क्या आप बौद्ध धर्म का इतिहास के बारे में जानना चाहते है ? अगर हाँ ! तो आपको हमारी यह पूरी पोस्ट जरूर पढ़ना चाहिए जिसमे हम बौद्ध धर्म से संबंधित लगभग सभी महवपूर्ण बातें शेयर की है | अगर आप किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे है तो यह टॉपिक आपको भारत का इतिहास विषय में पढ़ने के लिए मिलता है
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बौद्ध धर्म
-ई. पू. की छठीं शताब्दी को विश्व में धर्म सुधार आंदोलन के युग के रूप में जाना जाता है। इस काल के दौरान न केवल भारत अपितु विश्व में धर्म सुधार हुआ।
जैसे:-
देश : धर्म सुधारक
चीन : कन्फ्यूशियस एवं लाऑत्से
ईरान : जरथ्रुस्ट्र
यूनान : प्लेटो, सुकरात, अरस्तु, परमानट्स जैसे दार्शनिक
भारत – महावीर व गौतम बुद्ध
बौद्ध धर्म
-इस धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध अथवा सिद्धार्थ का जन्म नेपाल की तराई में अवस्थित कपिलवस्तु राज्य में स्थित लुम्बिनी वन में 563 ई.पू. में हुआ था। इनके पिता शुद्धोधन शाक्य गण के मुखिया थे तथा माता महामाया कोलिय वंशीय थी।
-बुद्ध का अन्य नाम शाक्य मुनि भी है।
-इनका पालन-पोषण इनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने किया।
-कालदेवल व कौण्डिन्य की भविष्यवाणी के कारण सिद्धार्थ का विवाह 16 वर्ष की आयु में कर दिया गया
यशोधरा से इनका विवाह हुआ तथा राहुल इनका पुत्र था।
-गौतम बुद्ध ने निम्न चार दृश्य देखे जिनके कारण उनको वैराग्य उत्पन्न हुआ :-
(1) वृद्ध व्यक्ति (2) बीमार व्यक्ति
(3) मृत व्यक्ति (4) प्रसन्न मुद्रा में संन्यासी
-सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में सत्य की खोज में गृह त्याग दिया। गृह त्याग के समय सिद्धार्थ अपने साथ अपने घोड़े कन्थक व सारथी छन्दक को साथ लेकर गए। गृह त्याग की इस घटना को बौद्ध ग्रंथों में महाभिनिष्क्रमण कहा गया।
-गृहत्याग के पश्चात् सर्वप्रथम वे आलार कालाम (सांख्य दर्शन के आचार्य) नामक तपस्वी के सम्पर्क में आए तत्पश्चात् वे रामपुत्त नामक आचार्य के पास गए।
-बुद्ध के प्रथम गुरु आलार कालाम तथा द्वितीय गुरु रूद्रकरामपुत थे।
-सात वर्ष तक जगह – जगह भटकने के पश्चात् वे ‘गया’ नामक स्थान पर पहुँचे जहाँ उन्होंने निरंजना नदी के किनारे पीपल वृक्ष के नीचे समाधि लगाई। यहीं वैशाख पूर्णिमा पर सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ। इस समय उनकी उम्र 35 वर्ष थी। उस समय से वे बुद्ध कहलाए।
-गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी के समीप सारनाथ में दिया। इसे ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ कहते हैं।
-483 ई.पू. में गौतम बुद्ध की मृत्यु कुशीनगर (देवरिया जिला, उत्तर प्रदेश) में हुई। इसे बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहते हैं।
-बौद्ध धर्म अनीश्वरवादी है।
-बौद्ध धर्म में आत्मा की परिकल्पना नहीं है। (अनात्मवादी) पुनर्जन्म को माना गया है।
-अपने प्रिय शिष्य आनंद के अनुरोध पर बुद्ध ने महिलाओं को संघ में प्रवेश की अनुमति दी।
-संघ में प्रवेश पाने वाली प्रथम महिला बुद्ध की सौतेली माँ प्रजापति गौतमी थी।
-उदयन बौद्ध भिक्षु पिन्डोला भारद्वाज के प्रभाव से बौद्ध बन गया था।
-कौशल नरेश प्रसेनजित ने संघ के लिए ‘पुब्बाराम(पूर्वा-राम)’ नामक विहार बनवाया था।
-बिम्बिसार ने संघ को वेणुवन विहार तथा उदयन ने घोषिताराम विहार भिक्षु संघ को प्रदान किया।
-बौद्ध धर्म को राजाश्रय प्रदान करने वाले शासक- मगधराज बिम्बिसार और अजातशत्रु, कौशल नरेश प्रसेनजीत तथा वत्सराज उदयन,पाल शासकों ने बौद्ध धर्म को विशेष रूप से संरक्षण दिया।
-बौद्ध धर्म के त्रिरत्न-बुद्ध, धम्म, संघ।
-बौद्ध संघ का संगठन गणतान्त्रिक प्रणाली पर आधारित था।
-बौद्ध संघ में प्रविष्ट होने को “उपसम्पदा” कहा जाता था।
-गृहस्थ जीवन के बौद्ध अनुयायी “उपासक” तथा संघ में निवास करने वाले भिक्षु कहलाते थे।
