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मराठा साम्राज्य का संपूर्ण इतिहास | Maratha Samrajya Notes
Table of contents
शिवाजी ( 1627-1680 ई. )
जन्म – 20 अप्रैल, 1627 पूना के निकट शिवनेर के किले में हुआ। शिवाजी के पिता का नाम शाहजी भौंसले और माता का नाम जीजाबाई था। शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास थे।
1637 ई. में शाहजी भौसले ने अपने पुत्र शिवाजी तथा पत्नी जीजाबाई को लेकर अपनी पैतृक जागीर की देखभाल का दायित्व दादा जी कोंकणदेव को सौंपकर कर्नाटक चले गए।
शिवाजी का उद्देश्य एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करना था। शिवाजी ने हिन्दुत्व धर्मोद्धारक की उपाधि धारण की।
शिवाजी ने हिन्दू पद पादशाही को ग्रहण किया और ब्राह्मणों की रक्षा का व्रत लिया।
शिवाजी का मूल उद्देश्य मराठों की बिखरी हुई शक्ति को एकत्रित करके महाराष्ट्र (दक्षिण भारत) में एक स्वतन्त्र राज्य की स्थापना करना था।
शिवाजी ने 1643 ई. में बीजापुर के सिंहगढ़ के किले पर अधिकार किया। 1646 ई. में उन्होंने तोरण पर अधिकार कर लिया।
1656 ई. तक शिवाजी ने चाकन, पुरन्दर, बारामती, सूपा, तिकोना, लोहगढ़ आदि विभिन्न किलों पर अधिकार कर लिया।
1656 में शिवाजी की महत्त्वपूर्ण विजय जावली की थी। जावली एक मराठा सरदार चन्द्रराव मोरे के अधिकार में था।
अप्रैल, 1656 में शिवाजी ने रायगढ़ के किले पर कब्जा कर लिया।
1657 ई. में शिवाजी का मुकाबला पहली बार मुगलों से हुआ, जब वह बीजापुर की तरफ से मुगलों से लड़ा। इसी समय शिवाजी ने जुन्नार को लूटा। कुछ समय बाद मुगलों के उत्तराधिकार युद्ध का लाभ उठाकर उसने अपनी सैनिक गतिविधियाँ पुन: आरम्भ की।
शिवाजी के इस विस्तारवादी नीति से बीजापुर शासक सशंकित हो उठा उसने शिवाजी की शक्ति को दबाने तथा उसे कैद करने के लिए 1659 ई. में अपने योग्य सरदार अफजल खाँ के नेतृत्व में एक सैनिक टुकड़ी भेजी। प्रतापगढ़ के किले में शिवाजी ने अफजल ख़ाँ की हत्या कर दी।
अफजल खाँ के उद्देश्य की सूचना ब्राह्मण दूत कृष्णजी भास्कर ने शिवाजी को दी।
1660 ई. में मुगल शासक औरंगजेब ने शाइस्ता खाँ को दक्षिण का गवर्नर नियुक्त किया।
15 अप्रैल, 1663 को शिवाजी ने रात्रि में चुपके से पूना में प्रवेश कर शाइस्ता खाँ के महल पर आक्रमण कर दिया। शाइस्ता खाँ इस अचानक आक्रमण से घबराकर भाग खड़ा हुआ। इस आक्रमण के कारण मुगलों को क्षति पहुँची तथा शिवाजी की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।
1664 ई. में शिवाजी ने सूरत पर धावा बोल दिया। (प्रथम लूट – 22 मई, 1664 ई.) औरंगजेब ने आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह को दक्षिण भेजा। जयसिंह ने समझ लिया कि बीजापुर को जीतने के लिए शिवाजी से मित्रता आवश्यक है। जयसिंह ने शिवाजी को पुरन्दर की संधि (1665 ई.) के लिए बाध्य किया।
जून, 1665 पुरन्दर की संधि के अनुसार :-
