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चौहान वंश का इतिहास : अजमेर के चौहान
Table of contents
चौहानों का प्रारम्भिक शासन –
1. सांभर (बिजौलिया शिलालेख के अनुसार)
2. पुष्कर (हम्मीर महाकाव्य के अनुसार)
– राजधानी – अहिच्छत्रपुर
– सांभर का प्राचीन नाम – शाकम्भरी/सपादलक्ष
चौहानों की उत्पत्ति के मत
1. अग्निकुण्ड सिद्धान्त – ‘पृथ्वीराज रासो’ (चन्दबरदाई), ‘मुहणोत नैणसी’ एवं ‘सूर्यमल्ल मीसण’
2. ‘वत्सगोत्रीय ब्राह्मण’ – बिजौलिया शिलालेख के अनुसार ‘दशरथ शर्मा’ ने बताया।
3. विदेशी जाति से उत्पन्न – ‘कर्नल टॉड’ और ‘विलियम क्रुक’
4. ब्राह्मण वंशीय – ‘क्याम खाँ रासो’ (जानकवि)
– डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार चौहान सूर्यवंशी क्षत्रिय थे।
– अचलेश्वर मंदिर के लेख में इन्हें चंद्रवंशी माना गया है।
– कई विद्वान इन्हें आर्य मानकर विदेशी मानते हैं।
– ‘पृथ्वीराज विजय’ ‘शब्दकल्पद्रुम कोष’, ‘लाडनूं लेख’ आदि में चौहानों के निवास स्थान के संबंध में जांगल देश (बीकानेर, जयपुर और उत्तरी मारवाड़), सपादलक्ष (सांभर), अहिच्छत्रपुर (नागौर) आदि स्थानों का विशेष वर्णन मिलता है।
– सांभर के चौहानों की प्रमुख शाखाएँ – 1. लाट, 2. धवलपुरी, 3. प्रतापगढ़, 4. शाकम्भरी, 5. रणथम्भौर, 6. नाडोल, 7. जाबालिपुर, 8. सप्तपुर।
वासुदेव चौहान
– शाकम्भरी के चौहान वंश का आदिपुरुष – वासुदेव (बिजौलिया शिलालेख, ‘सुर्जन चरित्र’ और डॉ. दशरथ शर्मा द्वारा रचित ‘अर्ली चौहान डायनेस्टी’ आदि साक्ष्यों के अनुसार)
– राज्य की स्थापना – 551 ई.
– राजधानी – अहिच्छत्रपुर (नागौर)
– सांभर झील का निर्माण करवाया। (बिजौलिया शिलालेख के अनुसार)
अन्य तथ्य :-
– प्रारम्भ में चौहान, गुर्जर-प्रतिहारों के सामंत थे।
– गूवक प्रथम ने चौहानों को गुर्जर-प्रतिहारों की अधीनता से मुक्त करवाया। इसी का वंशज सामंत सांभर का शासक था जो वत्स गोत्र ब्राह्मण वंश में पैदा हुआ था।
– ‘गुवक’ ने हर्षनाथ मंदिर का निर्माण करवाया जो चौहानों के ‘इष्टदेव’ हैं।
– वाक्पतिराज चौहान ने प्रतिहारों को परास्त किया था।
– पुष्कर अभिलेख के अनुसार चौहान शासक वाक्पतिराज के वंशज सिंहराज ने तोमरों एवं प्रतिहारों को परास्त किया था।
– सिंहराज के भाई लक्ष्मण ने नाडोल में चौहान वंश की शाखा स्थापित की थी।
– सिंहराज का उत्तराधिकारी विग्रहराज-द्वितीय हुआ।
विग्रहराज-द्वितीय
– 973 ई. के हर्षनाथ के अभिलेख से विग्रहराज के शासनकाल तथा उसकी विजयों के बारे में जानकारी मिलती है।
– इसने गुजरात के चालुक्य शासक मूलराज-प्रथम को पराजित किया।
– भड़ौच में कुलदेवी आशापुरा माता मंदिर का निर्माण करवाया।
– विग्रहराज-द्वितीय के बाद क्रमश: दुर्लभराज व गोविन्द-तृतीय नामक शासक हुए।
– पृथ्वीराज विजय नामक ग्रंथ के अनुसार गोविन्द-तृतीय की उपाधि वैरीघट्ट (शत्रुसंहारक) थी।
– फरिश्ता के अनुसार गोविन्द तृतीय ने गजनी के शासक को मारवाड़ में आगे बढ़ने से रोका था।
– वाक्पतिराज-द्वितीय ने मेवाड़ के गुहिल शासक अम्बा प्रसाद को पराजित किया था।
अजमेर के चौहान
अजयराज
– शासनकाल – 1105-1133 ई.
