आज की इस पोस्ट में हम सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में पढ़ने वाले हैं जब भी आप भारतीय इतिहास पढ़ेंगे तो उसमें आपको सिंधु घाटी के बारे में जरूर पढ़ने के लिए मिलेगा अगर आप इस टॉपिक को अच्छे से याद करना चाहते हैं तो उपलब्ध करवाई गये नोट्स को अच्छे से जरूर पढ़ें एवं याद कर ले
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सिन्धु घाटी सभ्यता
– पाषाण युग की समाप्ति के बाद धातुओं के युग का प्रारम्भ हुआ। इसी युग को आद्य ऐतिहासिक काल या धातु काल कहा जाता है।
– हड़प्पा संस्कृति की गणना इस काल से की जाती है।
– अब तक विश्व की 4 सभ्यताएँ प्रकाश में आई है जो क्रमश: है–
सभ्यता नाम – नदी
1. मेसोपोटामिया – दजला व फरात
2. मिस्त्र – नील
3. भारत – सिन्धु
4. चीन – ह्वांग-हो (पीली नदी)
हड़प्पा संस्कृति का विस्तार :-
– सैंधव सभ्यता का भौगोलिक विस्तार उत्तर में मांडा (जम्मू) से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तक तथा पश्चिम में सुत्कागेंडोर से लेकर पूर्व में आलमगीरपुर (मेरठ) तक था।
– वह उत्तर से दक्षिण लगभग 1400 किमी. तक तथा पूर्व से पश्चिम लगभग 1600 किमी. तक फैली हुई थी। अभी तक उत्खनन तथा अनुसंधान द्वारा करीब 2800 स्थल ज्ञात किए गए हैं।
– वर्तमान में नवीन स्थल प्रकाश में आने के कारण अब इसका आकार
– विषमकोणीय चतुर्भुजाकार (वास्तविक स्परूप त्रिभुजाकार था) हो गया है।
– हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत पंजाब, सिंध, ब्लूचिस्तान, अफगानिस्तान, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भाग आते हैं।
– जॉन मार्शल ’सिंधु सभ्यता’ नाम का प्रयोग करने वाले पहले पुरातत्वविद् थे।
– अमलानन्द घोष ने ’सोथी संस्कृति‘ का हड़प्पा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान माना है।
– 1856 ई. में कराची से लाहौर रेलवे लाइन बिछाते समय जॅान बर्टन व विलियम बर्टन के आदेशों से पहली बार हड़प्पा के टीले से कुछ ईंटे निकाली गई।
हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल
स्थल | नदी/सागर तट | उत्खननकर्ता |
हड़प्पा | रावी नदी | दयाराम साहनी |
मोहनजोदड़ो | सिंधु नदी | राखालदास बनर्जी |
लोथल | भोगवा नदी | एस. आर. राव |
कालीबंगा | घग्घर नदी | अमलानन्द घोष |
रोपड़ | सतलज नदी | यज्ञदत्त शर्मा |
कोटदीजी | सिंधु नदी | फजल अहमद खाँ |
चन्हुदड़ो | सिंधु नदी | एन. जी. मजूमदार |
रंगपुर | भादर नदी | एम.एस. वत्स |
आलमगीरपुर | हिन्डन नदी | यज्ञदत्त शर्मा |
सुत्कागेंडोर | दाश्क नदी | ऑरेल स्टाइन |
बनवाली | सरस्वती नदी | रवीन्द्र सिंह बिस्ट |
– रेडियो कार्बन पद्धति:-
– इसी आधार पर किसी भी वस्तु की आयु ज्ञात कर ली जाती है।
– रेडियो कार्बन (C-14) तिथि के अनुसार डॉ.डी. पी. अग्रवाल ने हड़प्पा सभ्यता का काल 2300 ई. पू. से 1750 ई. पू. को माना है।
प्रमुख स्थल तथा विशेषताएँ
हड़प्पा
स्टुअर्ट पिग्गट के अनुसार यह अर्द्ध-औद्योगिक नगर था। यहाँ के निवासियों का एक बड़ा भाग व्यापार, तकनीकी उत्पाद और धर्म के कार्यों में संलग्न था।
इसकी खोज दयाराम साहनी ने वर्ष 1921 में की थी। यह वर्तमान पंजाब (पाकिस्तान) में स्थित है।।
हड़प्पा से प्राप्त अन्य अवशेष :-
– हड़प्पा से स्त्री के गर्भ से निकलते हुए एक पौधे की मृण्मूर्ति प्राप्त हुई है, जिसे हड़प्पा वासियों ने उर्वरा देवी या पृथ्वी देवी माना है।
– यहाँ से बिना धड़ की एक पाषाण मूर्ति प्राप्त हुई।
– यह नगर लगभग 5 किमी. की परिधि में फैला हुआ था
– हड़प्पा के सामान्य आवास क्षेत्र के दक्षिण में एक ऐसा कब्रिस्तान स्थित है जिसे “समाधि आर – 37” नाम दिया गया है। अन्य कब्र – H भी प्राप्त हुई है।
