इस पोस्ट में हम प्राचीन भारत का इतिहास के एक टॉपिक मौर्य कालीन प्रशासनिक व्यवस्था से संबंधित क्लासरूम नोट्स उपलब्ध करवा रहे हैं जिसमें आपको केन्द्रीय अधिकारी – प्रशासन तथा कला एवं स्थापत्य इत्यादि के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए मिलेगा इस टॉपिक के नोट्स को पढ़ने के पश्चात आपको इसके लिए अन्य कहीं से पढ़ने की आवश्यकता नहीं होगी
यह नोट्स ऑफलाइन क्लासरूम से तैयार किए गए हैं ताकि आप अगर सेल्फ स्टडी कर रहे हैं तो इन नोट्स के माध्यम से आप बिल्कुल फ्री घर बैठे तैयारी कर सकें
मौर्य कालीन प्रशासनिक व्यवस्था
केन्द्रीय अधिकारी – प्रशासन
♦ कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मौर्य साम्राज्य के केन्द्रीय प्रशासन की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।
♦ केन्द्रीय प्रशासन अनेक विभागों में बँटा हुआ था। प्रत्येक विभाग को ‘तीर्थ’ कहा जाता था। अर्थशास्त्र में 18 तीर्थों के प्रधान पदाधिकारी का उल्लेख हुआ है-
- मंत्री और पुरोहित ® चन्द्रगुप्त के समय कौटिल्य इन दोनों पदों पर नियुक्त थे। बिन्दुसार के समय प्रारम्भ में कौटिल्य एवं इनके बाद खल्लाटक प्रधानमंत्री बना। अशोक का प्रधानमंत्री राधागुप्त था। प्रधानमंत्री को अग्रामात्य कहा जाता था।
2. समाहर्ता ® राजस्व विभाग का प्रधान अधिकारी होता था। (वित्तमंत्री)
3. सन्निधाता ® राजकीय कोषालय का प्रमुख अधिकारी होता था।
4. सेनापति ® युद्ध विभाग का प्रमुख अधिकारी था।
5.युवराज ® राजा का उत्तराधिकारी होता था।
6.प्रदेष्टा ® फौजदारी न्यायालय का न्यायाधीश।
7.नायक ® नगर रक्षा का अध्यक्ष/सेना का संचालक।
8.कर्मान्तिक ® राज्य के उद्योग-धन्धों का मुख्य निरीक्षक।
9.व्यावहारिक ® दीवानी न्यायालय का न्यायाधीश।
10.मन्त्रिपरिषदाध्यक्ष ® मन्त्रिपरिषद् का अध्यक्ष।
11.दण्डपाल ® सर्वोच्च पुलिस अधिकारी।
12.अन्तपाल ® सीमावर्ती दुर्गों का रक्षक।
13.दुर्गपाल ® देश के भीतर दुर्गों का प्रबन्धक।
14.नागरिक ® नगर का प्रमुख अधिकारी।
15.प्रशास्ता ® राजकीय दस्तावेजों को सुरक्षित एवं समस्त रिकॉर्ड को लेखबद्ध करने वाला अधिकारी।
16.दौवारिक ® राजमहलों की देख-रेख करने वाला प्रधान अधिकारी।
17.आन्तर्वशिक ® अंत:पुर का अध्यक्ष।
18.आटविक ® वन विभाग का प्रधान अधिकारी था।
उपर्युक्त पदाधिकारियों के अतिरिक्त अनेक अन्य पदाधिकारियों का भी उल्लेख अर्थशास्त्र में मिलता है। इन्हें ‘अध्यक्ष’ कहा गया है। अर्थशास्त्र में विभागीय अध्यक्षों तथा उनके कार्यों की एक लम्बी सूची मिलती है। सम्भवतः इन अध्यक्षों को ही यूनानी लेखकों ने ‘मजिस्ट्रेट’ कहा है। नाम इस प्रकार हैं —
1.पण्याध्यक्ष ® वाणिज्य व्यापार का अध्यक्ष।
2.सूनाध्यक्ष ® बूचड़खाने का अध्यक्ष।
3.गणिकाध्यक्ष ® वेश्याओं का निरीक्षक।
4.सीताध्यक्ष ® राजकीय कृषि विभाग का अध्यक्ष।
5.आकराध्यक्ष ® खानों का अध्यक्ष।
6.कोष्ठागाराध्यक्ष® कोष्ठगारों का अध्यक्ष।
7.कुप्याध्यक्ष ® वन तथा उसकी सम्पदा का अध्यक्ष।
8.सूत्राध्यक्ष ® कटाई-बुनाई विभाग का अध्यक्ष।
9.लोहाध्यक्ष ® धातु विभाग का अध्यक्ष।
10.लक्षणाध्यक्ष ® मुद्रा व टकसाल का अध्यक्ष।
