इस पोस्ट में हम प्राचीन भारत का इतिहास के एक टॉपिक मौर्य साम्राज्य से संबंधित क्लासरूम नोट्स उपलब्ध करवा रहे हैं जिसमें आपको मौर्य साम्राज्य , मौर्यों की उत्पत्ति , चद्रगुप्त मौर्य (322 – 298 ई. पू.) , बिन्दुसार (298 – 273 ई. पू.) , अशोक (273 – 236 ई. पू.) इत्यादि के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए मिलेगा इस टॉपिक के नोट्स को पढ़ने के पश्चात आपको इसके लिए अन्य कहीं से पढ़ने की आवश्यकता नहीं होगी 

यह नोट्स ऑफलाइन क्लासरूम से तैयार किए गए हैं ताकि आप अगर सेल्फ स्टडी कर रहे हैं तो इन नोट्स के माध्यम से आप बिल्कुल फ्री घर बैठे तैयारी कर सकें

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मौर्य साम्राज्य का इतिहास

मौर्यों की उत्पत्ति

♦ब्राह्मण परम्परा के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य की माता शूद्र जाति की मुरा नामक स्त्री थी।

♦बौद्ध परम्परा के अनुसार मौर्य ‘क्षत्रिय कुल’ से संबंधित थे। महापरिनिब्बानसुत्त के अनुसार मौर्य पिप्पलिवन का शासक तथा क्षत्रिय वंश से संबंधित थे।

चद्रगुप्त मौर्य (322 – 298 ई. पू.)

♦चाणक्य की सहायता से अंतिम नन्द शासक घनानन्द को पराजित कर चन्द्रगुप्त मौर्य पाटलिपुत्र के सिंहासन पर बैठा।

♦विलियम जोन्स पहले विद्वान थे, जिन्होंने ‘सैंड्रोकोटस’ की पहचान भारतीय ग्रंथों में वर्णित चन्द्रगुप्त से की।

♦305 ई. पू. या उसके आसपास बैक्ट्रिया के शासक सेल्यूकस तथा चन्द्रगुप्त के बीच उत्तर – पश्चिमी भारत पर आधिपत्य के लिए एक भीषण युद्ध हुआ जिसमें सेल्यूकस की हार हुई। युद्ध की समाप्ति के बाद दोनों के मध्य एक संधि हुई।

♦संधि की शर्तों का उल्लेख स्ट्रेबो ने किया है। सेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त को चार प्रान्त एरिया (हेरात), अराकोसिया (कंधार), जेड्रोसिया (मकरान), बलूचिस्तान तथा पेरिपेमिसडाई (काबुल) दिए।

♦सेल्यूकस की पुत्री हेलना का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य से हुआ।

♦चन्द्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार में दिए।

♦सेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में अपना एक राजदूत मैगस्थनीज को भेजा।

♦चन्द्रगुप्त मौर्य के समय सौराष्ट्र के गवर्नर पुष्यगुप्त वैश्य ने सुदर्शन झील का निर्माण करवाया।

♦अंतिम दिनों में चन्द्रगुप्त ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया और अपने पुत्र बिन्दुसार के पक्ष में सिंहासन छोड़ दिया।

♦जैन संत भद्रबाहु के साथ वह मैसूर के निकट श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) चला गया जहाँ एक सच्चे जैन मुनि की तरह उपवास द्वारा शरीर त्याग दिया (संल्लेखना विधि)।

बिन्दुसार (298 – 273 ई. पू.)

♦चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र बिन्दुसार उसका उत्तराधिकारी बना।

♦यूनानियों ने बिन्दुसार को ‘अमित्रचेट्स’ कहा है।

♦जैन ग्रन्थों में ‘सिंहसेन’ कहा गया।

♦वायुपुराण में ‘भद्रसार’ तथा  पतंजलि के महाभाष्य ने अमित्रघात का उल्लेख मिलता है।

♦बिन्दुसार ने अपने बड़े पुत्र सुसीम को तक्षशिला का तथा अशोक को उज्जयिनी का राज्यपाल नियुक्त किया था।

♦यूनानी शासक एण्टियोकस (सीरिया) ने बिन्दुसार के दरबार में डाइमेकस नामक राजदूत भेजा था।

♦मिस्र के राजा टॉलेमी द्वितीय (फिलाडेल्फस द्वितीय) ने डाइनोसियस को बिन्दुसार के दरबार में भेजा था।

अशोक (273 – 236 ई. पू.)