– यह पृथ्वीराज-प्रथम का पुत्र था।
– इन्होंने 1113 ई. में अजयमेरु (अजमेर) नगर की स्थापना की।
– इन्होंने ‘अजयप्रिय द्रम्म’ नाम से चाँदी व ताँबे के सिक्के चलाए थे।
– इनकी कुछ मुद्राओं पर इनकी पत्नी सोमलेखा (सोमलवती) का नाम भी अंकित मिलता है।
– अजयराज शैव मतावलम्बी था लेकिन इसने जैन व वैष्णव अनुयायियों को सम्मान की दृष्टि से देखा।
– अजयराज ने नए नगर में जैनों को मंदिर बनाने की अनुमति दी और पार्श्वनाथ मंदिर के लिए स्वर्ण कलश प्रदान किया।
अर्णोराज (आनाजी)
– शासनकाल – 1133-1155 ई.
– उपाधियाँ – 1. महाराजाधिराज
2. परमभट्टारक
3. परमेश्वर
– इसने तुर्कों एवं मालवा के शासकों को परास्त किया।
– अर्णोराज, गुजरात के चालुक्य शासक कुमारपाल से पराजित हुआ।
– इसने गजनियों को हराकर तथा मालवा और हरियाणा अभियानों का नेतृत्व कर अपने वंश के प्रभुत्व को घटने नहीं दिया।
– 1137 ई. में अजमेर में आनासागर झील का निर्माण करवाया।
– पुष्कर में वराह मंदिर का निर्माण करवाया।
– यह शैव धर्म का अनुयायी था लेकिन अन्य धर्मावलम्बियों के प्रति भी सहिष्णु था।
– इसने अजमेर में खरतरगच्छ के अनुयायियों को भूमिदान दिया।
– इनके समय में ‘देवबोध’ और ‘धर्मघोष’ प्रकाण्ड विद्वान थे, जिनको उन्होंने सम्मानित किया था।
– अर्णोराज की हत्या 1155 ई. में इनके पुत्र जगदेव ने की थी।
विग्रहराज-चतुर्थ
– शासनकाल – 1158-1163 ई.
– उपनाम – बीसलदेव चौहान
– विग्रहराज ने तोमरों को पराजित कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। दिल्ली पर अधिकार करने वाला यह प्रथम चौहान शासक था।
– इन्होंने गजनी के खुशरुशाह को भी पराजित किया।
– विग्रहराज ने संस्कृत भाषा में ‘हरकेलि’ नामक नाटक की रचना की।
– जयानक भट्ट ने इन्हें ‘कवि बान्धव’ की उपाधि प्रदान की।
– इनके दरबारी विद्वान सोमदेव ने ‘ललित विग्रहराज’ नाटक की संस्कृत भाषा में रचना की।
– इन्होंने अजमेर में सरस्वती कंठाभरण नामक संस्कृत पाठशाला बनवाकर उस पर हरकेलि नाटक की पंक्तियाँ खुदवाई।
– कुतुबुद्दीन ऐबक ने संस्कृत पाठशाला को तोड़कर ‘ढाई दिन का झोंपड़ा मस्जिद’ बनवाई। इसकी जानकारी ढाई दिन के झोंपड़े की सीढ़ियों में मिले ‘दो पाषाण’ अभिलेखों में मिलती है।
– इन्होंने बीसलपुर नगर (वर्तमान टोंक में) की स्थापना तथा वहाँ पर बीसलपुर झील बनवाई।
– एकादशी के दिन पशु वध पर प्रतिबंध लगाया।
– इनके काल को ‘चौहानों का स्वर्णयुग’ माना जाता है।
– विग्रहराज चतुर्थ के संबंध में डॉ. दशरथ शर्मा ने लिखा है कि “उसकी महत्ता निर्विवाद है, क्योंकि एक सेनाध्याक्ष के साथ-साथ वह एक विजेता, साहित्य का संरक्षक, अच्छा कवि और सूझ-बूझ वाला निर्माता था।”
– पृथ्वीराज विजय का लेखक लिखता है कि “जब विग्रहराज की मृत्यु हो गई तो ‘कविबांधव’ की उपाधि निरर्थक हो गई, क्योंकि इस उपाधि को धारण करने की किसी में क्षमता नहीं रही थी।”
