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बिजौलिया आंदोलन से संबंधित आयोग
Table of contents
बिन्दुलाल भट्टाचार्य आयोग
- गठन – अप्रैल, 1919
- अध्यक्ष – बिन्दुलाल भट्टाचार्य
- सदस्य – अमर सिंह राणावत व अफज़ल अली
- आयोग ने अनियमित लागतें हटाने व बेगार न लेने की सिफारिश की लेकिन मेवाड़ राज्य ने ध्यान नहीं दिया।
द्वितीय जाँच आयोग
- गठन – फरवरी, 1920
- सदस्य – बेदला ठाकुर राजसिंह, रमाकांत मालवीय व तख्तसिंह
- आयोग ने माणिक्यलाल वर्मा व 15 सदस्य प्रतिनिधि मण्डल से मुलाकात की।
- गाँधीजी ने महादेव देसाई को मेवाड़ भेजा।
हॉलैण्ड समिति – ब्रिटिश सरकार द्वारा उच्च स्तरीय समिति का गठन।
- सदस्य – ए.जी.जी. हॉलैण्ड, आजल्वी, मेवाड़ रेजीडेन्ट विलकिंसन, मेवाड़ का दीवान प्रभासचन्द्र चटर्जी एवं शायर हाकिम बिहारी लाल।
- किसान प्रतिनिधि – मोतीलाल, नारायण पटेल, रामनारायण चौधरी व माणिक्यलाल वर्मा
- 11 फरवरी, 1922 को किसानों व ठिकाने के मध्य समझौता।
- शर्ते – 35 लागतें समाप्त करना, तलवार बंधाई की राशि कम करना, बेगार न लेना व किसानों पर मुकदमे हटाना।
- लेकिन ठिकाने ने इस समझौते की पालना नहीं की।
- सितम्बर, 1923 में पथिक को गिरफ्तार कर 5 वर्ष की सजा दी।
- जेल से रिहा होने के बाद पथिक ने आंदोलन को अप्रत्यक्ष समर्थन दिया।
किसान आंदोलन का तृतीय चरण
- समय – वर्ष 1923-1941
- नेतृत्वकर्ता – माणिक्यलाल वर्मा
● ट्रेंच समझौता – जनवरी, 1927 में भूमि बंदोबस्त अधिकारी ट्रेंच मेवाड़ आए।
- ट्रेंच, बिजौलिया ठिकाने व किसानों के मध्य समझौते के तहत 17 प्रकार की लाग बाग समाप्त की गई।
- मई, 1927 में वर्मा जी को गिरफ्तार कर पुन: लाग-बाग स्थापित की।
- जमनालाल बजाज द्वारा नेतृत्व – वर्ष 1927, सहयोगी – हरिभाऊ उपाध्याय।
- नवम्बर, 1933 वर्मा जी को रिहा कर दिया लेकिन मेवाड़ से निष्कासित कर दिया।
● वर्मा जी का पुन: नेतृत्व –
- वर्ष 1941, मेवाड़ प्रधानमंत्री टी. विजय राघवाचार्य ने राजस्व मंत्री डॉ. मोहनसिंह मेहता को समस्या का अंतिम रूप से समाधान करने बिजौलिया भेजा।
- वर्ष 1941 में वर्मा जी ने माँगे मनवाकर आंदोलन को समाप्त करवाया।
बेगूं किसान आंदोलन (चित्तौड़गढ़) :-
- कारण – अनावश्यक व अत्यधिक कर, लाग-बाग, बैठ- बेगार व सामन्ती जुल्म
- शुरुआत – वर्ष 1921
- स्थान – भैरुकुण्ड, मेनाल (चित्तौड़गढ़)
- नेतृत्वकर्ता – रामनारायण चौधरी
- महिलाओं का नेतृत्व – अंजना चौधरी (रामनारायण चौधरी की पत्नी)
- ट्रेंच आयोग – ठिकाने ने किसानों की शिकायतों के समाधान हेतु गठित किया।
● गोविन्दपुरा काण्ड – 13 जुलाई, 1923
- गोलीबारी – ट्रेंच के आदेश पर
- शहीद – रूपाजी धाकड़ व कृपाजी धाकड़ (किसान आंदोलन के प्रथम शहीद)
