जल परिवहन , वायु परिवहन एवं संचार क्लासरूम नोट्स

आज इस पोस्ट में हम बात करने वाले हैं जल परिवहन , वायु परिवहन एवं संचार | Water transport, air transport and communication कैसे होता है आपने देखा होगा कि दूसरे देशों से भारत में वस्तुओं का आयात एवं निर्यात किया जाता है यह किन-किन माध्यम से होता है इन सभी के बारे में आप पढ़ेंगे | यहां से बहुत बार परीक्षा में प्रश्न पूछा जा चुका है इसलिए इसे अच्छे से जरूर पढ़ें एवं याद कर ले

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जल परिवहन , वायु परिवहन एवं संचार

जल परिवहन

यह परिवहन का सबसे सस्ता साधन है। क्योंकी स्थल की तुलना में जल पर घर्षण कम होता है, इसलिए ऊर्जा की लागत कम आती है।

जल परिवहन में मार्गों का निर्माण और रखरखाव की आवश्यकता नहीं होती।

जल परिवहन को 2 भागों में विभक्त किया जा सकता हैं-

(1) समुद्री जलमार्ग

(2) आन्तरिक जलमार्ग

समुद्री जलमार्ग

उत्तरी अटलांटिक जलमार्ग

यह विश्व के 2 सबसे विकसित क्षेत्रों उत्तरी-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोप को जोड़ता है।

विश्व का 1/4 व्यापार बसी मार्ग द्वारा होता है, इसलिए इसे विश्व का सबसे व्यस्त व्यापारिक जलमार्ग कहते हैं। इसे शहद एक मार्ग ” के नाम से भी जाना जाता है।

भूमध्यसागर-हिंद महासागरीय जलमार्ग

प्राचीन समय में विश्व का हृदय स्थल कहे जाने वाले क्षेत्रों से होकर गुजरता है।

यह विश्व में सर्वाधिक देशों और लोगों को सेवाएं प्रदान करता है।

स्वेज नहर के निर्माण से दूरी और लगने वाले समय में अत्यधिक कमी आ गई है।

यह विश्व का दूसरा सबसे व्यस्त जलमार्ग है।

उत्तमाशा अंतरिप समुद्री जलमार्ग

यह जलमार्ग पश्चिमी यूरोप को पश्चिमी अफ्रीका, दक्षिणी अफ्रीका, पूर्वी अफ्रीका, दक्षिणी-पूर्वी एशिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड [कृषि-पशुपालन आधारित अर्थव्यवस्था] से जोड़ता है।

इस जलमार्ग के कारण पूर्वी अफ्रीका और पश्चिमी अफ्रीका के बीच व्यापार में वृद्धि हुई है।

दक्षिणी अटलांटिक समुद्री जलमार्ग

यह जलमार्ग पश्चिमी यूरोप और अफ्रीका को दक्षिणी अमेरिका के ब्राजील, उरुग्वे और अर्जेंटिना से जोड़ता है।

इस जलमार्ग का उत्तरी अटलांटिक जलमार्ग की तुलना में महत्त्व कम है।

दक्षिणी अमेरिका और अफ्रीका में रूम औद्योगिक विकास, कम जनसंख्या तथा समान उत्पाद उत्पादन के कारण व्यापार कम होता है।

उत्तरी प्रशांत समुद्री मार्ग

उत्तरी प्रशांत महासागर एक विस्तृत महासागर है। इसमें सभी जलमार्ग होनोलुलु स्थान पर आकर मिलते हैं इस कारण होनोलुलु को प्रशांत महासागर का चौराहा कहा जाता है।

उत्तरी प्रशांत में एक जलमार्ग सीधा वैकुंवर को योकोहामा से जोड़‌ता है।

दक्षिणी प्रशांत समुद्री मार्ग

यह समुद्री मार्ग पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका को पनामा नहर के माध्यम से ऑस्ट्रेलिया से जोड़ता है। इस मार्ग के द्वारा हांगकांग, इण्डोनेशिया और फिलीपींस पहुँच सकते हैं।

स्वेज नहर

उद्‌घाटन – 1869

गहराई – 11- 15 मीटर

देश – मिस्त्र (सिनाई प्रायद्वीप) बंदरगाह- भूमध्य सागर- पोर्ट सईद

लम्बाई – 193.30 किमी. लाल सागर- पोर्ट स्वेज

जोड़ती है- भूमध्य सागर + लाल सागर

विशेषताएँ- यह नहर यूरोप को हिंद महासागर में एक नवीन प्रवेश मार्ग प्रदान करती है।

झील- तिमसा झील, ग्रेट बिटर झील, लिटिल बिटर झील

राष्ट्रीयकरण- 1956

पनामा नहर

निर्माण – 1914, अमेरिका

देश- पनामा

लम्बाई – 82 किमी.