-बुद्ध की प्रथम मानव के रूप में मूर्ति प्रथम शताब्दी ई. में “मथुरा शैली” में निर्मित की गई।
बौद्ध धर्म के सिद्धान्त
-बौद्ध धर्म का विशद ज्ञान हमें त्रिपिटक से होता है जो पालि भाषा में लिखे गए हैं।
–चार आर्य सत्य : बौद्ध धर्म का सार चार आर्य सत्यों में निहित हैं-
(i) दु:ख (ii) दु:ख समुदाय
(iii) दु:ख निरोध (iv) दु:ख निरोध गामिनी प्रतिपदा।
–आष्टांगिक मार्ग के 8 तत्त्व निम्नलिखित हैं-
1. सम्यक् दृष्टि 2. सम्यक् संकल्प 3. सम्यक् वाक्
4. सम्यक् कर्म 5. सम्यक् आजीव6. सम्यक् स्मृति
7. सम्यक् समाधि 8. सम्यक् व्यायाम
–दस शील : बुद्ध ने निर्वाण प्राप्ति के लिए सदाचार तथा नैतिक जीवन पर बल दिया। इसके लिए उन्होंने दस शील का पालन अनिवार्य बताया।
दस शीलों के नाम
-दीर्घनिकाय के भाग सिंगालोवाद में पंचशील व दसशील का
वर्णन मिलता है। इसमें प्रथम पाँच ‘पंचशील’ बौद्ध उपासक गृहस्थ
के लिए है। सम्पूर्ण दसशील भिक्षुओं के लिए है-
(1) सत्य (2) अहिंसा (3) अस्तेय (4) ब्रह्मचर्य
(5) मादक पदार्थो का त्याग (6) असमय भोजन का त्याग,
(7) कोमल शैय्या का त्याग (8) कंचन कामिनी का त्याग
(9) नृत्य संगीत का त्याग (10) सुगन्धित द्रव्यों का त्याग
बौद्ध धर्म के सम्प्रदाय
-कनिष्क के समय बौद्ध धर्म स्पष्टतः दो सम्प्रदाय महायान तथा हीनयान में विभक्त हो गया। (चतुर्थ बौद्ध संगीति के दौरान)
–हीनयान : रुढ़िवादी प्रकृति के थे। ये बुद्ध के मौलिक सिद्धान्त पर विश्वास करते थे।
–महायान : सुधारवादी प्रकृति के थे। बुद्ध को भगवान मानते थे और मूर्ति पूजा पर विश्वास करते थे। अवतारवाद तथा भक्ति से संबंधित हिन्दू धर्म के सिद्धान्त को अंगीकार किया।
-शून्यवाद (माध्यमिक) मत का प्रवर्तन नागार्जुन ने किया था तथा विज्ञानवाद (योगाचार) के संस्थापक मैत्रेयनाथ थे। असग तथा वसुबंध द्वारा विज्ञानवाद का विकास किया गया।
-नागार्जुन की प्रसिद्ध रचना है- माध्यमिक कारिका।
–वज्रयान : सातवीं शताब्दी के करीब बौद्ध धर्म में तंत्र – मंत्र के प्रभाव के फलस्वरूप वज्रयान सम्प्रदाय का उदय हुआ।
-सहजयान व काल चक्रयान का संबंध बौद्ध धर्म से है।
त्रिपिटक :-
-सुत्तपिटक- बौद्ध धर्म के सिद्धांत
-विनयपिटक- इसमें आचरण के नियमों का उल्लेख है।
-अभिधम्म पिटक- बौद्ध धर्म के सिद्धांतों की दार्शनिक व्याख्या मिलती है।
-त्रिपिटकों पर लिखे गए भाष्यों को ‘विभाषाशास्त्र’ कहा जाता है।
-जातक ग्रन्थों में बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाओं का वर्णन है । (जातक ग्रन्थ -549)
प्रथम बौद्ध संगीति
समय | 483 ई.पू. |
स्थान | सप्तपर्णि गुफा (राजगृह) |
शासनकाल | अजातशत्रु |
अध्यक्ष | महाकश्यप |
कार्य | बुद्ध के उपदेशों का सुत्तपिटक तथा विनयपिटक में अलग-अलग संकलन किया गया। |
द्वितीय बौद्ध संगीति
समय | 383 ई.पू. |
स्थान | वैशाली (बालुका राम विहार) |
शासनकाल | कालाशोक |
अध्यक्ष | सब्बाकामी (साबकमीर) |
कार्य | भिक्षुओं में मतभेद के कारण बौद्ध धर्म का स्थविर एवं महासंघिक में विभाजन |
तृतीय बौद्ध संगीति
समय | 251 ई.पू. |
स्थान | पाटलिपुत्र (अशोकाराम विहार) |
शासनकाल | अशोक |
अध्यक्ष | मोग्गलिपुत्त तिस्स |
कार्य | अभिधम्मपिटक का संकलन |
चतुर्थ बौद्ध संगीति
समय | प्रथम शताब्दी ई. |
स्थान | कुंडलवन (कश्मीर) |
शासनकाल | कनिष्क |
अध्यक्ष | वसुमित्र (अश्वघोष उपाध्यक्ष) |
कार्य | विभाषाशास्त्र’ टीका का संस्कृत में संकलन। बौद्ध संघ का हीनयान एवं महायान सम्प्रदायों में विभाजन |
बौद्ध धर्म के पतन के कारण
-बौद्ध धर्म के पतन के कारण में ब्राह्मण धर्म की बुराइयों को ग्रहण करना
-पालि छोड़ कर संस्कृत भाषा को अपनाना।
-बौद्ध विहारों का विलासिता तथा दुराचार के केन्द्र बन जाना।
-विहारों में एकत्रित धन का संकेंद्रण।
-बौद्ध शिक्षा के महान केन्द्र “नालन्दा” व “विक्रमशीला” विश्वविद्यालयों को बख्तियार खिलजी ने नष्ट कर दिया।
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