● समझौता, 1923 – राव अनूपसिंह व राजस्थान सेवा संघ के मध्य
- उपनाम – बोल्शेविक समझौता
- मेवाड़ राज्य में किसानों से प्रथम समझौता।
- विजयसिंह पथिक द्वारा आंदोलन का नेतृत्व।
- 10 सितम्बर, 1923 को पथिक को गिरफ्तार किया जाता है और आंदोलन आंशिक रूप से समाप्त हो जाता है।
- वर्ष 1925 में लगान दरे निर्धारित की गई तथा 34 लागते समाप्त कर दी गई और बेगार पर भी रोक लगा दी गई।
अलवर किसान आंदोलन – (वर्ष 1921-25) :-
- कारण – जंगली सूअरों को मारने पर पाबंदी।
- वर्ष 1922 में अलवर शासक जयसिंह ने सूअरों को मारने की इजाजत दी और आंदोलन समाप्त हो गया।
- आंदोलन पुन: प्रारम्भ – वर्ष 1923-1924
- कारण – महाराज जयसिंह द्वारा लगान दरें बढ़ाना।
नीमूचणा हत्याकाण्ड – 14 मई, 1925
- स्थान – नीमूचणा गाँव (अलवर)
- गोलीबारी – कमाण्डर छज्जूसिंह के नेतृत्व में हुई गोलीबारी में 156 व्यक्ति मारे गए व 600 व्यक्ति घायल हुए।
- छज्जूसिंह – ‘राजस्थान का जनरल डायर’
- रियासत समाचार-पत्र – नीमूचणा काण्ड की तुलना जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड से की।
- महात्मा गाँधी ने ‘यंग इंडिया’ में इस हत्याकाण्ड को जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड से भी वीभत्स बताया और दोहरी डायरशाही की संज्ञा दी।
- किसानों के आगे सरकार को झुकना पड़ा और आन्दोलन समाप्त हो गया।
- रामनारायण चौधरी ने इस घटना को ‘नीमूचणा हत्याकाण्ड’ कहा।
● कन्हैयालाल कलंत्री जाँच आयोग – राजस्थान सेवा संघ द्वारा गठित
- सदस्य – कन्हैयालाल कलंत्री, लादुराम जोशी, रामनारायण चौधरी।
● छज्जूसिंह आयोग – अलवर शासक जयसिंह द्वारा इस घटना क्रम की जाँच हेतु गठित।
- सदस्य – छज्जूसिंह सुल्तान , लालाराम, चरण सिंह
- पुकार – क्षत्रिय महासभा द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र
- नीमूचणा हत्याकाण्ड की खबर ‘पुकार’ में छापी गई।
- सीतादेवी – किसान रघुनाथ की बेटी जिसने आन्दोलन में भाग लिया।
- सीतादेवी ने सरकार को ललकारते हुए कहा था कि “हम किसी भी हालत में ठिकाने को अधिक लगान नहीं देंगे।”
मेव किसान आंदोलन :–
- नेतृत्वकर्ता – मेव नेता चौधरी यासीन खान, मोहम्मद हादी
- कारण – लगान के विरुद्ध , उर्दू शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु, इस्लामी स्कूलों की संख्या में वृद्धि हेतु।
● अन्जुमन खादिम उल इस्लाम
- स्थापना – वर्ष 1932, मोहम्मद हादी मुसलमानों के हितार्थ एक साम्प्रदायिक संस्था।
- आंदोलन का समर्थन – अंजुमन-ए-खदिम, अखिल भारतीय मुस्लिम लीग व तबलीकी जमात द्वारा।
- मेवों ने खरीफ फसल का लगान देना बंद कर दिया।
- राज्य सरकार ने मेवों को सन्तुष्ट करने के लिए राज्य काउसिंल में एक मुस्लिम सदस्य खान बहादुर काजी अजीजुद्दीन बिलग्रामी को सम्मिलित कर लिया।