जोड़ती है – अटलांटिक +प्रशांत महासागर

झील- गोटुन झील

बंदरगाह- अटलांटिक – उत्तरी सिरे- कोलोन बंदरगाह – प्रशांत – दक्षिणी सिरे – पनामा बंदरगाह

विशेषता- इस नहर में 6 जलबंधक तंत्र है।

इस नहर ने न्यूयॉर्क- सान फ्रांसिस्को के बीच 13000 किमी. की दूरी को कम कर दिया है।

राईन जलमार्ग

यह जलमार्ग नीदरलैण्ड में अपने मुहाने पर स्थित रॉटरडम बंदरगाह से बेसल नगर तक [700किमी.] नौकागमन योग्य है। लेकिन समुद्री पोत केवल कोलोन तक ही आ सकते हैं।

यह समुद्री मार्ग स्वीट्‌जरलैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम और नीदरलैण्ड को उत्तरी अटलांटिक महासागर से जोड़ता है।

यह जलमार्ग खनिजों की दृष्टि से समृद्ध क्षेत्रों [कोयला] से होकर गुजरता है। इस जलमार्ग से सहारे उद्योगों का विकास अधिक हुआ है।

डेन्यूब जलमार्ग

यह जलमार्ग पूर्वी यूरोप को अपनी सेवाएँ प्रदान करता है।

यह जलमार्ग टारना सेविरीन तक नौकागमन योग्य है।

इस जलमार्ग से गेहूँ, मक्का, इमारती लकड़ी और मशीनरी का व्यापार होता है।

वोल्गा जलमार्ग

रूस में अत्यधिक संख्या में विकसित जलमार्ग पाए जाते हैं। जिनमें से वोल्गा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।

यह 11,200 कि.मी. तक नौकायान की सुविधा प्रदान करता है तथा कैस्पियन सागर में मिल जाता है।

वोल्गा-मास्को नहर इसको मास्को प्रदेश से तथा वोल्गा-डोन नहर काला सागर से जोड़ती है।

वृहद् झीलें सेंट लारेंस समुद्रीमार्ग

उत्तरी अमेरिका की वृहद् झीलें सुपीरियर, ह्यूरन, इरी तथा ओंटारियो, सू नहर तथा वलैंड नहर के द्वारा जुड़े हुए हैं तथा आंतरिक जलमार्ग की सुविधा प्रदान करते हैं।

सेंट लॉरेंस नदी की एश्चुअरी वृहद् झीलों के साथ उत्तरी अमेरिका के उत्तरी भाग में विशिष्ट वाणिज्यिक जलमार्ग का निर्माण करती है। इस मार्ग पर स्थित मुख्य पत्तन डुलुथ और बुफालो सभी आधुनिक समुद्री पत्तन की सुविधाओं से युक्त हैं।

परंतु इन नदियों पर पाए जाने वाले छोटे-छोटे प्रपातों के कारण सामानों को छोटे मालवाहक पोतों पर लादना पड़ता है। इससे बचने के लिए नहरों को 3.5 मीटर तक गहरा बनाया गया है।

मिसिसिपी जलमार्ग

मिसिसिपी-उनोहियो जलमार्ग संयुक्त राज्य अमेरिका के आंतरिक भागों को दक्षिण में मैक्सिको की खाड़ी के साथ जोड़ता है।

वायु परिवहन

वायु परिवहन, परिवहन का तीव्रतम साधन है, परंतु यह अत्यंत महँगा भी है, तीव्रगामी होने के कारण लंबी दूरी की यात्रा के लिए यात्री इसे वरीयता देते हैं।

पर्वतों, हिमक्षेत्रों अथवा विषम मरुस्थलीय भूभागों पर विजय प्राप्त कर ली गई है।

गम्यता में वृद्धि हुई है। वायुयान जमी हुई भूमि के अवरोध से प्रभावित हुए बिना उत्तरी कनाडा के एस्किमो के लिए अनेक प्रकार की वस्तुएँ लाते हैं हिमालयी प्रदेश में भू-स्खलन, ऐवेलांश अथवा भारी हिमपात के कारण प्रायः मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में किसी स्थान पर पहुँचने के लिए वायु यात्रा ही एक मात्र विकल्प है।

वायुयानों के निर्माण तथा उनकी कार्य प्रणाली के लिए अत्यंत विकसित अवस्थापनात्मक सुविधाओं, जैसे – विमानशाला, भूमि पर उतारने, ईंधन तथा रख-रखाव की सुविधाओं की आवश्यकता होती है।