– सोमदेव तो विग्रहराज को वीरों में ही नहीं वरन् विद्वानों में भी अग्रणी मानता था। हरिकेलि नाटक की रचना से यह बात सत्य साबित होती है।
– किलहॉर्न ने भी विग्रहराज की विद्वता की प्रशंसा करते हुए स्वीकार किया है कि वह उन हिन्दू शासकों में से एक था जो कालिदास और भवभूति की होड़ कर सकता था।
पृथ्वीराज चौहान-तृतीय
– जन्म – 1166 ई. (गुजरात की राजधानी ‘अन्हिलपाटन’ में)
– अजमेर के चौहान वंश का अंतिम प्रतापी शासक।
– पिता – सोमेश्वर
माता – कर्पूरी देवी (कलचूरि वंश की राजकुमारी)।
– राज्याभिषेक के समय आयु – 11 वर्ष
– इनकी माता कर्पूरी देवी इनकी संरक्षिका बनी थीं।
– शासनकाल – 1177-1192 ई.
– उपाधियाँ – 1. ‘रायपिथौरा’
2. ‘दलपुंगल’ (विश्व विजेता)
– प्रधानमंत्री – ‘कदम्बवास’
– सेना अध्यक्ष – ‘भुवनैकमल्ल’
– सर्वप्रथम इन्होंने 1178 ई. में अपने चचेरे भाई नागार्जुन के विद्रोह का दमन किया था।
– इन्होंने 1182 ई. में सतलज प्रदेश के भण्डानकों को हराया।
– ‘तुमुल का युद्ध’ (1182 ई.) – पृथ्वीराज ने महोबा के चंदेल शासक परमर्दिदेव को पराजित किया। इस युद्ध में परमर्दिदेव के सेनापति आल्हा व ऊदल वीरगति को प्राप्त हुए थे।
– ‘पृथ्वीराज रासो’ के अनुसार 1184 ई. में पृथ्वीराज-तृतीय तथा चालुक्य नरेश भीमदेव-द्वितीय दोनों के मध्य आबू के परमार शासक सलख की पुत्री इच्छिनी से विवाह को लेकर विवाद हुआ था।
– पृथ्वीराज ने कन्नौज के गहड़वाल शासक जयचंद को पराजित किया। इन्होंने जयचंद की बेटी संयोगिता का स्वयंवर के समय अपहरण कर उससे विवाह कर लिया।
संयोगिता स्वयंवर कथा – कन्नौज के शासक जयचंद गहड़वाल ने राजसूय यज्ञ किया तथा अपनी पुत्री संयोगिता के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया।
– इस अवसर पर पृथ्वीराज को छोड़कर सभी राजाओं को आमंत्रित किया गया और पृथ्वीराज को अपमानित करने के लिए स्वयंवर-स्थल के बाहर द्वारपाल के रूप में पृथ्वीराज की मूर्ति लगाई।
– संयोगिता, पृथ्वीराज को चाहती थी। अत: उसने पृथ्वीराज की मूर्ति के गले में वरमाला डाल दी। तब तक पृथ्वीराज भी अपने सैनिकों के साथ वहाँ पहुँच गए।
– पृथ्वीराज ने संयोगिता को साथ लेकर अजमेर की ओर प्रस्थान किया और उनके सैनिकों ने जयचंद के सैनिकों को पीछा करने से रोका।
– अजमेर पहुँचकर दोनों ने विवाह कर लिया। इस घटना से पृथ्वीराज व जयचंद में शत्रुता बढ़ गई।
संयोगिता कथा की ऐतिहासिकता – इस कथा के संबंध में सभी इतिहासकार एकमत नहीं हैं।
– डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने इस कथा को कपोल कल्पना मानते हुए कहा है कि “प्रबंध कोष, हम्मीर महाकाव्य, पृथ्वीराज प्रबंध व प्रबंध चिंतामणि जैसे समकालीन ग्रंथों में इस घटना का कोई जिक्र नहीं है।“
– डॉ. रोमिला थापर व डॉ. आर.एस. त्रिपाठी ने भी इसे सही नहीं माना है।
