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गुप्तकालीन वास्तुकला एवं मंदिरों की विशेषताएं
गुप्तकालीन वास्तुकला ( मंदिर निर्माण कला )
♦ भारत में सर्वप्रथम गुप्तकाल में मंदिर निर्माण कला का जन्म हुआ।
♦ पहली बार शिखर युक्त मंदिर बनाए गए व सभा मंडपों का प्रयोग किया गया।
♦ गुप्तों के समय कला के तीन प्रमुख केन्द्र थे – मथुरा, पाटलिपुत्र एवं सारनाथ।
गुप्तकालीन मंदिरों की विशेषताएँ
♦ गुप्तकाल की वास्तुकला में मंदिर सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है।
♦ ईंट व पत्थर से निर्माण होता था।
♦ मंदिर निर्माण ऊँचे व सपाट चबूतरे पर होता था। चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ थीं।
♦ गर्भगृह के द्वारपाल के रूप में मकरवाहिनी (गंगा) व कूर्मवाहिनी (यमुना) आकृति अंकित होती थी।
♦ प्रारम्भ में मंदिर की छत चपटी थी व बाद में शिखर भी बनाए जाने लगे।
♦ मंदिर के अन्दर वर्गाकार कक्ष होता था जिसमें प्रतिमा रखते थे, इसे ही गर्भगृह कहा जाता था।
♦ कालिदास ने गुप्तकालीन मंदिरों पर शंख व पद्म के अंकन का उल्लेख किया।
♦ गुप्त काल में सिरपुर व भितर गाँव के मंदिर ही ईंटों से बने हैं, दूसरे मंदिर पत्थरों से निर्मित हैं।
♦ गुप्त काल में चार सिंहों की मूर्तियाँ एक-दूसरे से पीठ सटाए हुए वर्गाकार स्तम्भों के शीर्ष भाग पर होते थे।
♦ पंचायतन शैली का प्राचीनतम उदाहरण देवगढ़ का दशावतार मंदिर है।
नोट :- शिखरयुक्त मन्दिर का प्रथम उदाहरण।
गुप्तकालीन प्रमुख मंदिर
1.साँची का मंदिर :
♦साँची के महास्तूप के दक्षिण-पूर्व की ओर बने इस मंदिर की संख्या 17 है।
♦इसमें छत सपाट व गर्भगृह चौकोर है। सामने छोटा स्तम्भ युक्त मण्डप है। यह आकार में छोटा है।
♦गुप्त काल का प्रारम्भिक मंदिर है।
2. भूमरा का शिव मंदिर :
♦ पाँचवीं शताब्दी ई. में बनाया गया।
♦ मध्य प्रदेश के सतना जिले में भूमरा नाम के स्थान पर है।
♦ गर्भगृह पाषाण निर्मित है, प्रवेश द्वार पर गंगा–यमुना की आकृति अंकित है।
♦ गर्भगृह के अन्दर एकमुखी शिवलिंग स्थापित किया गया है।
♦ के. डी. वाजपेयी ने वर्ष 1968 में सतना जिले के उचेहरा के पास पिपरिया नामक स्थान से विष्णु मंदिर व मूर्ति की खोज की थी।
♦ इसके अलावा गुप्तकालीन मंदिरों के अवशेष सतना में खोह, नागौद, जबलपुर में मढ़ी स्थानों से प्राप्त हुए हैं।
3. तिगवां का विष्णु मंदिर :
♦ मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में स्थित है।
♦ तिगवां के विष्णु मंदिर के बीच में गर्भगृह है।
♦ स्तम्भों के ऊपर कलश व कलशों पर सिंह की मूर्ति है।
♦ प्रवेश द्वार के पार्श्वों पर गंगा, यमुना की आकृतियाँ उनके वाहन सहित उत्कीर्ण है।
4. एरण का विष्णु मंदिर :
♦ यह मंदिर मध्य प्रदेश के सागर जिले में एरण नामक स्थान पर स्थित है।
♦ यह विष्णु मंदिर अब ध्वस्त हो चुका है।
♦ केवल गर्भगृह का द्वार व सामने दो स्तम्भ खड़े हुए अवशेष बने हैं।
5. नचना – कुठार का पार्वती मंदिर :
♦ मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में अजयगढ़ के समीप प्राप्त हुआ है।
♦ यह मंदिर पाँचवीं शताब्दी ई. में बनाया गया है।
