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Table of contents
गुप्तोत्तर काल नोट्स
हर्षकालीन प्रमुख विद्वान एवं साहित्यकार
– हर्ष कला व साहित्य का उदार संरक्षक था, अपने राजस्व का ¼ भाग विद्वानों को दान देता था।
1. बाणभट्ट
– दरबारी कवि एवं प्रमुख विद्वान।
– ग्रंथ – संस्कृत भाषा में लिखे।
i. हर्षचरित – 620 ई. (8 भागों में)
ii.कादम्बरी
– अन्य– चण्डीशतक, पार्वती परिणय, मुकुट तड़ितम्/तड़ितकम
2. मयूर/मोर
– बाणभट्ट का ससुर था।
– हर्ष का दूसरा प्रमुख कवि।
– ग्रंथ – सूर्यशतक, मयूर शतक, खण्ड प्रशस्ति।
3. दाण्डी
– संस्कृत का प्रकाण्ड विद्वान – वास्तविक नाम – सोढ्ढ़न/सोढ्ढ़ल
– ग्रंथ – दशकुमारचरित, काव्यादर्श, अवन्तिसुन्दरी
अन्य विद्वान
– जयसेन – बौद्ध भिक्षुक
– सुबंधु मातंगदिवाकर – चाण्डाल जाति का विद्वान था।
– ईशान- शीलभद्र
नोट :- हर्ष के समय ही भर्तृहरि ने – शृंगार शतक, वैराग्य शतक, नीतिशतक जैसे प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की।
हर्षकालीन कला संस्कृति
– उल्लेख – हर्षचरित और कादम्बरी में
– हर्ष का टीला कन्नौज (UP) में स्थित है।
– सिरपुर (रायपुर) का लक्ष्मण मंदिर व मुण्डकेश्वरी (बिहार) का अष्टकोणिक मंदिर हर्ष के समय में निर्मित हुए।
– नालंदा विश्वविद्यालय में एक मठ का निर्माण करवाया। जयसेन को 80 गाँव दान में दिए।
– हर्ष के समय नालंदा के प्रमुख शीलभद्र थे।
सामाजिक स्थिति
– ह्वेनसांग – चार प्रमुख वर्ण
1. ब्राह्मण
2. क्षत्रिय
3. वैश्य
4. शूद्र
– 5वें वर्ण में मिश्रित जातियों जिनमें अनुलोम व प्रतिलोम विवाह होता था।
– बाल विवाह पूर्ण रूप से स्थापित हो गए। (8-10 वर्ष में कन्या का विवाह) प्राचीन भारत में बाल विवाह का प्रथम उल्लेख।
– 8 वर्ष की लड़की – गौरी
स्त्रियों की स्थिति
– 10 वर्ष की लड़की – कन्या
– जाति प्रथा समाज का प्रमुख आधार
– वर्ण व्यवस्था – जन्म पर आधारित
– स्त्रियों में पर्दाप्रथा का प्रचलन नहीं
– लोग श्वेत वस्त्र धारण करते थे।
– समाज में अपराध न के बराबर लेकिन सती प्रथा प्रचलित।
शिक्षा की स्थिति
– हर्षकालीन शिक्षा के प्रमुख केन्द्र – नालंदा, काशी, वल्लभी, उज्जयिनी
धर्म :–
– हर्षकालीन भारत के दौरान शैव, जैन, बौद्ध, ब्राह्मण धर्म प्रचलित थे।
– शैव मत का सर्वाधिक प्रचलन।
– बौद्ध धर्म 18 भागों में विभाजित
– “गृहे गृहे अपूज्यते भगवान खण्ड परशु (शिव)” अर्थात् थानेश्वर के सभी घरों में शिव की पूजा होती थी।
– हर्ष 619 ई. तक शैव अनुयायी थे।
– सोनीपत (हरियाणा) से प्राप्त मुद्रा पर शिव, पार्वती (अग्रभाग), नंदी बने, पृष्ठ भाग पर श्री हर्ष अंकित।
– ह्वेनसांग के प्रभाव में – बौद्ध अनुयायी बना।
हर्ष का प्रशासन :- हर्षकालीन प्रशासन का उल्लेख हर्ष चरितम् में मिलता है।
अधिकारी | कार्य |
अवन्ति | युद्ध व शांति अधिकारी |
सिंघनाद/सिंहनाद | सेनापति |
कुंतल | अश्व सेना का प्रधान |
स्कंदगुप्त | हस्तिसेना का प्रधान |
चाट–भाट | वैतनिक, अवैतनिक सैनिक (पुलिस अधिकारी) |
सामंत/महाराज | नागरिक प्रशासन का प्रमुख |
प्रतिहार | अन्त:पुर का रक्षक (रनिवास) |
महाप्रतिहार | राजप्रासाद का रक्षक |
आयुक्तक | साधारण अधिकारी |
मीमांसक | न्यायाधीश |
हर्ष को ‘प्राचीन भारत का अंतिम हिंदू सम्राट’ माना जाता है। ‘प्राचीन भारत का अंतिम महान साम्राज्य निर्माता’
हर्ष की मृत्यु – 647 ई. में – साथ ही वर्धन वंश का पतन हो गया।
अन्हिलवाड़ के चालुक्य
मूलराज प्रथम इसके संस्थापक थे जिसने अन्हिलवाड़ को अपनी राजधानी बनाया।
भीम प्रथम के शासनकाल में महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया।
जयसिंह सिद्धराज के राजदरबार में प्रसिद्ध जैन आचार्य हेमचन्द्र रहते थे।
मूलराज द्वितीय ने 1178 ई. में आबू पर्वत के समीप मुहम्मद ग़ौरी को परास्त किया था।
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