– समकालीन फारसी तवारीखों में इस घटना का वर्णन नहीं मिलता किन्तु अबुल फजल ने इसका वर्णन अवश्य किया है।
– डॉ. दशरथ शर्मा ने बताया है कि “हम्मीर महाकाव्य तथा रंभामंजरी में ढेर सारी गलतियाँ हैं तथा इनमें वर्णन न मिलने से सारी घटना को ही काल्पनिक मान लिया जाए यह उचित नहीं है।“ उन्होंने घटना की सत्यता को स्वीकार करते हुए बताया कि प्रेम जीवन का एक अंग है और वह सत्य एवं वास्तविक है। अत: यह घटना घटी हो तो कोई आश्चर्य नहीं।
– सी.वी. वैद्य एवं डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने भी इस घटना को स्वीकार किया है।
– 1186 से 1191 तक गौरी को पृथ्वीराज ने कई बार पराजित किया।
– हम्मीर महाकाव्य के अनुसार 7 बार, पृथ्वीराज प्रबंध में 8 बार, पृथ्वीराज रासो में 21 बार, प्रबन्ध चिंतामणि में 23 बार पृथ्वीराज तृतीय द्वारा मोहम्मद गौरी को पराजित करने का उल्लेख है।
तराइन के प्रथम युद्ध (करनाल, हरियाणा 1191 ई.)
– पृथ्वीराज-तृतीय और मुहम्मद गौरी के मध्य हुआ।
– युद्ध में गौरी, गोविन्दराय के भाले से घायल हो गया।
– पृथ्वीराज-तृतीय ने मुहम्मद गौरी को पराजित किया।
– पृथ्वीराज ने गौरी की भागती हुई सेना का पीछा नहीं किया।
– पृथ्वीराज का सेनापति – ‘चामुण्डराय’
– तबरहिंद पर अधिकार कर जियाउद्दीन को बंदी बनाया और एक बड़ी धनराशि के बदले उसे रिहा कर दिया।
तराइन के द्वितीय युद्ध (1192 ई.)
– पृथ्वीराज के सेनापति – ‘गोविन्दराय तोमर’ और ‘समरसिंह’
– कन्नौज के शासक जयचंद गहड़वाल ने मुहम्मद गौरी की सहायता की।
– गौरी ने संधि वार्ता का बहाना करके पृथ्वीराज को भुलावे में रखा और प्रात:काल में नित्य क्रिया के समय गौरी ने आक्रमण कर दिया।
– गोविन्दराय व अनेक वीर युद्ध भूमि में काम आए।
– तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज की पराजय से चौहान राज्य का तो पतन हुआ ही, भारत में तुर्की शासन की नींव भी पड़ी।
– गौरी ने उसे सिरसा के पास बंदी बना लिया और अपने साथ गजनी ले गया।
– पृथ्वीराज रासो के अनुसार मुहम्मद गौरी ने एक प्रतियोगिता रखी जिसमें पृथ्वीराज चौहान ने चन्दबरदाई के कहने पर एक शब्दभेदी बाण चलाया।
– दोहा –
“चार बाँस, चौबीस गज, अँगुल अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर सुल्तान है, मत चुके चौहान”
– पृथ्वीराज-तृतीय के शब्दभेदी बाण से मुहम्मद गौरी की मृत्यु हो गई थी।
– पृथ्वीराज वीर, विद्यानुरागी व गुणीजनों का सम्मान करने वाला था।
– दरबारी विद्वान – पृथ्वीराज रासो के लेखक चन्दबरदाई (पृथ्वीभट्ट), पृथ्वीराज विजय के लेखक जयानक, वागीश्वर, जनार्दन आशाधर, विद्यापति गौड़, विश्वरूप आदि थे।
– डॉ. दशरथ शर्मा ने पृथ्वीराज चौहान को एक सुयोग्य शासक कहा है।
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