♦बौद्ध ग्रंथों के अनुसार उसकी माता का नाम सुभद्रांगी था।

♦जैन ग्रंथों के अनुसार अशोक ने बिन्दुसार की इच्छा के विरुद्ध मगध के शासन पर अधिकार किया था, पुराणों में अशोक को ‘अशोकवर्द्धन’ तथा दीपवंश में ‘करमोली’ कहा गया है।

♦अशोक को भाब्रू अभिलेख में ‘प्रियदर्शी’ तथा मास्की अभिलेख में ‘बुद्धशाक्य’ कहा गया है।

♦कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ के अनुसार अशोक का राज्य कश्मीर तक फैला था।

♦अशोक की रानियों में महादेवी, तिष्यरक्षिता तथा कारुवाकी का नाम आता है।

♦सिंहली परम्परा के अनुसार अशोक के पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा विदिशा के श्रेष्ठी पुत्री महादेवी से उत्पन्न हुए थे।

♦अशोक के अभिलेख में उसकी एकमात्र पत्नी कारुवाकी का उल्लेख मिलता है।

♦अशोक का वास्तविक राज्याभिषेक 269 ई. पू. में हुआ, हालाँकि उसने 273 ई. पू. में सत्ता पर कब्जा कर लिया था।

♦कल्हण के अनुसार अशोक ने कश्मीर में ‘श्रीनगर’ नामक नगर की स्थापना की।

अशोक के विभिन्न नाम एवं उपाधियाँ

अशोकव्यक्तिगत नाम, उल्लेख – मास्की, गुर्जरा, नेतुर एवं उडेगोलन अभिलेख में
देवनांप्रिय प्रियदर्शीराजकीय उपाधि आधिकारिक नाम
अशोकवर्द्धनविष्णु पुराण

कलिंग युद्ध 

♦अशोक के शासनकाल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना 261 ई. पू. में कलिंग युद्ध था।

♦कलिंग युद्ध के भीषण नरसंहार को देखकर अशोक इतना द्रवित हुआ कि उसने भविष्य में कभी युद्ध न करने का संकल्प लिया और भैरीघोष की जगह धम्मघोष की नीति को अपनाया।

♦कलिंग युद्ध तथा उसके परिणामों के विषय में अशोक के तेरहवें अभिलेख से विस्तृत सूचना प्राप्त होती है।

अशोक की धम्म नीति

♦अभिलेखों के अनुसार अशोक के बौद्ध धर्म में दीक्षित करने का श्रेय उपगुप्त को जाता है।

♦भाब्रू शिलालेख में अशोक ने बौद्ध, संघ और धम्म में विश्वास व्यक्त किया है। (अशोक के बौद्ध होने का प्रमाण)

♦अशोक का ‘धम्म’ बौद्ध धर्म नहीं था।

♦तीसरे एवं सातवें स्तम्भ लेख में अशोक ने युक्त, रज्जुक तथा प्रादेशिक नामक पदाधिकारी को जनता के बीच धर्म एवं प्रचार का उपदेश करने का आदेश दिया।

♦अशोक ने प्रजा के नैतिक उत्थान हेतु राजत्व के नए नियमों की संहिता बनाई थी जिसे इसके अभिलेखों में ‘धम्म’ कहा गया है।

 ♦अशोक के पाँचवें अभिलेख से पता चलता है कि उसने धम्म के प्रचार हेतु रज्जुकों, प्रादेशिकों, युक्तों एवं धम्म महामात्रों की नियुक्ति की थी।

धम्म प्रचारक

नामक्षेत्र
महेन्द्र तथा संघमित्राताम्रपर्णि (श्रीलंका)
मझान्तिककश्मीर एवं गांधार
मज्झिमहिमालय
महाधर्मरक्षितमहाराष्ट्र
रक्षितबनवासी
सोन तथा उत्तरासुवर्ण भूमि (द. पू. एशियाई देश)
महारक्षितयवनदेश
धर्मरक्षितअपरान्तक
महादेवमहिषमण्डल

मौर्य साम्राज्य का इतिहास : अशोक के अभिलेख

♦सर्वप्रथम 1750 ई. में टी. फेन्थैलर महोदय ने अशोक के दिल्ली – मेरठ स्तम्भ का पता लगाया था।

♦सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप को 1837 ई. में अशोक के अभिलेखों की खोज को पढ़ने में सफलता प्राप्त हुई सर्वप्रथम दिल्ली-टोपरा लेख को पढ़ा।

♦अशोक के अभिलेखों की भाषा प्राकृत है।

♦अशोक के अभिलेख अरमाइक, खरोष्ठी, यूनानी एवं ब्राह्मी चार लिपियों में पाए गए हैं।

♦लघमान लेख अरमाइक लिपि में हैं।

♦मानसेहरा एवं शाहबाजगढ़ी से खरोष्ठी लिपि के शिलालेख प्राप्त हुए हैं।

♦द्वि-भाषिक लिपि- कंधार का शेर-ए-कुना अभिलेख। इसमें यूनानी एवं अरमाइक लिपियों का एक साथ प्रयोग हुआ है।