- मेव आंदोलन कालांतर में साम्प्रदायिक रंग प्राप्त करने लगा। मेवों ने हिन्दुओं के घरों की सम्पत्ति लूटना शुरू कर दिया था।
- ब्रिटिश सरकार के हस्तक्षेप से आंदोलन पर नियंत्रण पाया गया। महाराजा जयसिंह को यूरोप भेजा गया।
- वर्ष 1937 में पेरिस में जयसिंह की मृत्यु के साथ ही आंदोलन की समाप्ति।
बूँदी (बरड़) किसान आंदोलन
- प्रारम्भ – अप्रैल, 1922
- बरड़ क्षेत्र के किसानों ने बूँदी राज्य के विरुद्ध किया।
- बूँदी किसान आंदोलन के दो चरण – प्रथम 1922- 1925 तथा द्वितीय चरण 1926- 1927।
- ‘बरड़’ – बूँदी व बिजौलिया के बीच पथरीला व कठोर भाग।
- कारण – लाग-बाग, चौथान कर (लड़कियों के क्रय- विक्रय पर लगने वाला कर)
- नेतृत्वकर्ता – पं. नयनूराम शर्मा व देवीलाल गुर्जर
- प्रमुख केंद्र – गरदड़ा, बड़घरूध, बरड़ व डाबी।
- आन्दोलन में समाचार-पत्रों का योगदान – ‘तरुण राजस्थान’, ‘नवीन राजस्थान’ (अजमेर), ‘राजस्थान केसरी’ (वर्धा), ‘प्रताप’।
डाबी हत्याकाण्ड – 2 अप्रैल, 1923
- गोलीबारी – पुलिस अधीक्षक इकराम हुसैन
- शहीद – नानक जी भील व देवीलाल गुर्जर
- पृथ्वीराज आयोग – हत्याकाण्ड की जाँच हेतु गठित
- 10 मई, 1923 को पं. नयनूराम शर्मा को गिरफ्तार कर जेल में कैद किया गया।
- वर्ष 1927 में राजस्थान सेवा संघ में आंतरिक विरोध के कारण इस आंदोलन की पूर्ण रूप से समाप्ति हुई।
- अर्जी – माणिक्यलाल वर्मा द्वारा नानक भील की स्मृति में रचित गीत।
- महिलाओं व बच्चों पर अत्याचार के विरोध में राजस्थान सेवा संघ ने बूँदी राज्य में महिलाओं पर अत्याचार नामक शीर्षक से पर्चे बटवाएँ।
गुर्जरों द्वारा आंदोलन (1936-45) :-
- सर्वप्रथम बरड़ क्षेत्र से आरंभ हुआ।
- कारण – नुक्ता (मृत्यु भोज) पर प्रतिबंध, पशु गिनती, भारी राजस्व की दर व गैर-कानूनी लागें।
- पशुपालकों व किसानों की सभा – 5 अक्टूबर, 1936
- स्थान – हुड़ेश्वर महादेव मंदिर (हिण्डौली)
- अपराध कानून संशोधन अधिनियम 1936 – 21 अक्टूबर, 1936 को बूँदी सरकार द्वारा पारित।
आन्दोलन पुन: प्रारम्भ – 1939, लाखेरी (बूँदी)
- सभा – 3 सितम्बर, 1939
- स्थान – तोरण की बावड़ी (लाखेरी)
- नेतृत्वकर्ता – भंवरलाल जमादार, गोवर्धन चौकीदार व राम निवास तम्बोली
- मार्च, 1945 तक शुल्क मुफ्त चराई की छूट किसानों की जोत के अनुपात में प्रदान की और आंदोलन शांत किया।
बीकानेर किसान आंदोलन
(i) गंग नहर क्षेत्र का किसान आंदोलन –
- कारण – पानी की मात्रा, सिंचाई कर, जमीनों की किश्ते चुकाने एवं चढ़ी रकम पर ब्याज
● जमींदार संघ –
- स्थापना – वर्ष 1921
- अपनी माँगों के संबंध में राज्य को प्रार्थना पत्र दिए।
- महाराजा गंगासिंह स्वयं नहरी क्षेत्र का विकास करना चाहते थे अत: लगान व पानी की दरों में छूट दी गई।