हवाई पत्तनों का निर्माण भी अत्यधिक खर्चीला है और उन्हीं देशों में जहाँ अत्यधिक औद्योगीकरण एवं अधिक संख्या में यातायात उपलब्ध हैं, विकसित हुआ है।

वर्तमान समय में विश्व में कोई भी स्थान 35 घंटे से अधिक की दूरी पर नहीं है।

ब्रिटेन का वाणिज्यिक वायु परिवहन का प्रयोग अनुकरणीय है, संयुक्त राज्य अमेरिका ने मुख्य रूप से युद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन का विकास किया है।

आज 250 से अधिक वाणिज्यिक एयरलाइनें विश्व के विभिन्न भागों में नियमित सेवाएँ प्रदान करती हैं। हाल ही में हुए विकास वायु परिवहन के भविष्य के मार्ग को बदल सकते हैं।

सुपरसोनिक वायुयान लंदन और न्यूयॉर्क के बीच की दूरी का साढ़े तीन घंटों में तय कर लेता है।

अंतर-महाद्वीपीय वायुमार्ग

· उत्तरी गोलार्द्ध में अंतर-महाद्वीपीय वायुमार्गों की एक सुस्पष्ट पूर्व-पश्चिम पट्टी है। पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, पश्चिमी यूरोप और दक्षिण-पूर्वी एशिया में वायुमार्गों का सघन जाल पाया जाता है।

विश्व के कुल वायुमार्गों के 60 प्रतिशत भाग का प्रयोग अकेला संयुक्त राज्य अमेरिका करता है।

न्यूयॉर्क, लंदन, पेरिस, एमस्टर्डम और शिकागो केंद्र बिंदु हैं जो सभी महाद्वीपों की ओर विकिरित होते हैं।

अफ्रीका, रूस के एशियाई भाग और दक्षिण अमेरिका में वायु सेवाओं का अभाव है।

दक्षिणी गोलार्द्ध में 10°-35° अक्षांशों के मध्य अपेक्षाकृत विरल जनसंख्या, सीमित स्थलखंड और आर्थिक विकास के कारण सीमित वायुसेवाएँ उपलब्ध हैं।

पाइपलाइन

जल, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस जैसे तरल एवं गैसीय पदार्थों के अबाधित प्रवाह और परिवहन के लिए पाइपलाइनों का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है।

विश्व के अनेक भागों में रसोई गैस अथवा एल.पी.जी. की आपूर्ति पाइपलाइनों द्वारा की जाती है।

पाइपलाइनों का प्रयोग तरलीकृत कोयले के परिवहन व लिए भी किया जाता है।

न्यूज़ीलैंड से फार्मों से फैक्ट्रियों तक दूध को पाइपलाइनों द्वारा भेजा जाता है।

संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्पादक क्षेत्रों और उपभोग – क्षेत्रों के बीच तेल पाइपलाइनों का सघन जाल पाया जाता है।

‘बिग इंच’ ऐसी ही एक प्रसिद्ध पाइपलाइन है जो मैक्सिको की खाड़ी में स्थित तेल के कुओं से उत्तर-पूर्वी राज्यों में तेल ले जाती है।

· संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रति टन- कि.मी. कुल भार का 17 प्रतिशत भाग पाइपलाइनों द्वारा ले जाया जाता है।

यूरोप, रूस, पश्चिम एशिया और भारत में पाइपलाइनों का प्रयोग तेल के कुओं को तेल परिष्करणशालाओं और पत्तनों अथवा घरेलू बाज़ारों से जोड़ने के लिए किया जाता है।

मध्य एशिया में स्थित तुर्कमेनिस्तान से पाइपलाइन को ईरान और चीन के कुछ भागों तक बढ़ा दिया गया है।

प्रस्तावित ईरान-भारत वाया पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय तेल और प्राकृतिक गैस पाइपलाइन विश्व में सर्वाधिक लंबी होगी।

संचार

लंबी दूरियों के संचार हेतु मनुष्य ने अनेक विधियों का प्रयोग किया जिनमें से टेलीग्राफ और टेलीफोन महत्त्वपूर्ण थे।

आरंभिक और मध्य बीसवीं शताब्दी के दौरान अमेरिकी टेलीग्राफ और टेलीफ़ोन कंपनी का संयुक्त राज्य अमेरिका के टेलीफ़ोन उद्योग पर एकाधिकार था।

वास्तव में टेलीफ़ोन अमेरिका के नगरीकरण का एक क्रांतिक कारक बना।

फर्मों ने अपने कार्यों को नगर स्थित मुख्यालयों पर केंद्रित कर दिया और अपने शाखा कार्यालय छोटे नगरों में खोल दिए।