♦ यहाँ चारों ओर परिक्रमापथ बनाया गया है।
6. देवगढ़ का दशावतार मंदिर :
♦ यह मंदिर उत्तर प्रदेश के ललितपुर (प्राचीन झाँसी) जिले में देवगढ़ नामक स्थान से प्राप्त हुआ है।
♦ यह मंदिर पंचायतन शैली में निर्मित है।
♦ इसमें गर्भगृह के ऊपर 12 मीटर ऊँचे शिखर का निर्माण किया गया है।
♦ यह गुप्त काल का प्रथम ‘शिखर’ वाला मंदिर है, जो वास्तु कला का उत्कृष्ट नमूना माना जाता है।
♦ देवगढ़ के दशावतार मंदिर में वास्तुकला का विकसित रूप पाया जाता है।
♦ इसमें 4 सभा मंडपों का निर्माण किया गया है।
♦ इसमें भगवान विष्णु को शेषशय्या पर विराजमान व नाभि से कमल निकलता हुआ तथा माता लक्ष्मी को पैर दबाते हुए दिखाया गया है।
7. भितर गाँव का मंदिर :
♦ यह उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में स्थित है। ईंटों से निर्मित प्रथम हिन्दू मंदिर है।
♦ इस मंदिर का निर्माण ईंटों से किया गया है।
♦ इस मंदिर की हजारों उत्खनित ईंटें लखनऊ संग्रहालय में सुरक्षित हैं।
♦ यह वर्गाकार चबूतरे पर बना व गर्भगृह भी वर्गाकार है। गर्भगृह के सामने मण्डप है।
♦ यह मंदिर भी शिखर युक्त है, भारत में पहली बार इसके शिखर में ‘मेहराबों’ का प्रयोग हुआ।
♦ बाहरी दीवारों में बने ताखों में गणेश, आदिवराह, नंदी, दुर्गा आदि की मृण्मूर्तियाँ रखी गई हैं।
♦ छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के सिरपुर नामक स्थान से ईंटों से निर्मित एक अन्य मंदिर प्राप्त हुआ है, इसे ‘लक्ष्मण मंदिर’ कहा जाता है।
♦ राजस्थान के कोटा से मुकुन्द दर्रा (कोटा का दर्रा) से मंदिर प्राप्त हुआ जो प्रारम्भिक गुप्त मंदिर है।
♦ शिव मंदिर – खोह (नागौद, मध्य प्रदेश)
मंदिरों की मुहर
♦गया (बिहार) के विष्णु पाद मंदिर की मुहर में ‘विष्णुपाद स्वामी नारायण’ शब्द खुदे थे।
♦वैशाली के सूर्य मंदिर की मुहर पर ‘भगवतो आदित्यस्य’ शब्द खुदे थे।
स्तूप तथा गुहा – स्थापत्य कला
♦गुप्तकालीन दो बौद्ध स्तूप – राजगृह स्थित ‘जरासंध की बैठक’ सारनाथ का धमेख स्तूप का निर्माण इसी काल में हुआ।
♦नरसिंह गुप्त बालादित्य ने नालन्दा में बाघोरा नदी के किनारे बुद्ध का भव्य मंदिर बनवाया था।
अजंता की गुफाएँ
♦ यह महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में सह्याद्रि पहाड़ियों को काटकर बनाई गई।
♦ यहाँ कुल 29 गुफाएँ हैं।
♦ गुप्तकालीन गुफा संख्या 16 व 17 हैं।
खोज – 1819 ई. में मद्रास रेजीमेन्ट के एक सैनिक विलियम एरिक्सन के द्वारा की गई।
♦ इन गुफाओं का निर्माण वाकाटक नरेश पृथ्वीसेन II के सामन्त वराहदेव, व्याघ्रदेव द्वारा करवाया गया था।
♦ इन गुफाओं का आकार घोड़े के पैर की नाल के आकार का है।
♦ चैत्य गुफाएँ (विहार बौद्ध मठ) की संख्या चार हैं, जो गुफा संख्या 9, 10, 19 और 26 में स्थित हैं।
♦ पहले सर्वाधिक चित्र गुफा संख्या – 16 में थे, परन्तु अब सर्वाधिक चित्र गुफा संख्या – 17 में हैं, इसे चित्रशाला कहा जाता है।
♦ कई इतिहासकारों के अनुसार गुफा संख्या 16, 17 व 19 गुप्तकालीन मानी गई हैं लेकिन प्रामाणिक पुस्तकों में केवल गुफा संख्या – 16 व 17 का उल्लेख हैं।
♦ अजंता गुफाओं के चित्र पारलौकिक (धार्मिक) है।