♦अशोक के अभिलेख को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है- शिलालेख, स्तम्भलेख एवं गुहालेख।

♦वृहद शिलालेखों की संख्या 14 हैं, जो आठ भिन्न – भिन्न स्थानों से प्राप्त किए गए हैं-

अशोक के प्रमुख वृहद शिलालेख

शिलालेखस्थानलिपि
शाहबाजगढ़ीपेशावर (पाक.)खरोष्ठी
मानसेहराहाजरा (पाक.)खरोष्ठी
कालसीदेहरादून (उत्तराखण्ड)ब्राह्मी
गिरनारजूनागढ़ (गुजरात)ब्राह्मी
एर्रगुड़िकुर्नूल (आंध्र प्रदेश)बुस्ट्रोफेदन
धौलीपुरी (ओडिशा)ब्राह्मी
जौगढ़गंजाम (ओडिशा)ब्राह्मी
सोपाराथाणे (महाराष्ट्र)ब्राह्मी

अशोक के शिलालेखों में वर्णित विषय

1.पहला शिलालेख ®  पशुबलि व सामाजिक उत्सवों-समारोहों पर प्रतिबंध, सभी मानव मेरी संतान की तरह है।

2.दूसरा शिलालेख ®   पशु चिकित्सा, मानव चिकित्सा एवं लोक कल्याणकारी कार्य, चोल पांड्य, सत्तियपुत्र एवं केरलपुत्र (चेर) का उल्लेख।

3.तीसरा शिलालेख ® माता-पिता का सम्मान करना, राजकीय अधिकारियों (युक्त, रज्जुक व प्रादेशिक) को प्रत्येक पाँचवें वर्ष दौरा करने का आदेश।

4.चौथा शिलालेख ®   धम्म की नीति के द्वारा अनैतिकता तथा ब्राह्मणों एवं श्रवणों के प्रति निरादर की प्रवृत्ति, हिंसा आदि को रोका जा सके। भेरीनाद (रणघोष) के स्थान पर धम्म घोष का उद्घोष।

5.पाँचवाँ शिलालेख ® इसमें प्रथम बार अशोक के शासन के 13वें वर्ष में धम्म महामात्रों की नियुक्ति की चर्चा। मौर्य कालीन समाज व वर्णव्यवस्था की जानकारी।

6.छठा शिलालेख ®     धम्म महामात्रों के लिए आदेश लिखे हैं। अशोक ने इसमें कहा है कि “राज्य कर्मचारी-अधिकारी उससे किसी भी समय राज्य के कार्य के संबंध में मिल सकते हैं।“ आत्मनियंत्रण की शिक्षा दी गई है, आम जनता किसी भी समय राजा से मिल सकते हैं।

7.सातवाँ शिलालेख ® सभी संप्रदायों के लिए सहिष्णुता की बात।

8.आठवाँ शिलालेख ® अशोक की धर्मयात्राओं की जानकारी, सार्वजनिक निर्माण कार्यों का वर्णन है। बोधगया के भ्रमण का उल्लेख।

9.नौवाँ शिलालेख ®    धम्म समारोह की जानकारी, नैतिकता पर बल दिया गया है तथा इसमें ‘धम्म मंगल’ को श्रेष्ठ बताया गया है।

10. दसवाँ शिलालेख ®  धम्म नीति की श्रेष्ठता पर बल दिया गया है, राजा और उच्च अधिकारियों को आदेश है कि हर क्षण प्रजा के हित में  सोचें।

11. ग्यारहवाँ शिलालेख ®इसमें धम्म दान को श्रेष्ठ बताया गया है।

12. बारहवाँ शिलालेख ®सम्प्रदायों के मध्य सहिष्णुता रखने का निर्देश है। सभी सम्प्रदायों को सम्मान देने की बात है। स्त्री महामात्र की चर्चा तथा इसमें बृजभूमिक व धम्म महामात्र का भी उल्लेख आता है।

13. तेरहवाँ शिलालेख ® इसमें युद्ध के स्थान पर धम्म विजय का आह्वान है, कलिंग युद्ध की जानकारी, अपराध करने वाली आटविक जातियों का उल्लेख तथा पड़ोसी राज्यों का वर्णन।

14. चौदहवाँ शिलालेख ®अशोक ने जनता को धार्मिक जीवन जीने के लिए प्रेरित किया है यह दो पृथक् शिलालेख है जो कलिंग में लगाए गए हैं इसमें कलिंग की समस्त जनता को पुत्र-पुत्रियों के समान कहा है।