यह सिक्के जारी करता था जबकि रूपदर्शक नामक अधिकारी मुद्रा का परीक्षण करता था।
11.गोपाध्यक्ष ® पशु धन विभाग का अध्यक्ष।
12.वीवीताध्यक्ष ® चारागाह का अध्यक्ष।
13.मुद्राध्यक्ष ® पासपोर्ट विभाग का अध्यक्ष।
14.नवाध्यक्ष ® जहाजरानी विभाग का अध्यक्ष।
15.पत्तनाध्यक्ष ® बन्दरगाहों का अध्यक्ष।
16.संस्थाध्यक्ष ® व्यापारिक मार्गों का अध्यक्ष।
17.देवताध्यक्ष ® धार्मिंक संस्थाओं का अध्यक्ष।
18.पौतवाध्यक्ष ® माप-तौल का अध्यक्ष।
19.बन्धनागाराध्यक्ष® जेल/कारागार का अध्यक्ष।
20.सुराध्यक्ष ® आबकारी विभाग का अध्यक्ष।
21.कोषाध्यक्ष (लक्षणाध्यक्ष) ® मुद्रा व टकसाल अधिकारी (सिक्के जारी करना)
22.शुल्काध्यक्ष ® चुंगी (सीमा शुल्क) वसूलने वाला अध्यक्ष
23.आयुधागाराध्यक्ष ® अस्त्र-शस्त्र के रख-रखाव हेतू
24.मानाध्यक्ष ® दूरी एवं समय से संबंधित साधनों को नियंत्रित करने वाला अध्यक्ष
25.लवणाध्यक्ष ® नमक अधिकारी
26.द्यूताध्यक्ष ® जुआ अधिकारी
नोट :- राजा सहित कुल – 27 अध्यक्षों का उल्लेख मिलता है।
अन्य अधिकारी
(1) गो-अध्यक्ष ® पशुधन का अध्यक्ष
(2) अश्वाध्यक्ष ® घोड़ों का अध्यक्ष
(3) महामत्रापसरण (महामात्यापसर्प) ® गुप्तचर, खुफिया और सूचना विभाग का अधिकारी
(4) प्रशस्त्रि ® यह अधिकारी भी जेलों की देखभाल करता था।
♦ मौर्य प्रशासन में अध्यक्षों का महत्त्वपूर्ण स्थान था, इसको 1000 पण वार्षिक वेतन मिलता था।
कला तथा स्थापत्य
स्तूप
♦ साँची का स्तूप ® सबसे विशाल व सर्वश्रेष्ठ स्तूप हैं, इसको महास्तूप कहा जाता है। साँची की पहाड़ी मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के विदिशा के समीप स्थित है। 1818 ई. में सर्वप्रथम जनरल रायलट ने यह खोजा। वर्ष 1989 में इसे विश्व धरोहर में शामिल किया गया। यहाँ ईंटों का बना हुआ तोरणद्वार व चारों ओर लकड़ी की बाड़ लगाई गई है।
♦ सारनाथ का स्तूप ® इसमें तोरण द्वार सबसे अलंकृत है, ऊपर तीन छत्र है, इसमें हर्मिका जो सबसे पवित्रतम भाग है। इनकी छत अण्डाकार है। तोरण द्वार प्रवेश द्वार है। प्रदक्षिणापथ चारों ओर है।
♦ भरहुत स्तूप ® मध्यप्रदेश के सतना जिले में स्थित है। तक्षशिला स्तूप पाकिस्तान में है।
♦ पिपरहवा स्तूप (उत्तरप्रदेश) ® सबसे प्राचीनतम स्तूप माना जाता है।
मूर्ति कला
♦ अशोक स्तम्भों में उत्कीर्ण पशुओं की आकृतियाँ मौर्यकाल में मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
♦ धौली ओडिशा की हाथी की मूर्ति
♦ दिगंबर प्रतिमा – लोहानीपुर (पटना, बिहार)
♦ दीदारगंज (पटना) से प्राप्त यक्षिणी मूर्ति
♦ परखम (उत्तरप्रदेश) से प्राप्त 7 फीट ऊँची यक्ष की मूर्ति
♦ सारनाथ के स्तम्भ पर पशुओं की आकृति आदि मौर्यकाल की मूर्ति कला का विशिष्ट उदाहरण है।
अशोक स्तंभ | पशुमूर्ति | |
1. | सारनाथ (UP) | 4 सिंह |
2. | साँची (MP) | 4 सिंह |
3. | लौरिया नंदनगढ़ | सिंह व मोती चुगते हुए हंस |
4. | संकिसा (UP) | हाथी |
5. | रामपुरवा (बिहार) | सिंह व बैल/वृषभ |
6. | लौरिया अरराज (बिहार) | यह खण्डित प्राप्त हुआ है परन्तु इतिहासकार R.P. चढ्डा के अनुसार इस पर गरुड़ का अंकन है। |
7. | वैशाली (बिहार) | 1 सिंह |
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