(ii) महाजन ठिकाने का किसान आंदोलन:- (वर्ष 1938–1942)
- नेतृत्वकर्ता – पूर्णमल
- कारण – कर में वृद्धि (चराई कर), अनुचित लागतों, बेगार व भू राजस्व
- समझौता – 1942 में जगन्नाथमल जोशी ने किसानों के साथ समझौता किया तथा ‘मूँगा कर’ कम कर दिया।
- 1942 में आंदोलन समाप्त।
दुधवाखारा (चूरू) किसान आंदोलन
- 1944 में जागीरदार ठाकुर सूरजमल सिंह ने पुराने बकाया की वसूली के नाम पर किसानों को उनकी जोत से बेदखल कर दिया।
- नेतृत्वकर्ता – मघाराम वैद्य, रघुवर दयाल तथा हनुमान सिंह आर्य
- महिलाओं का नेतृत्व – खेतूबाई
- हनुमान सिंह को रतनगढ़ में गिरफ्तार कर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया।
ऊदासर किसान आंदोलन (बीकानेर) :- 1937
- कारण – भू- राजस्व में वृद्धि
- स्थानीय सामंत – भूपाल सिंह
- नेतृत्वकर्ता – जीवनराम चौधरी
- बीकानेर रियासत का प्रथम किसान आंदोलन।
कांगड़ा काण्ड :- 1946
- वर्तमान में चूरू जिले में स्थित है।
- नेतृत्वकर्ता – मघाराम वैद्य
- कारण – खरीफ फसल नष्ट होने पर कर में रियायत की माँग करने पर 35 किसान बीकानेर शासक शार्दुलसिंह से मिलने हेतु बीकानेर रवाना हुए लेकिन इन्हें बंधक बनाकर सामंत द्वारा मारपीट की गई।
- बीकानेर रियासत का अंतिम किसान आंदोलन।
● तिरंगा जुलूस – 1 जुलाई, 1946, रायसिंह नगर
- बीकानेर राज्य प्रजा परिषद् द्वारा पुलिस दमन के विरोध में
- जुलूस को रोकने के लिए पुलिस द्वारा की गई गोलीबारी में बीरबल सिंह वीरगति को प्राप्त हुए।
– बीरबल दिवस – 17 जुलाई, 1946 को मनाया
मारवाड़ किसान आंदोलन
- मारवाड़ रियासत की खालसा 13% व जागीरी 87% क्षेत्र था।
- कारण – तिहरा शोषण, बीघोड़ी कर, मादा पशुओं का निष्कासन, माप-तौल व 126 प्रकार की लाग-बाग।
● मंडोर किसान आंदोलन – 1930-1931
- कारण – बीघोड़ी कर के विरुद्ध
- माली जाति के किसानों द्वारा
- 16 जून, 1934 को बीघोड़ी में प्रति एक रुपये पर तीन आने की कमी कर दी गई, जिससे खालसा क्षेत्र में आंदोलन समाप्त हो गया।
● चन्डावल घटना – 28 -29 मार्च, 1942
- 6 किसान शहीद हुए
- चन्डावल घटना हरिजन समाचार-पत्र में प्रकाशित हुई।
- महात्मा गाँधी ने जाँच हेतु प्रकाश आयोग गठित किया।
● मादा पशुओं का निर्यात – मारवाड़ राज्य द्वारा 29 अक्टूबर, 1923 को प्रतिबंध हटाने से बड़ी संख्या में पशु बाहर जाने लगे। किसानों ने इसका विरोध किया।
- नेतृत्व – हितकारिणी सभा व जयनारायण व्यास
- 1 सितम्बर, 1924 को पशुओं एवं घास-फूस के निर्यात पर प्रतिबंध।
● डाबड़ा काण्ड, डीडवाना –
- नागौर में मारवाड़ किसान सभा व मारवाड़ लोक परिषद् द्वारा संयुक्त बैठक।
- किसान सम्मेलन – 13 मार्च, 1947
- मारवाड़ लोक परिषद् द्वारा डाबड़ा में आयोजित सम्मेलन में ठिकाने द्वारा गोलीबारी में 12 व्यक्ति मारे गए। मथुरादास माथुर घायल हुए।