(1) शिवाजी को चार लाख हूण वार्षिक आय वाले तेईस किले मुगलों को सौंपने पडे़ तथा शिवाजी के पास मात्र बारह किले बचे।
(2) मुगलों ने शिवाजी के पुत्र शम्भा जी को पंचहजारी एवं उचित जागीर देना स्वीकार किया।
(3) शिवाजी ने बीजापुर के विरुद्ध मुगलों को सैनिक सहायता देने का वायदा किया।
औरंगजेब ने शिवाजी के इस समझौते को स्वीकार कर शिवाजी को राजा की उपाधि प्रदान की तथा उसके पुत्र शम्भा जी को बरार में एक जागीर दी।
1666 ई. में शिवाजी जयसिंह के आश्वासन पर औरंगजेब से मिलने आए, पर उचित सम्मान न मिलने पर दरबार से उठकर चले गए औरंगजेब ने उन्हें कैद कर जयपुर भवन (आगरा) में रखा परन्तु शिवाजी आगरा के किले की कैद से फरार होने में सफल हो गए।
1670 ई. में शिवाजी का मुगलों से पुनः युद्ध आरम्भ हो गया। पुरन्दर की संधि द्वारा खोए गए अपने अनेक किलों को शिवाजी ने पुनः जीता जिसमें कोंडाना किला सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था। शिवाजी ने इसका नाम सिंहगढ़ रखा। 1670 ई. में शिवाजी ने तीव्रगति से सूरत पर पुनः आक्रमण किया और उसे लूटा तथा मुगलों से चौथ की माँग की (सूरत की दूसरी लूट)
14 जून, 1674 को शिवाजी ने काशी के प्रसिद्ध विद्वान गंगाभट्ट से अपना राज्याभिषेक रायगढ़ में करवाया।
शिवाजी का दूसरा राज्यभिषेक निश्चतपुरी गोस्वामी नामक तांत्रिक ने 4 अक्टूबर, 1674 को किया।
शिवाजी का प्रशासन
शिवाजी की प्रशासनिक व्यवस्था अधिकांशत: दक्षिणी राज्यों और मुगलों की प्रशासनिक व्यवस्था से प्रभावित थी। जिसके शीर्ष पर छत्रपति होता था।
शिवाजी के प्रशासन में अष्टप्रधान नामक आठ मंत्री होते थे।
1. सरनवीस अथवा सचिव – राजकीय पत्र व्यवहार का कार्य देखना तथा परगनों के हिसाब की जाँच करना आदि।
2. अमात्य अथवा मजूमदार – यह वित्त एवं राजस्व मंत्री होता था।
3. सेनापति अथवा सर–ए–नौबत – सेना की भर्ती, संगठन, रसद आदि का प्रबन्ध करता था।
4. वाकियानवीस अथवा मंत्री – राजा के दैनिक कार्यों तथा दरबार की प्रतिदिन की कार्यवाहियों का विवरण रखता था। (वर्तमान गृहमंत्री) यह खुफिया, डाक, घरेलु मामलों का प्रमुख होता था।
5. दबीर या सुमन्त – यह विदेश मंत्री होता था।
6. पण्डितराव – विद्वानों और धार्मिक कार्यों के लिए दिए जाने वाले अनुदानों का दायित्व निभाता था।
7. पेशवा अथवा मुख्य प्रधान – यह राजा का प्रधानमंत्री होता था। इसका कार्य सम्पूर्ण राज्य के शासन की देखभाल करना था। राजा की अनुपस्थिति में उसके कार्यों की देखभाल भी करता था। सरकारी पत्रों तथा दस्तावेजों पर राजा के नीचे अपनी मुहर लगाता था।
8. न्यायाधीश–यह मुख्य न्यायाधीश होता था (राजा के बाद)। इसके अधिकार क्षेत्र में राज्य के समस्त दीवानी तथा फौजदारी मामले आते थे।
शिवाजी ने अपने राज्य को चार प्रान्तों में विभक्त किया। प्रत्येक प्रान्त राज प्रतिनिधि (वायसराय) के अधीन होता था।
प्रान्तों (सूबा) को परगना और तालुकों में विभाजित किया गया था।