स्तम्भ लेख

♦ स्तम्भ लेख की संख्या 7 हैं जो 6 अलग-अलग स्थानों से मिले हैं।

स्तम्भलेख : Iअशोक के राज्याभिषेक के 26 वर्ष बाद लिखित।धम्म के पालन, सम्मान, उत्साह और आत्मनिरीक्षण द्वारा आनंद प्राप्ति का उल्लेख।
स्तम्भलेख : IIधम्म की विशेषताओं यथा-शुभ, करुणा, उदारता, सत्यता, पुण्यवर्धक, पापनाशक आदि का उल्लेख।
स्तम्भलेख : IIIमनुष्य को आत्मचिंतन करने, दुर्गुणों का निदान करने और सद्‌गुणों को अपनाने की शिक्षा का उल्लेख।
स्तम्भलेख : IVरज्जुकों के कर्तव्यों का उल्लेख।
स्तम्भलेख : Vकुछ पशु-पक्षियों का वध निषिद्ध एवं 25 कैदियों को मुक्त करने का वर्णन।
स्तम्भलेख : VIप्रजा के कल्याण एवं लाभ के लिए धम्मलिपि लिखवाने एवं धम्म का वर्णन।
स्तम्भलेख : VIIअशोक द्वारा धम्म के अनुपालन में किए गए कार्यों का वर्णन।

अशोक के 7 स्तंभलेख टोपरा (दिल्ली), मेरठ, इलाहाबाद, रामपुरवा, लौरिया अरराज (चंपारण), लौरिया नन्दनगढ़ (चंपारण) में पाया गया है। लघु स्तंभलेख साँची, सारनाथ, रुम्मिनदेई, कौशाम्बी और निगाली सागर में पाया गया है।

1.लौरिया नन्दनगढ़ ® यह बिहार के चम्पारण जिले में स्थित है। इस स्तंभ पर मोर का चित्र बना हुआ है।

2.लौरिया अरराज ® यह बिहार के चम्पारण जिले में स्थित है।

3.दिल्लीटोपरा ® यह सर्वाधिक प्रसिद्ध स्तम्भ लेख है। यह मूलत: अम्बाला (हरियाणा) में था, किन्तु इसे फिरोजशाह तुगलक द्वारा दिल्ली में गड़वा दिया था। ये स्तम्भ फिरोजशाह की लाट, भीमसेन की लाट, दिल्ली शिवालिक लाट, सुनहरी लाट आदि नामों से भी जाने जाते हैं। इस पर अशोक के सातों अभिलेख उत्कीर्ण हैं जबकि शेष स्तंभों पर केवल 6 लेख ही उत्कीर्ण मिलते हैं।

4.दिल्लीमेरठ ® यह पहले मेरठ में स्थित था बाद में फिरोजशाह तुगलक इस स्तंभ को दिल्ली लाए।

5.रामपुरवा ® यह बिहार के चम्पारण में स्थित है।

6.प्रयाग ® यह पहले कौशाम्बी में था बाद में अकबर ने इलाहाबाद के किले में रखवाया।

लघु स्तम्भ लेख

♦      लघु स्तम्भ लेख पर अशोक की “राजकीय घोषणाओं” का उल्लेख है।

1.     साँची  (रायसेन, मध्य प्रदेश® संघ भेद रोकने संबंधी आदेश।

2.     सारनाथ  (वाराणसी, उत्तर प्रदेश) ® संघ भेद रोकने संबंधी आदेश।

3.कौशाम्बी (इलाहाबाद/प्रयागराज, उत्तर प्रदेश) ® कौशाम्बी (प्रयागराज) के स्तम्भों में अशोक की रानी कारुवाकी द्वारा दान दिए जाने का उल्लेख है, इसे रानी का अभिलेख भी कहा गया है। कौशाम्बी स्तंभ लेख को अकबर के शासन काल में जहाँगीर द्वारा इलाहाबाद के किले में रखा गया।

4.रुम्मिनदेई स्तंभलेख ® नेपाल की तराई में है। इसमें अशोक की धर्मयात्रा का वर्णन है। इस स्तंभलेख में अशोक की लुम्बिनी यात्रा और लुम्बिनी के लोगों को कर में दी गई छूट का वर्णन है। उसने  कर की दर को घटाकर 1/8 कर दिया। अशोक का सर्वाधिक छोटा अभिलेख रुम्मिनदेई है, विषय आर्थिक है।

5. निगालीसागर स्तंभलेख ® यह स्तंभलेख मूलतः ‘कपिलवस्तु’ में स्थित था। इस स्तंभलेख में कहा गया है कि अशोक ने ‘कनकमुनि बुद्ध’ के स्तूप की ऊँचाई को बढ़ाकर दुगुना कर दिया था।

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