– हड़प्पा का दुर्ग जिस टीले पर स्थित था उसे व्हिलर ने माउण्ड – ए-बी की संज्ञा दी।
– काँसे का दर्पण प्राप्त हुआ है।
– हड़प्पा से अन्नागारों की दो पंक्तियों के अवशेष मिलें है, प्रत्येक में 6-6 अन्नागार है।
– प्रसाधन मंजूषा (शृंगार पेटी)
– सर्वाधिक अलंकृत मोहरें- हड़प्पा से, जबकि सर्वाधिक मोहरें- मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई हैं।
– सैंधव सभ्यता की मोहरें सेलखड़ी (स्टेटाइड) से निर्मित होती थी।
– श्रमिक आवास के प्रमाण मिले हैं।
– मुहरें 3 प्रकार की होती थी ̵
1. आयताकार
2. वृत्ताकार
3. वर्गाकार (सर्वाधिक)
– इन मोहरों पर एक श्रृंगी बैल या हरिण, कूबड़दार बैल, मातृदेवी, व्याघ्र, पशुपतिनाथ व भैंसा आदि का अंकन मिलता है।
मोहनजोदड़ो
– यह नगर 8 बार उजड़कर 9 बार बसा था जिसके 7 क्रमिक स्तर मिले हैं।
– मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत अन्नागार थी व्हीलर ने इसे अन्नागार (Grannary) की संज्ञा दी तथा सबसे बड़ा सार्वजनिक स्थल ’विशाल स्नानागार’ था, इस स्नानागार का धार्मिक महत्त्व था। इसके चारों ओर जल भण्डारण हेतु बड़े-बड़े टैंक मिले हैं। इसे जॉन मार्शल ने तत्कालीन विश्व का आश्चर्यजनक निर्माण कहा, साथ ही इसे विराट वस्तु की संज्ञा दी है।
– यह मोहनजोदड़ो का सर्वाधिक उल्लेखनीय स्मारक है।
– वृहत स्नानागार की तुलना D.D कौशाम्बी कालान्तर के संस्कृत ग्रन्थों में वर्णित पुष्कर तथा कमलताल से करते हैं।
– मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मोहर पर तीन मुख वाले एक देवता का अंकन किया गया है। जिसके चारों तरफ भैंसा, हाथी, गेंडा, व्याघ्र व निचले भाग पर 2 हरिण व ऊपरी भाग पर मछली व 10 अक्षरों का अंकन मिलता है।
– जॉन मार्शल ने इसे पशुपतिनाथ की उपाधि प्रदान की, साथ ही इसे ‘आद्यतम शिव’ की उपमा दी है।
– इस स्थल से मानव कंकाल (शायद नरसंहार) के साक्ष्य मिले हैं।
– यहाँ से पुरोहित आवास के साक्ष्य भी मिले हैं।
– यहाँ से काँसे की नर्तकी की मूर्ति प्राप्त हुई है। इसका निर्माण द्रवी-मोम विधि से हुआ है। हड़प्पावासी ताँबे और टिन को मिलाकर काँसे का निर्माण करते थे।
– मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर पर एक योगी को ध्यान मुद्रा में एक टांग पर दूसरी टांग डाले बैठा दिखाया गया है।
लोथल
यह गुजरात में स्थित स्थल है। इसकी खोज 1954-55 ई. में की गई तथा इसका उत्खनन S-R राव ने 1957-58 ई. के मध्य करवाया
– यह एक औद्योगिक नगर था ।
– बाट-माप-तौल के लिए पैमाना/हाथी दाँत पैमाना होता था।
– यह सिन्धु सभ्यता का एक प्रमुख गोदीबाड़ा (डॉक यार्ड) बंदरगाह/पत्तन था।
– सिकोत्तरी माता- समुद्री देवी थी।
– नाव के साक्ष्य से द. पूर्वी एशियाई देशों के साथ व्यापार का पता चलता है।
– यह नगर भोगवा नदी के किनारे स्थित है।
– सम्पूर्ण सैन्धव सभ्यता का सबसे बड़ा सार्वजनिक स्थल- लोथल का गोदीबाड़ा था। यहाँ से बंदरगाह के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। लोथल उस समय पश्चिमी एशिया से व्यापार का प्रमुख स्थल था।
– लोथल से मनके बनाने का कारखाना मिला है।
– तीन युगल शवाधान (एक साथ दफनाए शव) जिनका सिर उत्तर दिशा की तरफ तथा पैर दक्षिण दिशा की तरफ था, इस स्थल से प्राप्त हुए हैं।
– यहाँ से अग्निकुंड/अग्निवेदिकाएँ मिली हैं।
– लोथल की सबसे प्रसिद्ध कृति पक्की ईंटों का बना जहाजों का डॉकयार्ड था, जो त्रिभुजाकार था। यहाँ से मिली मोहरों में सबसे महत्त्वपूर्ण वे हैं, जो ईरान की खाड़ी में मिली मुहरों के अनुरूप हैं, जिनसे मेसोपोटामिया और फारस (ईरान) के साथ व्यापारिक संबंधों का पता चलता है।
– S.R. राव ने इसे लघु हड़प्पा या लघु मोहनजोदड़ो कहा।
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