र भी प्राप्त हुआ है।
– मुहरों का आकार गोलाकार, अंडाकार, घनाकार होता था तथा आयताकार चौकोर व वर्गाकार मुहरें भी मिली है।
– लिपि के सर्वप्रथम नमूने – 1853 ई. में कनिंघम ने प्राप्त किए।
इसके अन्य नाम :-
– सर्पिलाकार लिपि
– गोमूत्राक्षर लिपि
– ब्रस्टोफेदन/फेदस/फेदम (भावचित्रात्मक लिपि)
– सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि को सर्वप्रथम पढ़ने का प्रयास ‘वेडेन महोदय’ ने किया था। इस लिपि को पढ़ने का प्रयास करने वाले प्रथम भारतीय व्यक्ति ‘नटवर झा’ थे, परन्तु पढ़ने में असफल रहे।
– सैन्धव लिपि का ज्ञान मुख्यत: मुहरों पर मिलता है।
– इस लिपि में 64 मूल चिह्न हैं जबकि 250-400 तक चित्राक्षर हैं।
– सर्वाधिक चित्राक्षर उल्टे यू ‘’ के आकार के हैं।
– मोहनजोदड़ो सिंधु नदी के दाहिने किनारे पर अवस्थित था, जो वर्तमान में पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के लरकाना जिले में स्थित है। इसकी खोज राखालदास बनर्जी ने वर्ष 1922 में की थी। इसे सिंध का नखलिस्तान भी कहा जाता है।
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