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भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

अक्षांश – भारत का अक्षांशीय विस्तार लगभग 30° है। कर्क रेखा भारत के मध्य से होकर गुजरती है इसलिए भारत में वार्षिक तथा दैनिक तापान्तर में बहुत भिन्नता पाई जाती है।

हिमालय पर्वत की अवस्थिति – हिमालय पर्वत अपने विस्तार एवं ऊँचाई के कारण प्रभावी जलवायु विभाजक का कार्य करता है तथा मानसूनी पवनों को रोककर वर्षा का कारण बनता है।

जल तथा स्थल का विवरण – भारत का दक्षिणी भाग तीनों ओर से जल से घिरा हुआ है तथा इसके उत्तर की ओर पर्वत श्रेणी है। जिससे ताप प्रवणता व दाब प्रवणता में भिन्नताएँ होने से पवनों की दिशा में परिवर्तन होता है।

समुद्र तट से दूरी – दक्षिण भारत समुद्र से घिरा होने के कारण समकारी जलवायु पाई जाती है जबकि समुद्र से दूर उत्तर भारत में विषमकारी जलवायु पाई जाती है।

समुद्र तल से ऊँचाई – समुद्र तल से ऊँचाई पर जाने से तापमान घटता है जिसमें जलवायु परिस्थितियों में बदलाव आता है। उदाहरण- आगरा तथा दार्जिलिंग एक अक्षांश पर स्थित है लेकिन दोनों स्थानों की जलवायु दशाएँ अलग हैं।

उच्चावच – भारत में उच्चावच तापमान, दाब, पवनों की दिशा तथा वर्षा की मात्रा वर्षा के वितरण को प्रभावित करता है।

भारतीय जलवायु का वर्गीकरण

  • भारत की जलवायु उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी प्रकार की है।
  • एक जलवायु प्रदेश में जलवायवयी दशाओं में समरूपता होती है।
  • तापमान तथा वर्षा जलवायु के दो महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।
  • कोपेन की पद्धति पर आधारित भारत की जलवायु का वर्गीकरण निम्नलिखित रूप से हैं-

I. लघु शुष्क ऋतु जलवायु (Amw) – इस जलवायु क्षेत्र में वर्षा अधिक होती है। इस जलवायु क्षेत्र में मालाबार व कोंकण तट पश्चिमी घाट पर्वत की पश्चिमी ढाल सम्मिलित है।

II. शुष्क ग्रीष्म ऋतु जलवायु (As) – इस जलवायु क्षेत्र में शीत ऋतु में उत्तर-पूर्वी मानसून से अधिकांश वर्षा होती है तथा इस क्षेत्र में ग्रीष्म ऋतु में वर्षा की मात्रा काफी कम होती है। इस जलवायु क्षेत्र में तमिलनाडु का कोरोमण्डल तट शामिल है।

III. उष्ण कटिबंधीय सवाना जलवायु (Aw) – इस क्षेत्र में सवाना प्रकार की वनस्पति पाई जाती है तथा यहाँ वार्षिक वर्षा 75 150 सेमी. के बीच होती है। इसका प्रमुख क्षेत्र कर्क रेखा दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार का अधिकांश भाग है।

IV. अर्द्ध शुष्क स्टेपी जलवायु (BShw) – इस जलवायु क्षेत्र में वर्षा ग्रीष्म काल में 30 से 60 से.मी. होती है तथा शीतकाल में वर्षा का अभाव होता है यहाँ स्टेपी प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। इसका प्रमुख क्षेत्र उत्तर-पश्चिमी गुजरात, मध्यवर्ती राजस्थान तथा पश्चिमी घाट का वृष्टि छाया प्रदेश है।

V. उष्ण मरुस्थलीय जलवायु (BWhw) – इस जलवायु क्षेत्र में वर्षा काफी कम मात्रा में होती है तथा तापमान अधिक होता है। यहाँ मरुस्थलीय प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। इसका प्रमुख क्षेत्र राजस्थान का पश्चिमी क्षेत्र व उत्तरी गुजरात क्षेत्र है।

VI. शुष्क शीत ऋतु की मानसूनी जलवायु (Cwg) – इस क्षेत्र मेंnवर्षा मुख्यत: ग्रीष्म ऋतु में होती है। इसका प्रमुख क्षेत्र गंगा का मैदान, पूर्वी राजस्थान, उत्तरी मध्य प्रदेश, उत्तर-पूर्वी भारत का अधिकतर क्षेत्र है।

VII. लघु ग्रीष्म व शीत आर्द्र जलवायु प्रदेश (Dfc) – इस जलवायु क्षेत्र में मुख्य रूप से अरुणाचल प्रदेश का उत्तरी भाग आता है।

VIII. ध्रुवीय जलवायु (E) – इस जलवायु क्षेत्र में तापमान सालभर ०°C से कम (हिमाच्छादित प्रदेश) होता है। इसके प्रमुख क्षेत्र जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश व उत्तराखण्ड हैं।

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