♦ गुफा संख्या – 8 से 13 हीनयान (बौद्ध) से संबंधित है।
♦ इन समस्त गुफाओं में गुफा संख्या – 13 सबसे प्राचीन गुफा है।
♦ अजन्ता की गुफा बौद्ध धर्म के महायान शाखा से संबंधित हैं।
गुफा संख्या – 16
♦ भगवान बुद्ध के वैराग्य उत्पन्न होने के 4 दृश्य मिलते हैं।
♦ उपदेश सुनते हुए भक्तगण।
♦ मरणासन्न अवस्था में राजकुमारी का चित्र सबसे प्रसिद्ध चित्र।
♦ यह राजकुमारी भगवान बुद्ध के भाई नंदिवर्द्धन की पत्नी – सौन्दरी।
♦ यह गुफा अजन्ता के विहारों में सबसे उत्कृष्ट हैं।
गुफा संख्या – 17
♦ वर्तमान में सर्वाधिक चित्र इसी गुफा में है इसलिए इसे ‘चित्रशाला’ भी कहा जाता है।
♦ इसमें बुद्ध के गृहत्याग का (महाभिनिष्क्रमण) का चित्रण किया गया है।
♦ भगवान बुद्ध की पत्नी यशोधरा द्वारा अपने पुत्र ‘राहुल’ को दान में देते हुए (त्याग) का चित्रण किया गया है।
अजन्ता की गुफाओं के अन्य चित्र
♦ झूला-झूलते हुए राजकुमारी का चित्रण – गुफा संख्या-2
♦ बैठी हुई स्त्री का चित्र – गुफा संख्या-9
♦ पुजारियों का दल स्तूप की ओर जाते हुए – गुफा संख्या-9
♦ साँडों की लड़ाई – गुफा संख्या-1
♦ गुफा संख्या 1 में पुलकेशिन द्वितीय द्वारा ईरानी शासक परवेज शाह खुसरो का स्वागत करते हुए दिखाया गया है।
गुप्तकालीन मूर्तिकला (मूर्ति निर्माण) के प्रमुख केन्द्र
♦ मथुरा:- इस मूर्तिकला में खड़े बुद्ध की प्रतिमा को दर्शाया गया है।
♦ सारनाथ:- इस मूर्तिकला में बैठे हुए बुद्ध की प्रतिमा को दर्शाया गया है।
♦ पाटलिपुत्र:- सुल्तानगंज (बिहार) से बुद्ध की 7-5 फीट ऊँची ताँबे की प्रतिमा प्राप्त हुई है, जो वर्तमान में बर्मिंघम संग्रहालय में है।
♦ गुप्तकाल की मूर्तियों में कुषाणकालीन नग्नता एवं कामुकता का पूर्णत: लोप हो गया था।
♦ कुषाण कला से प्रभावित एकमात्र बुद्ध की मूर्ति मथुरा शैली में निर्मित है यह मनकुंवर (प्रयागराज) से मिलती है।
♦ गुप्तकालीन धातु मूर्तिकला में नालन्दा तथा सुल्तानगंज की बुद्ध की मूर्ति उल्लेखनीय है।
♦ मुण्डित सिर वाली गुप्तकालीन बुद्ध मूर्ति मानकुँवर (प्रयागराज) से प्राप्त हुई।
♦ इस काल की चित्रकला के अवशेष अजन्ता (महाराष्ट्र के औरंगाबाद में) तथा बाघ (मध्य प्रदेश) गुफाओं से प्राप्त होते हैं।
♦ बाघ की गुफाएँ ग्वालियर के समीप विंध्यपर्वत को काट कर बनाई गई थी। 1818 ई. में डैजरफील्ड ने इन गुफाओं को खोजा, जहाँ से 9 गुफाएँ मिली है। बाघ गुफा के चित्र आम जन-जीवन से संबंधित है। (लौकिक जीवन)
♦महरौली लौह स्तम्भ से जानकारी मिलती है कि चन्द्रगुप्त ने विष्णु पद नाम पर्वत पर विष्णु स्तम्भ स्थापित करवाया था।
शैव मूर्तियाँ
♦ करमदण्डा – शिव की चतुर्मुखी मूर्ति
♦ खोह – एकमुखी शिवलिंग
♦ गुप्तकालीन शिव के अर्द्धनारीश्वर रूप की दो मूर्तियाँ मथुरा संग्रहालय में सुरक्षित है।
♦ भूमरा के शिव मन्दिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग स्थापित है।
♦ विदिशा से शिव के हरिहर स्वरूप की प्रतिमा जो इस समय दिल्ली संग्रहालय में हैं।
♦ गुप्तकाल की बनी मयूरासनासीन का कार्तिकेय की एक सुन्दर मूर्ति पटना संग्रहालय में सुरक्षित है।
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