- डाबड़ा काण्ड के शहीद – चुन्नीलाल शर्मा व रूघाराम चौधरी (किसान आंदोलन के अंतिम शहीद)
- डाबड़ा काण्ड की वंदेमातरम्, लोकवाणी, प्रजा सेवक आदि समाचार पत्रों द्वारा कड़ी आलोचना।
- वर्ष 1948 में भारत सरकार के राज्य सचिव वी. पी. मेनन ने जोधपुर आकर किसानों व स्थानीय प्रशासन के मध्य समझौता करवाया।
शेखावाटी किसान आंदोलन
- वर्ष – 1922-1935
● कारण –
- जरीब में बदलाव – 165 फुट के स्थान पर 82.5 फुट जरीब करना।
- रजाका कर – प्रति बीघा 2 आना अतिरिक्त कर लगाना।
- भू–राजस्व में वृद्धि – सीकर के नए ठिकानेदार कल्याणसिंह द्वारा 25 से 50 प्रतिशत तक भू-राजस्व में वृद्धि करने के कारण।
- नेतृत्व – हरलालसिंह, रामनारायण चौधरी, हरिनारायण ब्रह्मचारी, ताड़केश्वर शर्मा व ठाकुर देशराज (भरतपुर)।
- लंदन में प्रकाशित ‘डेली हेराल्ड‘ समाचार पत्र में किसानों के समर्थन में लेख छपे।
- 1925 में ब्रिटिश संसद के निचले सदन ‘हाउस ऑफ कॉमन्स‘ में लेबर पार्टी के सदस्य सर पैथिक लॉरेन्स ने किसानों के समर्थन में आवाज उठाई।
जाट क्षेत्रीय सभा –
- स्थापना – 1931, ठाकुर देशराज द्वारा
- ठाकुर देशराज द्वारा मथैना में ‘जाट प्रजापति महायज्ञ’ का आयोजन।
कटराथल महिला सम्मेलन – 25 अप्रैल, 1934
- कारण – सिहोट ठाकुर मानसिंह द्वारा ‘सोतिया का बास’ गाँव में किसान महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार।
- अध्यक्षता – श्रीमती किशोरी देवी (हरलालसिंह की पत्नी)
- मुख्य वक्ता – उत्तमादेवी (भरतपुर ठाकुर देशराज की पत्नी)
- अन्य महिलाएँ – रूपादेवी, लक्ष्मीदेवी, दुर्गावती, रुकमादेवी आदि।
- सम्मेलन में दस हजार महिलाओं ने भाग लिया था।
♦ जयसिंहपुरा किसान हत्याकाण्ड :-
- 21 जून, 1934 को ठाकुर ईश्वरी सिंह ने जयपुर के जयसिंहपुरा गाँव में किसानों पर गोलियाँ चलवाई।
- ईश्वरी सिंह व साथियों पर मुकदमा चलाकर सजा दी गई।
- जयपुर राज्य का प्रथम मुकदमा जिसमें जाट किसानों के हत्यारों को सजा हुई।
♦ कुंदन हत्याकाण्ड :- 25 अप्रैल, 1935
- धापी देवी के कहने पर किसानों ने कर देने से मना कर दिया।
- सीकर ठिकाने के अधिकारी वैब द्वारा गोलीबारी।
- ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ कॉमन्स में भी कुन्दन हत्याकाण्ड पर चर्चा हुई।
- सीकर दिवस – 26 मई, 1935
भरतपुर किसान आंदोलन
- यहाँ 95 प्रतिशत भूमि सीधे राज्य के नियंत्रण में थी।
- 1931 में नया भूमि बंदोबस्त लागू किया गया जिससे भू-राजस्व में वृद्धि हो गई।
- 23 नवम्बर, 1931 को भोजी लम्बरदार के नेतृत्व में 500 किसान भरतपुर में एकत्रित हुए।
- भोजी लम्बरदार को गिरफ्तार किया गया जिससे आंदोलन समाप्त हो गया।
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