जागीर प्रथा समाप्त कर दी गई थी तथा अधिकारियों को नकद वेतन प्रदान किया जाता था।
सेना
शिवाजी ने एक नियमित तथा स्थायी सेना रखी। सेना का मुख्य भाग पैदल और घुड़सवार सेना थी। घुड़सवार सेना दो भागों में विभक्त थी- – बरगीर-वे घुडसवार सैनिक थे जिन्हें राज्य की ओर से घोड़े और शस्त्र दिए जाते थे।
– सिलेदार–ये स्वतन्त्र सैनिक थे जो अपना अस्त्र-शस्त्र स्वयं रखते थे।
किले में तीन अधिकारी होते थे-(1) हवलदार (2) सर-ए-नौबत (3) सबनीस हवलदार।
सर-ए-नौबत मराठा तथा सबनीस ब्राह्मण होते थे।
सबनीस (ब्राह्मण) नागरिक (असैनिक) और राजस्व प्रशासन देखता था। रसद और सैनिक सामग्री की देखभाल कारखाना नवीस करता था। सैनिकों को नकद वेतन दिया जाता था। वास्तव में पहाड़ी दुर्ग और उसके आसपास के क्षेत्र, जो हवलदार के अधीन होते थे, शिवाजी की प्रशासनिक इकाई थे। हवलदार के नेतृत्व में विभिन्न जातियों के सैनिकों की भर्ती करके दुर्ग सेना का गठन किया जाता था।
शिवाजी ने कोलाबा में एक जहाजी बेड़े का भी निर्माण करवाया जो दो कमानों में बँटी हुई थी। एक दारिया सारंग (मुसलमान) तथा दूसरी नायक (हिन्द) के अधीन रहती थी।
मावली सैनिक शिवाजी के अंगरक्षक थे। मावली एक पहाड़ी लड़ाकू जाति थी।
राजस्व प्रशासन
शिवाजी की राजस्व व्यवस्था अहमदनगर राज्य में मलिक अम्बर द्वारा अपनाई गई रैय्यतवाड़ी प्रथा पर आधारित थी।
केन्द्रीय अधिकारी द्वारा राजस्व एकत्रित किया जाता था। आरम्भ में शिवाजी ने पैदावार का 33 प्रतिशत लगान वसूल करवाया। परन्तु बाद में स्थानीय करों तथा चुंगियों को माफ करने के बाद इसे बढ़ाकर 40 प्रतिशत कर दिया।
शिवाजी के आदेश पर 1679 ई. में अन्नाजी दत्तो ने एक विस्तृत भू सर्वेक्षण करवाया जिसके फलस्वरूप एक नए राजस्व का निर्धारण हुआ।
लगान व्यवस्था के लिए शिवाजी का राज्य 16 प्रान्तों में बाँटा गया था। विशेष घटनाओं की सूचना सीधे केन्द्र को पहुँचाने वाला व्यक्ति कारकून कहलाता था और प्रान्त का अधिकारी सूबेदार कहलाता था।
गाँव के प्राचीन पैतृक अधिकारी पाटिल और जिले के देशमुख या देशपाण्डे होते थे।
भूमि की पैमाइश रस्सी के स्थान पर काठी या जरीब से किया जाता था। खेतों का विवरण रखने के लिए भू-स्वामियों से कबूलियत ली जाती थी।
रानाडे के अनुसार ‘चौथ सैन्य–कर था‘, जो तीसरी शक्ति के आक्रमण से सुरक्षा प्रदान करने के बदले में वसूल किया जाता था।
सरदेसाई के अनुसार ‘चौथ विजित क्षेत्रों से वसूल किया जाने वाला कर था।’
यदुनाथ सरकार के अनुसार ‘यह मराठा आक्रमण से बचने के एवज में वसूल किया जाने वाला कर था।’
चौथ विजित राज्यों के क्षेत्रों से उपज के एक चौथाई (1/4 भाग) के रूप में वसूल किया जाता था।
सरदेशमुखी- यह आय का 10 प्रतिशत या 1/10 अंश के रूप में होता था, जो एक अतिरिक्त कर था।
Note : पार्ट 2 के लिए दूसरी पोस्ट देखें
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