विकासशील देशों में उपग्रहों द्वारा संभव बनाया गया सेलफ़ोन का प्रयोग ग्रामीण-संपर्क के लिए महत्त्वपूर्ण है।

आज विकास अद्भुत गति से हो रहा है। पहला प्रमुख पारवेधन ऑप्टिक फाइबर तारों का प्रयोग है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा का सामना करती कंपनियों ने पूरे विश्व में आप्टिक तारों को समाविष्ट करने के लिए अपनी ताँबे की तारों वाली प्रणालियों को उन्नत किया।

1990 के दशक में सूचनाओं के अंकीकरण के साथ दूरसंचार का धीरे-धीरे कंप्यूटर के साथ विलय हो गया। परिणामस्वरूप एक समन्वित नेटवर्क बना जिसे इंटरनेट के नाम से जाना जाता है।

उपग्रह संचार

आज इंटरनेट पृथ्वी पर सबसे बड़े विद्युतीय जाल के रूप में 100 से अधिक देशों के लगभग 1000 करोड़ लोगों को जोड़ता है।

1970 से जब से संयुक्त राज्य अमेरिका एवं पूर्व सोवियत संघ के द्वारा अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी शोध किया गया है, तब से उपग्रह के माध्यम से होने वाले संचार ने, संचार तकनीकी के क्षेत्र में, एक नवीन युग का आरंभ किया है।

पृथ्वी की कक्षा में कृत्रिम उपग्रहों के सफलतापूर्वक प्रेक्षण के कारण अब ग्लोब के उन दूरस्थ भागों को जोड़ा गया है, जिनका यथास्थान सत्यापन सीमित था।

इस तकनीक के प्रयोग द्वारा दूरी के संदर्भ में संचार में लगने वाले इकाई मूल्य एवं समय में होने वाली वृद्धि को नियंत्रित कर लिया गया है। जिसका तात्पर्य यह है कि 500 कि.मी. की दूरी तक होने वाले संचार में लगने वाली लागत, उपग्रह के द्वारा 5000 कि.मी. की दूरी तक होने वाली संचार लागत के बराबर है।

उपग्रह विकास के क्षेत्र में भारत ने भी बड़े कदम उठाए हैं। आर्यभट्ट का 19 अप्रैल वर्ष 1979 को, भास्कर-1 का 1979 में तथा रोहिणी का प्रक्षेपण 1980 में किया गया।

18 जून, 1981 को एप्पल (एरियन पैसेंजर पे लोड एक्सपेरीमेंट) का प्रक्षेपण एरियन रॉकेट के द्वारा हुआ।

भास्कर, चैलेंजर तथा इंसेट 1-बी ने, लंबी दूरी के संचार दूरदर्शन तथा रेडियो को अत्यधिक प्रभावी बना दिया है। आज दूरदर्शन के माध्यम से मौसम की भविष्यवाणी एक वरदान बन गई है।

साइबर स्पेस-इंटरनेट

सरल शब्दों में यह भेजने वाले और प्राप्त करने वाले के शारीरिक संचालन के बिना कंप्यूटर पर सूचनाओं के प्रेषण और प्राप्ति की विद्युतीय अंकीय दुनिया है। इसे इंटरनेट के नाम से भी जाना जाता है।

साइबर स्पेस विद्युत द्वारा कंप्यूटरीकृत स्पेस का संसार है।

यह वर्ल्ड वाइड वेबसाइट जैसे इंटरनेट द्वारा आवृत्त हैं।

इंटरनेट प्रयोक्ता 1995 में 5 करोड़, वर्ष 2000 में 40 करोड़ और वर्ष 2010 में 200 करोड़ हैं। विगत कुछ वर्षों में वैश्विक प्रयोक्ताओं का संयुक्त राज्य अमेरिका से विकासशील देशों में स्थानांतरण हुआ है।

संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रयोक्ताओं का प्रतिशत अंश वर्ष 1995 में 66 प्रतिशत रह गया।

अब विश्व के अधिकांश प्रयोक्ता संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, चीन और भारत में हैं।

साइबर स्पेस लोगों के समकालीन आर्थिक और सामाजिक स्पेस को ई. मेल, ई. वाणिज्य, ई. शिक्षा और ई. प्रशासन के माध्यम से विस्तृत करेगा।

फैक्स, टेलीविजन और रेडियो के साथ इंटरनेट समय और स्थान की सीमाओं को लांघते हुए अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचेगा। ये आधुनिक संचार प्रणालियाँ हैं जिन्होंने परिवहन से कहीं ज़्यादा वैश्विक ग्राम की संकल्पना को साकार किया है।

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